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लौट रहा रंगमंच का दौर, 1000 रुपये का टिकट लेकर पहुंच रहे थियेटर, मुख्यमंत्री के शहर में ऐसे हुआ बदलाव
Gorakhpur News: स्थितियां बदली हैं दो वजहों से। पहला, करोड़ों रुपये की लागत से तैयार हुए गंभीर नाथ प्रेक्षागृह के निर्माण से। दूसरा, नाट्यकर्मियों का प्रोफेशनल एप्रोच।
Gorakhpur News: रंगमंच की दुनिया के लोगों को शायद ही यकीन हो कि यूपी के गोरखपुर में लोग 1000 रुपये का टिकट लेकर थियेटर देखने पहुंच रहे हैं। लेकिन यह हकीकत है। स्थितियां बदली हैं दो वजहों से। पहला, करोड़ों रुपये की लागत से तैयार हुए गंभीर नाथ प्रेक्षागृह के निर्माण से। दूसरा, नाट्यकर्मियों का प्रोफेशनल एप्रोच। रविवार को गोरखपुर के प्रेक्षागृह में जगदीश चंद्र माथुर द्वारा लिखित ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध नाटक ‘कोणार्क’ का मंचन अभियान थिएटर ग्रुप द्वारा किया गया।
लोगों ने खरीदे 1000 तक के टिकट
प्रेक्षागृह में 275 सीटें हैं। इन सीटों के लिए 1000, 500 और 150 रुपये के टिकट रखे गए थे। अभियान थियेटर के श्रीनारायण पांडेय कहते हैं कि अच्छी बात यह है कि सबसे पहले 1000 रुपये वाले टिकट की बिक्री हुई। लोगों का उत्साह बता रहा है कि गोरखपुर में रंगमंच का भविष्य काफी अच्छा है। अभियान थिएटर ग्रुप की रंगमंडल इकाई द्वारा 25 अगस्त को गंभीर नाथ प्रेक्षागृह में खचाखच भरे दर्शकों के बीच जगदीश चंद्र माथुर द्वारा लिखित ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध नाटक कोणार्क का मंचन अभियान थिएटर ग्रुप के अध्यक्ष श्रीनारायण पाण्डेय के निर्देशन में किया गया। नाटककार ने इस नाटक में दो पीढ़ियों के अंतराल और दृष्टि वैभिन्य को तो उजागर किया ही है, आधुनिक संघर्षशील विद्रोही कलाकार को भी उभार कर रख दिया है। नाटक की कथावस्तु अत्यंत संक्षिप्त है।
कोणार्क में मंचन में बंधे रहे दर्शक, यह है कहानी
उत्कल नरेश महराज नरसिंह देव जिनकी कामना से 1200 शिल्पी करीबन 12 वर्षों से शिल्पी विशु की कल्पना को पूरा करने में लगे हैं। मुख्य शिल्पी विशु कोणार्क के मंदिर को बनाना चाहते हैं, विशु लगातार निराश हो रहे हैं क्योंकि वे 10 दिन से मंदिर के शिखर पर कलश स्थापित करना चाह रहे थे लेकिन वह पूर्ण नहीं हो पा रहा था। विशु सारिका से युवावस्था में प्यार करता है लेकिन जब वह गर्भवती हो जाती है तो उसे छोड़कर भाग जाता है। नरसिंह देव बंगाल में यौवनों को पराजित करके आने वाले हैं। उनके नहीं रहने पर वह शासन महामंत्री चालुक्य के हाथ में है जो बहुत ही दुष्ट और अराजक है। वह शिल्पियों को धमकी देता रहता है कि अगर एक सप्ताह में कलश की स्थापना नहीं हुई तो शिल्पियों के हाथ काट देगा। फिर एक आत्मविश्वास से भरा हुआ लड़का जिसका नाम धर्मपद है वह आश्वासन देता है कि 7 दिन में कलश की स्थापना कर देगा लेकिन वह पुरस्कार के रूप में विशु से एक दिन का पद और अधिकार मांगता है। जब महाराज अभिषेक कर रहे हों उसी दिन।
दूसरे अंक में कलश की प्रतिष्ठा हो जाती है। महाराज नरसिंह देव खुश होकर जब विशु को सम्मानित करना चाहते हैं तब विशु कहता है कि पुरस्कार का असली अधिकारी धर्म पद है। नरसिंह देव को जब दुष्ट चालुक्य के कारनामे का पता चलता है तो वह सभी शिल्पियों को उसका वेतन देते हैं और जो जमीन सैनिकों ने कब्जा किया था उसे आजाद करने की बात कहते हैं। धर्मपद का व्यक्तित्व इतना प्रभावित करता है कि नरसिंह देव उसे दुर्गापति बना देते हैं। चालुक्य ने शिल्पियों पर आक्रमण कर दिया है। धर्म पद युद्ध में घायल हो गए हैं उसके गले से हाथी दांत का कंकर गिर पड़ा था वह उसे माला को ढूंढता है। तब सौम्य जो विशु का दोस्त है, बताता है कि वह माला विशु ने उठा लिया है। धर्मपद खुश होता है क्योंकि वह माला उसकी मां ने दिया है। उसमें जो कंकर जड़ा हुआ था वह विशु ने ही बनाया था।
सौम्य धर्मपद से कहता है कि विशु ही तुम्हारे पिता हैं वह सहम जाता है वह कहता है कि मेरी मां ने मेरे पिता का कुछ और नाम बताया था तब विशु ने कहा कि हां मेरा असली नाम श्रीदत्त है, विशु मेरा छद्म नाम है। धर्मपद उस घायल अवस्था में भी शिल्पियों के पास जाना चाहता है। लेकिन उसके पिता विशु मोह के कारण रोकते हैं जिस पर धर्मपद कहता है, मैं जानता हूं आप कायर नहीं है पर मेरा मोह आपको दुर्बल बना रहा है। जाते-जाते आपको याद दिला दूं कि आप पिता होने के पूर्व शिल्पी हैं, कारीगर है। आज शिल्पी पर अत्याचार का प्रहार हो रहा है कला पर मधान्धता टूट पड़ी है। सौंदर्य को सत्ता पैरों तले रौंद रही है और कोणार्क आपका सुनहरा सपना जो घोंसले में आपके अरमानों का पंछी बसेरा लेने जा रहा था वही कोणार्क एक पामर पापी, अत्याचारी के हाथ का खिलौना बन जाएगा। आतंक के हाथों में जकड़ी हुई कला सिसकेगी। वही कारीगर की सबसे बड़ी हार होगी सबसे बड़ी हार। लेकिन जब चालुक्य सबको पराजित कर मंदिर की तरफ बढ़ता है, तब महा शिल्पी विशु खुद ही मंदिर को तोड़ देते हैं। सौम्य के मना करने पर भी यह उसे तोड़ देते हैं परिणाम स्वरूप चालुक्य और उसके सारे सैनिक उसमें दबकर मर जाते हैं। साथ में विशु और उनके सभी शिल्पी साथियों की भी मृत्यु हो जाती है।
इनकी रही नाटक में मुख्य भूमिका
इस नाटक के मुख्य भूमिका विशु - जय गुप्ता, धर्मपद की भूमिका में कृष्णा राज, राजीव की भूमिका में शुभम सिंह राजपूत और महामंत्री चालुक्य राहुल कुशवाहा ने दर्शकों को अपने अभिनय से चमत्कृत किया। महेंद्र वर्मन- विशाल प्रजापति, भास्कर- वैदेही शरण, प्रतिहारी - श्याम बाबू, अजय यादव, सनी निषाद, विपिन चौधरी ने भी अच्छा अभिनय किया। वाचिक, मूर्ति और नर्तकिया में कनक कुमारी, कलश कुमारी, गर्वित राय, सृष्टि जायसवाल, रितिका गुप्ता, संजना निषाद, आशीर्वाद श्रीवास्तव और सुमित वर्मा रहे।
पर्दे के पीछे इनकी रही भूमिका
इस नाटक का म्यूजिक- श्रेयस तिवारी, लाइट डिजाइन- विशाल कुमार, शिवांशु रावत, कास्ट्यूम -कनक कुमारी, कलश कुमारी, गर्विता ,सेट और प्रॉपर्टी- वैदेही शरण ,आयुष सिंह, अजय यादव, सनी निषाद, शुभम सिंह, विशाल कुमार रहे। मेकअप- सुमितेंद्र कुमार ने किया। सह निर्देशक सुमितेंद्र कुमार और कृष्णा राज रहे। इस नाटक का परिकल्पना और निर्देशन अभियान थिएटर ग्रुप के अध्यक्ष श्री नारायण पांडे ने किया। इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक डॉक्टर हर्षवर्धन राय ने लोगों का स्वागत किया, जबकि प्रस्तुतकर्ता -डॉक्टर सुधा मोदी, डॉक्टर ब्रजेन्द्र नारायण, माधवेन्द्र पांडे, विनोद राय ने दर्शकों का धन्यवाद किया।