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Gorakhpur News: गोरखपुर यूनिवर्सिटी के तानाशाह कुलपति को छात्रों ने यूं ही नहीं पीटा, ऐसे बिगड़े हालात
Gorakhpur University Case Update: आखिर 67 साल के विश्वविद्यालय के इतिहास में आखिर कौन सी परिस्थितियां बनीं कि कुलपति को छात्रों ने पीट दिया? आखिर क्यो छात्रों के हाथ कुलपति के गिरेबान तक पहुंच गए? जिस गुरु की तरफ छात्र नजरें नहीं उठाते हैं।
Gorakhpur News: दीन दयाल गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.राजेश सिंह बीते शुक्रवार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आक्रोश की आग में झुलसे तो लोगों में यह विमर्श होने लगा कि आखिर 67 साल के विश्वविद्यालय के इतिहास में आखिर कौन सी परिस्थितियां बनीं कि कुलपति को छात्रों ने पीट दिया? आखिर क्यो छात्रों के हाथ कुलपति के गिरेबान तक पहुंच गए? जिस गुरु की तरफ छात्र नजरें नहीं उठाते हैं, उनपर हाथ उठाने की हिम्मत कैसे कर दिये?
5 सितम्बर 2021 को शिक्षक दिवस के दिन प्रो.राजेश सिंह ने कार्यभार ग्रहण किया था। तभी से वे खुद को ठाकुर साबित करते रहे और खुद को कुलाधिपति का करीबी बताने का जुगत करते रहे। इसी दंभ में उन्होंने कुलपति ने सारी शक्तियां अपने में समाहित कर लीं। कहने को तो विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार भी हैं, कुलसचिव भी और विभिन्न विभागों के अध्यक्ष भी। लेकिन एक भी निर्णय बिना कुलपति के सहमति के नहीं लिया जा सकता है। स्थितियां ऐसी बन गईं कि छात्रों की किसी समस्या का समाधान विभाग स्तर पर नहीं हो रहा था। एक छात्रनेता का कहना है कि ‘सेल्फ फाइनेंस कोर्स में शुल्क वृद्धि का मामला हो या फिर चाक की खरीदारी। बिना कुलपति के कुछ भी नहीं हो सकता। यदि किसी बात पर असहमति जताई गई तो कुलपति ने एकतरफा फैसला सुना दिया।
संवादहीनता की स्थिति में तल्खियां लगातार बढती गई।’ पूर्व प्रॉक्टर गोपाल प्रसाद छात्रों में काफी लोकप्रिय थे। लेकिन कुलपति ने उन्हें भरी सभा में गालियों से नवाजा। प्रत्यक्षदर्शी तो यहां तक बताते हैं कि कुलपति ने अपने प्रॉक्टर को तीन पीढ़ियों की गालियां दीं। प्रो.गोपाल प्रसाद समेत आधा दर्जन प्रोफेसरों के साथ कुलपति की बदसलूकी से भी छात्रों में गुस्सा था।
प्रो. अजय सिंह पर कुलपति की मेहरबानी से फूटा छात्रों का गुस्सा
कुलपति प्रो.राजेश सिंह विज्ञान विभाग के शिक्षक प्रो.अजय सिंह पर खासे मेहरबान हैं। वे यूनिवर्सिटी के दूसरे सबसे पॉवरफुल शिक्षक हैं। शुक्रवार को हुए बवाल में छात्रों ने प्रो.अजय सिंह को जमकर पीटा था। उनके पास 22 तरह के चार्ज है। इनमें से प्रमुख कुलसचिव, अधिष्ठाता छात्र कल्याण, अधिष्ठाता विज्ञान संकाय, अधिष्ठाता कृषि संकाय, निदेशक आईक्यूएसी, निदेशक इन्क्यूबेशन, विभागाध्यक्ष गृह विज्ञान, विभागाध्यक्ष कम्प्यूटर साइंस, नोडल अधिकारी पूर्वांचल विकास बोर्ड, समन्वयक रेट, समन्वयक रोस्टर समिति का पद है। छात्रनेताओं का कहना है कि कार्यवाहक कुलसचिव प्रो. अजय सिंह के पास करीब दर्जन भर प्रशासनिक पद हैं। इनमें ज्यादातर का सीधा सम्बंध छात्रों से है। छात्र किसी भी काम को लेकर जाते थे, तो सीधे तौर पर मना कर देते थे। छात्रों की कई समस्याएं हैं। लेकिन कई प्रमुख प्रशासनिक पद होने के कारण वे सभी पदों के साथ समान रूप से न्याय नहीं कर पा रहे थे। छात्रों के बीच इस बात को लेकर भी असंतोष था। इतना ही नहीं डीडीयू में कार्यवाहक कुलसचिव की भूमिका निभा रहे प्रो. अजय सिंह के पास कुलपति की अनुपस्थिति में कुलपति का भी प्रभार होता है। जबकि प्रो.अजय सिंह की वरिष्ठता सूची 22वें नंबर की है। इसके अलावा वित्त अधिकारी की अनुपस्थिति में भी वे प्रभारी वित्त अधिकारी की भूमिका में होते हैं।
हॉस्टल की बुरी स्थिति से छात्रों में गुस्सा
गोरखपुर यूनिवर्सिटी में कुल सात हास्टल हैं। इनमें से दो महिलाओं के हैं। सबसे पुराना हॉस्टल नाथ चंद्रावत में पिछले तीन साल में पीएसी का कब्जा है। ऐसे में दूर-दराज के छात्रों को दिक्कतें होती हैं। छात्र संगठन हास्टल को खाली कराने की मांग को लेकर कुलपति के पास पहुंचे लेकिन उन्हें सीधे मना कर दिया गया। कुलपति की मंशा थी कि हॉस्टल में पीएसी की तैनाती रहेगी तो छात्रों में कार्रवाई का खौफ रहेगा। इतना ही नहीं यूनिवर्सिटी प्रशासन हॉस्टल में रहने वाले छात्र-छात्राओं से मेस के नाम पर 18 से 20 हजार रुपये वसूलता है। लेकिन छात्रों का आरोप है कि मेस में खाना तो खराब रहता ही है, बमुश्किल 100 से 120 दिन ही मेस का संचालन होता है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से बकाया मांगना पड़ा भारी!
गोरखपुर यूनिवर्सिटी में दीक्षा भवन और संवाद भवन में कार्यक्रम कराने के लिए विवि प्रशासन को तय शुल्क अदा करना होता है। पिछले तीन वर्षों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया है। विवि प्रशासन का आरोप है कि तय शुल्क अदा नहीं किया गया है। सूत्रों की माने तो विवि प्रशासन ने परिषद से बकाये के 80 हजार को लेकर कई बार पत्र लिखा था। जिसे लेकर भी परिषद में गुस्सा था। सपा और कांग्रेस के छात्र संगठन चुटकी ले रहे हैं कि परिषद के कुलपति के भ्रष्टाचार और कदाचार पर परिषद के पदाधिकारियों ने कभी कुछ नहीं बोला। ऐसे में कुलपति को किसी शुल्क की मांग नहीं करनी चाहिए।
67 साल में पहली बार कुलपति के गिरेबान तक पहुंचे हाथ
डीडीयू के इतिहाल में 67 साल में पहली बार ऐसा हुआ कि छात्रों के हाथ कुलपति के गिरेबान तक पहुंचे। डीडीयू के पूर्व शिक्षक संघ अध्यक्ष प्रो. चितरंजन मिश्र बताते हैं कि, ‘वर्ष 1977 में प्रो. देवेन्द्र शर्मा कुलपति थे। उस समय आपातकाल खत्म हुआ था। छात्रों ने किसी मामले को लेकर कुलपति का घेराव किया था। उस समय छात्रों के क्लास का समय था। कुलपति ने तब कहा था कि जाओ क्लास करके आओ, मैं यहीं बैठा रहूंगा। दोबारा आकर मेरा घेराव करना। उनकी बात सुनकर छात्र क्लास करने चले गए। छात्र वापस आए और कुलपति को बैठा देखकर और उनके धैर्य को देखकर अपनी बात रखी और वापस चले गए।’