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विकास प्राधिकरण के इंजीनियरों की 'नजर' पर संदेह ! गोरखपुर में अब ड्रोन पकड़ेगा अवैध निर्माण
Gorakhpur News: विकास प्राधिकरण अपने विस्तारित क्षेत्रों की निगरानी के लिए जेम पोर्टल से 2.59 लाख रुपये में ड्रोन की खरीद की गई है। जल्द ही इसका ट्रायल भी शुरू हो जाएगा।
Gorakhpur News: अवैध निर्माण मामले में गोरखपुर विकास प्राधिकरण (Gorakhpur Development Authority) पूरे प्रदेश में टॉप तीन में शुमार है। जाहिर है कि, ये निर्माण इंजीनियरों के आंख बंद करने के साथ ही प्राधिकरण की नीतियों के चलते हुए हैं। अब सरकार की आंख में धूल झोंकने के लिए प्राधिकरण के अफसरों ने 2.59 लाख रुपए का हाईटेक ड्रोन खरीदा है। दावा है कि, यह प्राधिकरण से 15 किलोमीटर दायरे में होने वाले अवैध निर्माण पर नजर रख सकेगा।
प्राधिकरण ने की ड्रोन की खरीद
विकास प्राधिकरण अपने विस्तारित क्षेत्रों की निगरानी के लिए जेम पोर्टल से 2.59 लाख रुपये में ड्रोन की खरीद की गई है। जल्द ही इसका ट्रायल भी शुरू हो जाएगा। प्राधिकरण उपाध्यक्ष आनंद वर्धन ने बताया कि, 'शहर में अवैध कॉलोनियों व अवैध निर्माण के लिए एक हाईटेक ड्रोन लिया गया है। जिसकी क्षमता करीब 15 किलोमीटर से अधिक है। शहरी क्षेत्र को अलग-अलग जोन में बांट कर ड्रोन से निगरानी की जाएगी। इसे उड़ाने के लिए प्राधिकरण के एक कर्मचारी को प्रशिक्षित भी किया जाएगा।'
एक बार चार्ज होने पर 32 किमी दूरी तय करेगा ड्रोन
गोरखपुर महायोजना 2031 में प्राधिकरण की सीमा का विस्तार होने से करीब 300 राजस्व गांव शामिल हो गए हैं। इसके अलावा अन्य विकसित क्षेत्रों में भी सीमा विस्तार की तैयारी में है। इन विस्तारित क्षेत्रों के साथ चिन्हित शहर में अवैध कॉलोनियों में निर्माण कार्य की निगरानी के लिए ड्रोन से मदद मिलेगी। बिना लेआउट स्वीकृत कराए कॉलोनियों पर निगरानी रखी जा सकेगी। यह ड्रोन एक बार चार्ज होने के बाद 46 मिनट में यह 32 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है।
73 अवैध कॉलोनियां अफसरों के नाक के नीचे बस गई
खुद जीडीए के दस्तावेज में गोरखपुर शहर में 73 अवैध कॉलोनियों को चिह्नित किया गया है। ये सभी कॉलोनियां शहर से सटी या बाहर हैं। अब प्राधिकरण ने नई महायोजना में इन कालोनियों को वैध कराने को लेकर कवायद की है। लेकिन शासन के शर्तों के चलते पूरा मामला फंस गया है। जीडीए उपाध्यक्ष शासन को कई पत्र लिख चुके हैं। लेकिन शासन की तरफ से जीडीए के जिम्मेदारों की अनदेखी से विकसित हुए कॉलोनियां को लेकर खास रियायत मिलती नहीं दिख रही है।