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Gorakhpur News: इंसेफेलाइटिस से राहत के सरकारी दावों के बीच नई आफत, इस स्तनधारी प्राणी में मिला इंसेफेलाइटिस का वायरस
Gorakhpur News: जल्द ही इस बीमारी को शून्य घोषित कर दिया गया है। राहत को लेकर सरकार के इन दावों के बीच बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) में हुई जांच में चमगादड़ में इंसेफेलाइटिस के वायरस मिले हैं।
Gorakhpur News: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन दिनों अपने भाषणों में दावा कर रहे हैं कि सरकार की योजनाओं और प्रयासों से पूर्वांचल का प्लेग कहा जाने वाला इंसेफेलाइटिस खत्मे की ओर है। जल्द ही इस बीमारी को शून्य घोषित कर दिया गया है। राहत को लेकर सरकार के इन दावों के बीच बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) में हुई जांच में चमगादड़ में इंसेफेलाइटिस के वायरस मिले हैं। अब स्वास्थ्य महाकमा यह जानने की तैयारी में है कि मच्छरों से फैलने वाला इंसेफेलाइटिस चमगादड़ों में कैसे पहुंच रहा है।
देश में कोरोना की पहली लहर में जब लॉकडाउन लगा था, उसी दौरान 26 मई 2020 को गोरखपुर के बेलघाट क्षेत्र की एक बाग में करीब 150 चमगादड़ मृत मिले थे। तब संदेह जताया गया था कि ये कोरोना वायरस के चलते मरे हैं। कोरोना के संदेह में वन व पशुपालन विभाग ने 52 चमगादड़ों के शव को पोस्टमार्टम व विस्तृत जांच के लिए बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) में भेजा था। आईवीआरआई में एनिमल एंड पब्लिक हेल्थ विंग की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हिमानी धान्जे की अगुवाई में टीम ने चमगादड़ों की हुई जांच रिपोर्ट यूपी सरकार की चिंताओं को बढ़ाने वाली है।
चमगादड़ के दिमाग के उतकों में वायरस की पहचान के लिए आरटीपीसीआर जांच हुई। उतकों (टिशू) में जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस मिला। पहली बार चमगादड़ में जेई की पुष्टि डॉ. हिमानी धान्जे ने बताया कि देश में अब तक कभी चमगादड़ों में जेई वायरस की मौजूदगी की पुष्टि नहीं हुई थी। पहली बार जेई वायरस चमगादड़ों में मिला है। डॉ. हिमानी ने बताया कि इंसानों में जेई वायरस मच्छरों के काटने से होता है। चमगादड़ों में यह वायरस कैसे पहुंचा, यह शोध का विषय है। डॉ. हिमानी धान्जे का दावा है कि चमगादड़ में भले ही इंसेफेलाइटिस वायरस मिला है, लेकिन तीन साल पहले इनकी मौत की मुख्य वजह हीट स्ट्रोक थी। उनके शरीर में पानी कम होने से ब्रेन हैमरेज हो गया था।
सरकार का दावा, पांच साल में जेई से होने वाली मौतों में 98 प्रतिशत की कमी
योगी सरकार के हेल्थ विभाग के जिम्मेदारों का दावा है कि चार दशक तक पूर्वी उत्तर के मासूमों पर कहर बरपाने वाली महामारी जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) पर अंतर विभागीय समन्वित प्रयासों से नकेल कस दी गई है। गोरखपुर मंडल में पिछले पांच साल में जापानी इंसेफेलाइटिस के कुल 322 मरीज मिले। इनमें से मात्र 26 की मौत हुई। मौतों की यह संख्या इस वर्ष अबतक शून्य, गत वर्ष एक और उसके पहले के वर्ष में महज तीन रही।
बता दें कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में 1978 में पहली बार दस्तक देने वाली इस विषाणु जनित बीमारी की चपेट में 2017 तक हजारों बच्चे असमय काल के गाल में समा गए और जो बचे भी उनमें से अधिकांश जीवन भर के लिए शारीरिक व मानसिक विकलांगता के शिकार हो गए। पिछले पांच सालों में ये आंकड़े दहाई से होते हुए इकाई में सिमटते हुए शून्य की तरफ हैं। आंकड़ों की तुलना से यह बात स्थापित भी होती है।
2017 में हुई थी 51 बच्चों की मौत
मसलन, 2017 में गोरखपुर मंडल में जापानी इंसेफेलाइटिस के कुल 389 मरीज मिले थे जिनमें से 51 की मौत हो गई थी। जबकि 2022 में मरीजों की संख्या 50 और मृतकों की संख्या मात्र एक रही। वर्ष 2023 में 11 अगस्त तक मंडल में सिर्फ चार जेई मरीजों का पता चला और ये सभी स्वस्थ होकर अस्पतालों से डिस्चार्ज हो गए। 2017 के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि जेई मरीजों की संख्या में 87 फीसद और मृतकों की संख्या में 98 प्रतिशत कमी आई है।
गोरखपुर मंडल में जेई से ग्रसित मरीजों की वर्षवार स्थिति
साल गोरखपुर देवरिया कुशीनगर महराजगंज
2019 35 31 26 44
2020 13 12 21 6
2021 12 28 28 12
2022 17 12 9 12
2023 0 2 2 0
गोरखपुर मंडल में जेई से मृत मरीजों की वर्षवार स्थिति
गोरखपुर देवरिया कुशीनगर महराजगंज
2019 5 1 4 6
2020 2 1 2 1
2021 0 0 1 2
2022 0 0 0 1
2023 0 0 0 0
(नोट : वर्ष 2023 के आंकड़े 11 अगस्त तक के हैं)