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Gorakhpur: अलीनगर, हुमायूंपुर और मिया बाजार का नाम बदल गया, डोमवा ढाला, कूड़ाघाट, डोमिनगढ़, ताड़ीखाना से नेताओं को कोई दिक्कत नहीं

Gorakhpur News: गोरखपुर में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वार्डों की संख्या 70 से 80 की गई तो अलीनगर, हुमायूंपुर और मिया बाजार वार्ड का नाम बदल दिया गया।

Purnima Srivastava
Published on: 16 Feb 2024 12:44 PM IST
Gorakhpur
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Gorakhpur  (photo: social media )

Gorakhpur News: जिलों से लेकर मोहल्लों के नाम बदलने की यूपी में सियासत हमेशा चरम पर रही है। सपा, बसपा या फिर अब भाजपा। सभी ने जिलों से लेकर मोहल्लों के नाम को अपनी वोट की सियासत को केन्द्र में रखकर बदला। मुगलसराय दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर हुआ तो फैजाबाद अयोध्या धाम हो गया। गोरखपुर में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वार्डों की संख्या 70 से 80 की गई तो अलीनगर, हुमायूंपुर और मिया बाजार वार्ड का नाम बदल दिया गया। लेकिन जातिसूचक रेलवे स्टेशनों से लेकर मोहल्लों के नाम बदलने को किसी को फिक्र नहीं है। डोमवा ढाला, कूड़ाघाट, डोमिनगढ़, ताड़ीखाना जैसे मोहल्ले और चौराहे का वजूद कायम है।

नगर निगम में पूर्व के वार्ड में शामिल अलीनगर अब आर्यनगर है। हुमायूंपुर अब हनुमंत नगर तो मिया बाजार अब माया बाजार है। लेकिन नाम को लेकर एक दूसरा पहलू भी है। इसपर नेताओं का ध्यान नहीं जाता क्योकि यह किसी की सियायत में नफा नुकसान नहीं डालता। गोरखपुर में वार्डों के नाम अब अयोध्या में मंदिर का ताला खोलने का आदेश देने वाले जज कृष्ण मोहन पांडेय से लेकर फिराक गोरखपुरी के नाम पर हो गए हैं। राम प्रसाद बिस्मिल से लेकर मत्स्येन्द्र नाथ के नाम से भी वार्ड हैं। नगर निगम में नामकरण समिति के अध्यक्ष रखे पार्षद ऋषि मोहन वर्मा का कहना है कि जिन मोहल्लों और वार्डों के नाम पर विवाद था उसे बदला गया। आगे किसी जगह के नाम को लेकर विवाद होगा तो उसे भी बदलेंगे।

मुस्लिमों की दुकानों पर उर्दू बाजार और हिन्दूओं की दुकानों पर हिन्दी बाजार

गोरखपुर में लखनऊ मार्ग से ट्रेन से एंट्री करें तो डोमिनगढ़ रेलवे स्टेशन स्वागत करता है तो वहीं देवरिया सड़क मार्ग से प्रवेश पर कूड़ाघाट नाम होर्डिंगों पर दिख जाता है। ऐसे में डोमवा ढाला, ताड़ीखाना, खूनीपुर आदि मोहल्लों को लेकर किसी को कोई दिक्कत नहीं दिखती है। असुरों का पर्याय माने चाने वाले असुरन बाजार लगातार तरक्की कर रहा है। इसी तरह शहर की पुरानी पहचान घंटाघर का इलाका उर्दू बाजार और हिन्दी बाजार के नाम से जाना जाता है। मुस्लिमों की दुकानों पर उर्दू बाजार तो हिन्दुओं की दुकानों पर हिन्दी बाजार लिखा मिल जाता है।

असुर चले गए असुरन रह गया

साहित्यकार रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी असुरन बाजार के अतीत को लेकर कहते हैं कि असुरन क्षेत्र पूरी तरह जंगल था। यहां असुर जनजाति के समुदाय के लोगों रहते थे। शहरी आबादी बढ़ी और जब पेड़ कटने लगे तो असुर जनजाति के लोगों का यहां से पलायन हो गया। ऐसा ही अतीत खूनीपुर मोहल्ले को लेकर भी है। इस इलाके में अभी भी चिट्ठी और कोरियर बिना खूनीपुर के जिक्र के नहीं होता है। पुराने लोगों बताते हैं कि हिंदुस्तारन की पहली जंग-ए-आजादी 1857 में इस मोहल्ले के लोगों ने बढ़चढ़ भागीदारी की। बहुत लोगों ने खून बहाया था। तभी से इस इलाके का नाम खूनीपुर हो गया।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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