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Gorakhpur News: संक्रमण मुक्त होता है मां का दूध, टीबी उपचाराधीन माताएं करा सकती हैं स्तनपान
Gorakhpur News: डीटीओ डॉ गणेश यादव ने बताया कि नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बच्चे के जन्म के बाद लगने वाला बीसीजी का टीका उन्हें टीबी समेत कई बीमारियों से लड़ने की शक्ति देता है।
Gorakhpur News: मां का दूध हर प्रकार से संक्रमण मुक्त होता है। ऐसे में अगर किसी माता को टीबी है और उनका उपचार चल रहा है तो वह भी मास्क लगा कर सावधानी के साथ बच्चे को स्तनपान करवाना जारी रखें। ऐसी माताओं द्वारा बच्चे को स्तनपान न कराना बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कर सकता है। साथ ही अगर किसी भी गर्भवती और धात्री महिला में टीबी का लक्षण दिखे तो अधिक सतर्कता बरतते हुए त्वरित जांच और इलाज करवाना चाहिए। यह कहना है जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ. गणेश यादव का। उन्होंने अपील की है कि अगर किसी गर्भवती या धात्री को लगातार दो सप्ताह से अधिक की खांसी आ रही है तो वह टीबी जांच जरूर करावें।
डीटीओ डॉ यादव ने बताया कि गर्भवती में समय से टीबी की पहचान न होने से बच्चे के समय से पहले जन्म, कम वजन वाले बच्चे के जन्म, अंतर्गर्भाशयी विकास प्रतिबंध और प्रसवकालीन मृत्यु में छह गुना वृद्धि का जोखिम बना रहता है। इसके ठीक विपरीत समय से जांच और इलाज शुरू हो जाने से मां और बच्चे दोनों सुरक्षित हो जाते हैं। टीबी ग्रसित गर्भवती और धात्री महिलाओं के उपचार के लिए राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत निश्चित प्रोटोकॉल तय हैं और इनके जरिये मां बच्चे दोनों का ध्यान रखा जाता है। इन मरीजों को यथाशीघ्र नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में भेजा जाना चाहिए। डॉ. यादव ने बताया कि ऐसी महिलाओं को मातृ सूक्ष्म पोषक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयरन, फोलिक एसिड तथा अन्य विटामिन और खनिज देना जारी रखना चाहिए। ऐसी स्थिति में गर्भावस्था के दौरान जब कैल्शियम का सेवन कम हो, तो प्रसवपूर्व देखभाल के भाग के रूप में कैल्शियम अनुपूरण की सिफारिश भी की जाती है। उपचाराधीन मां को दवा के साथ साथ चिकित्सक के परामर्श के अनुसार संतुलित आहार लेते हुए आराम भी करना चाहिए।
शीघ्र स्तनपान जरूरी
शाहपुर नगरीय स्वास्थ्य केंद्र की प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ. नीतू मौर्या का कहना है कि टीबी उपचाराधीन गर्भवती को भी प्रसव के तुरंत बाद यथाशीघ्र बच्चे के स्तनपान के लिए प्रेरित किया जाता है। ऐसी मां का दूध बच्चे के लिए पहला टीका होता है। मां को बच्चे के ओरल कांटैक्ट से बचने की सलाह दी जाती है। मास्क लगा कर स्वच्छता व्यवहार अपनाते हुए इन माताओं को भी छह माह तक सिर्फ अपना दूध ही बच्चे को पिलाने के लिए कहा जाता है। उपचाराधीन माता को हाथों की स्वच्छता का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। मां के दूध से बच्चे को टीबी का संक्रमण नहीं होता है, बल्कि यह बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर उसे टीबी जैसी बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।
देते हैं बचाव की दवा
डीटीओ डॉ गणेश यादव ने बताया कि नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बच्चे के जन्म के बाद लगने वाला बीसीजी का टीका उन्हें टीबी समेत कई बीमारियों से लड़ने की शक्ति देता है। स्तनपान भी बच्चे को इस बीमारी से बचाव का सामर्थ्य व पोषण प्रदान करता है। टीबी पीड़ित धात्री महिला के बच्चों को बचाव की दवा भी दी जाती है।
यह लक्षण दिखे तो गर्भवती-धात्री कराएं जांच
दो सप्ताह से अधिक की खांसी, शाम को पसीने के साथ बुखार, सीने में दर्द, सांस फूलना, वजन कम होना, बलगम में खून आना जैसी समस्याएं दिखें तो तत्काल गर्भवती-धात्री का जांच कराना चाहिए।