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Gorakhpur News: फाइलेरिया से बचाव को चलेगा महाअभियान, 45.98 लाख लोगों को डोर-टू-डोर दवा देंगे स्वास्थ्यकर्मी

Gorakhpur News: इस लाइलाज बीमारी से बचने के लिए साल में एक बार पांच साल तक लगातार बचाव की दवा का सेवन करना अनिवार्य है। 10 अगस्त से दो सितम्बर तक जिले के करीब 45.98 लाख लोगों को स्वास्थ्य विभाग की टीम घर घर जाकर दवा खिलाएंगी।

Purnima Srivastava
Published on: 6 Aug 2024 6:17 PM IST (Updated on: 6 Aug 2024 6:20 PM IST)
Gorakhpur News
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Gorakhpur News: फाइलेरिया उन्मूलन संबंधित एमडीए अभियान को लेकर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में मीडिया कार्यशाला का आयोजन हुआ। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) संस्था के सहयोग से शहर के निजी होटल में आयोजित मीडिया कार्यशाला में कहा कि फाइलेरिया जिसे हाथीपांव के नाम से भी जानते हैं, ऐसी बीमारी है जो एक बार हो जाए तो पूरी तरह से ठीक नहीं होती है । इस लाइलाज बीमारी से बचने के लिए साल में एक बार पांच साल तक लगातार बचाव की दवा का सेवन करना अनिवार्य है। इस साल भी 10 अगस्त से दो सितम्बर तक जिले के करीब 45.98 लाख लोगों को स्वास्थ्य विभाग की टीम घर घर जाकर दवा खिलाएंगी। यह दवा अन्तर्राष्ट्रीय मानकों पर परखी हुई है। यह पूरी तरह से सुरक्षित और असरदार है ।

कार्यशाला में विश्व स्वास्थ्य संगठन, पाथ और पीसीआई संस्थाओं के प्रतिनिधिगण ने भी तकनीकी जानकारियां साझा कीं। कार्यशाला को संबोधित करते हुए एडी हेल्थ डॉ एनपी गुप्ता ने कहा कि लोगों तक यह संदेश जरूर पहुंचना चाहिए कि फाइलेरिया रोधी दवा की एक खुराक उनको और उनके परिवार के भविष्य को हमेशा के लिए सुरक्षित कर देती है। सभी लोग दवा का सेवन करें, यह सुनिश्चित करना समाज के सभी वर्गों की सामूहिक जिम्मेवारी है। इस मौके पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि क्यूलेक्स मादा मच्छर के काटने से होने वाली फाइलेरिया बीमारी से बचाव के लिए एक वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को दवा खानी है। एक वर्ष से दो वर्ष तक के बच्चे सिर्फ पेट से कीड़े निकालने की दवा खाएंगे।

इससे अधिक उम्र के लोग दो प्रकार की दवा खाएंगे। दवा का सेवन एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती माताओं और बिस्तर पकड़ चुके अति गंभीर बीमार लोगों को नहीं करना है। दवा को खाली पेट नहीं खाना है और इसे स्वास्थ्य विभाग की टीम के सामने ही खाना है। स्वास्थ्य विभाग की दो सदस्यीय टीम जिले के 9.19 लाख घरों पर जाएगी और पात्र लाभार्थियों को उनके आयु वर्ग के अनुसार निर्धारित मात्रा में दवा खिलाएगी। इसके लिए कुल 4198 टीम का गठन किया गया है। मीडिया कार्यशाला में उपस्थित सभी अधिकारियों और मीडिया कर्मियों ने फाइलेरिया उन्मूलन में सक्रिय सहयोग के लिए शपथ ली। सभी ने आश्वासन दिया कि वह न सिर्फ खुद दवा का सेवन करेंगे, बल्कि अपने आसपास के अधिकाधिक लोगों को दवा सेवन करवाने का प्रयास करेंगे। कार्यशाला के दौरान खुले सत्र का भी आयोजन हुआ जिसमें मीडिया के प्रतिनिधियों ने फाइलेरिया से संबंधित विभिन्न प्रकार के सवाल पूछे।

दवा के सेवन के बाद मतली, चक्कर आना, सिरदर्द जैसे लक्षण दूर होते

जिला मलेरिया अधिकारी अंगद सिंह ने बताया कि फाइलेरिया से हाथ, पैर, स्तन और अंडकोष में सूजन (हाइड्रोसील) जैसे लक्षण संक्रमित मच्छर के काटने के पांच से पंद्रह वर्ष बाद नजर आते हैं। एक बार हाथीपांव हो जाने के बाद उसे सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है, ठीक नहीं । इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति और उसका परिवार सामाजिक और आर्थिक तौर पर काफी पीछे चला जाता है। इस बीमारी से बचाने के लिए शहर के सात प्लानिंग यूनिट और ग्रामीण क्षेत्र के सभी ब्लॉक में इस साल अभियान चलेगा। श्री सिंह ने बताया कि कुछ लोग इस मिथक के कारण दवा का सेवन नहीं करते हैं कि दवा खुली हुई है और इसकी सुरक्षा में संशय है। ऐसे लोगों को यह संदेश दिया जा रहा है कि दवा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रमाणित है। इसे तभी खोला जाता है जब लाभार्थी को सेवन करवाना होता है। दवा का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होता है। जिन लोगों के भीतर पहले से माइक्रोफाइलेरी मौजूद होते हैं उन्हें दवा के सेवन के बाद मतली, चक्कर आना, सिरदर्द जैसे लक्षण आते हैं जो कुछ समय बाद स्वतः समाप्त हो जाते हैं। ये पूरी तरह से सामान्य लक्षण हैं और इनसे घबराने की आवश्यकता नहीं है।

फाइलेरिया चैंपियन ने सुनाई अपनी कहानी

इस मौके पर पिपराईच ब्लॉक के सरंडा गांव से पहुंचे फाइलेरिया चैंपियन संतराज (65) ने अपनी कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया ने न केवल उन्हें शारीरिक तौर पर कमजोर बनाया, बल्कि आर्थिक तौर पर भी पीछे किया । पहले यह बीमारी उनके पिता को थी और फिर उन्हें हुई। बीमारी की पहचान भी बड़ी मुश्किल से होती है। उनके गांव में फाइलेरिया रोगी नेटवर्क बना तो उससे जुड़ने के बाद इस बीमारी के बारे में काफी कुछ जानने का मौका मिला। अब वह समूह के माध्यम से गांव के दूसरे लोगों को भी बीमारी के बारे में बताते हैं और साल भर में एक बार दवा खाने के लिए प्रेरित करते हैं। समूह के सभी लोगों को फाइलेरिया प्रभावित अंग के रूग्णता प्रबंधन और व्यायाम की जानकारी भी मिली है जिसके जरिये वह पहले की अपेक्षा बेहतर जीवन जी रहे हैं।



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Shalini singh

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