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Gorakhpur Famous Durga Pooja: बंगाल से कम नहीं है गोरखपुर में दुर्गा पूजा की धूम, 1896 से है शुरूआत

Gorakhpur Ka Famous Durga Pooja: जानकार बताते हैं कि दुर्गा पूजा की शुरुआत वर्ष 1896 में गोरखपुर जिला अस्पताल में सिविल सर्जन डॉक्टर योगेश्वर राय ने शुरू की थी।

Purnima Srivastava
Published on: 6 Oct 2024 8:15 AM IST
Gorakhpur Durgabadi Famous Durga Pooja Pandal
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Gorakhpur Durgabadi Famous Durga Pooja Pandal

Gorakhpur Famous Durga Pooja Pandal: गोरखपुर। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में जहां रामलीला की धूम होती है, वहीं गोरखपुर में बंगाल की तर्ज पर दुर्गापूजा की धूम होती है। इसका अंदाजा यहां स्थापित होने वाली दुर्गा प्रतिमाओं की संख्या से लगाया जा सकता है। पुलिस के आकड़े बताते हैं कि इस साल गोरखपुर शहर में 1600 से अधिक दुर्गा प्रतिमाएं स्थापित हो रही हैं। सबसे प्राचीन दुर्गा पूजा दुर्गाबाड़ी के बंगाली समिति की है। जिसे 1986 में बंगाल के रहने वाले एक चिकित्सक ने शुरू किया था। इसका सफरनामा भी काफी रोचक है।

जानकार बताते हैं कि दुर्गा पूजा की शुरुआत वर्ष 1896 में गोरखपुर जिला अस्पताल में सिविल सर्जन डॉक्टर योगेश्वर राय ने शुरू की थी। तभी से कोतवाली थानाक्षेत्र के दुर्गाबाड़ी में यह प्रतिमा रखी जाती है। 1953 से लगातार दुर्गा बाड़ी में यह मूर्ति रखी जा रही है। आयोजन समिति से जुड़े अजय चटर्जी बताते हैं कि वर्ष 1896 में गोरखपुर जिला अस्पताल में सिविल सर्जन रहे डॉक्टर योगेश्वर राय ने दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। 1930 तक यहां पर दुर्गा पूजा निरंतर होता रहा। 1903 में प्लेग महामारी फैली जिसके कारण दुर्गा पूजा बंद करनी पड़ी जो 1906 तक बंद रही। 1960 से 1907 से 1909 तक जुबली कॉलेज के प्रधानाचार्य राय साहब अघोरनाथ चटर्जी व डॉक्टर राधा विनोद राय ने जुबली कॉलेज में दुर्गा प्रतिमा की शुरुआत की थी।

1910 में आर्य नाटक मंच का गठन हुई। इसी समय दुर्गा पूजा अलहदादपुर में स्थानांतरित हो गई। वर्ष 1928 में आर्य नाट्य मंच और सुहृदय समिति का विलय कर बंगाली समिति का गठन हुआ। इसी समय दुर्गा पूजा स्थानांतरित होकर भगवती प्रसाद रईस के हाते में आ गई। कुछ वर्षों बाद यह पूजा चरनलाल चौराहे पर आयोजित होने लगा। समिति के लोग बताते हैं कि 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय सरकार ने चरनलाल चौराहे स्थित वह भवन अधिग्रहण कर लिया, तो समिति ने दुर्गा पूजा को दीवान बाजार में स्थानांतरित कर दिया। 1953 में बाबू महादेव प्रसाद रईस ने अपने पिता भगवती प्रसाद की स्मृति में समिति को एक भूखंड प्रदान किया। जिसे आज दुर्गाबाड़ी से लोग जानते हैं। 1953 में स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त को इस भूमि का पूजन हुआ और तभी से यह समिति की ओर से दुर्गा पूजन का आयोजन होने लगा। बंगाली समिति के सरंक्षक डॉ.रूप कुमार बनर्जी बताते हैं कि बंगाली समिति शुरू से ही कंधों पर मां दुर्गा की मूर्ति को विसर्जन के लिए ले जाती रही है। साल दर साल पूजा की भव्यता बढ़ रही है।

सिर्फ गोरखपुर शहर में स्थापित होती हैं 1600 से अधिक प्रतिमाएं

बंगाली समिति की ओर से शुरू की गई दुर्गा पूजा ने आज गोरखपुर में भव्य रूप ले लिया है। सिर्फ गोरखपुर शहर में 1600 से अधिक प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। एनई रेलवे में स्थापित दुर्गा प्रतिमा ने 75 वर्ष पूरा कर लिया है। रेलवे स्टेशन, धर्मशाला बाजार, मोहद्दीपुर, असुरन पर भी 50 से 60 वर्ष से लगातार दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना पूरी भव्यता के साथ होती है।



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