Gorakhpur: राम, बुद्ध और गोरखनाथ भारत-नेपाल एकता के मूल सूत्र - देवेंद्र राज कंडेल

Gorakhpur News: महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय और महाराणा प्रताप महाविद्यालय जंगल धूसड़ के संयुक्त तत्वावधान में हो रहे इस सेमिनार में कंडेल ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति और धर्म के लिए राजनीति छोड़ने भी पड़े तो छोड़ देना चाहिए।

Purnima Srivastava
Published on: 1 March 2024 10:33 AM GMT
Gorakhpur News
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Gorakhpur News (Pic:Newstrack)

Gorakhpur News: भारत और नेपाल की एकता का मूल आधार दोनों देशों की साझा अध्यात्म-संस्कृति है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, महात्मा बुद्ध और शिवावतार महायोगी गुरु गोरखनाथ भारत-नेपाल एकता के अक्षुण्ण मूल सूत्र हैं। यह कहना है नेपाल के पूर्व गृह राज्यमंत्री देवेंद्र राज कंडेल का। कंडेल शुक्रवार को महाराणा प्रताप महाविद्यालय जंगल धूसड़ में आयोजित 'भारत-नेपाल सांस्कृतिक अंतर्संबंधों की विकास यात्रा : अतीत से वर्तमान तक' विषयक तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।

महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय और महाराणा प्रताप महाविद्यालय जंगल धूसड़ के संयुक्त तत्वावधान में हो रहे इस सेमिनार में कंडेल ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति और धर्म के लिए राजनीति छोड़ने भी पड़े तो छोड़ देना चाहिए। 500 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद श्रीरामलला की जन्मभूमि अयोध्या में बने भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई तो उसे नेपाल में भी पर्व के रूप में मनाया गया। भगवान श्रीराम व माता सीता के चलते भारत नेपाल के आवागमन की परंपरा आज तक चली आ रही है। आज भी बिना पासपोर्ट और वीजा के लोग भारत और नेपाल की सीमाओं को पार करते हैं। यह हमारे आपसी मजबूत संबंधों को दर्शाता है।

उन्होंने नेपाल पर गुरु गोरखनाथ के प्रभाव की चर्चा करते हुए बताया कि नाथ संप्रदाय के नेपाल में कई जगह-जगह भव्य मंदिर हैं। उन्होंने सांस्कृतिक अंतर्संबंधों की और मजबूती के लिए दोनों देशों के शासन-प्रशासन को व्यावहारिक विचारों को अपनाने पर जोर दिया। साथ ही कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हम लोगों की वार्ता हुई है, जल्द ही गोरखपुर से नेपाल के लिए भी पर्यटक बसें चलाई जाएंगी।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए लुम्बिनी बौद्ध विश्वविद्यालय, लुम्बिनी, नेपाल के कुलपति प्रो. सुबरन लाल बज्राचार्य ने कहा कि भारत और नेपाल, दोनों देशों में अन्योन्याश्रित संबंध हैं। दोनों के सह अस्तित्व से यह संबंध ऊंचाई को प्राप्त करते हैं। इस पारस्परिक संबंध का आधार हिंदुत्व है। हिंदुत्व का सम्मान करने व हिंदुत्व को बढ़ावा देने से निश्चित रूप में नेपाल और भारत के संबंधों में धनिष्ठता और मधुरता आएगी। सांस्कृतिक आयाम ही हमारे लिए सबसे शक्तिशाली हथियार है।

उन्होंने कहा कि भारत-नेपाल के बीच खुली सीमा हमारे मजबूत संबंधों को दर्शाती है। भारत और नेपाल में कई जातीय समूह भी शामिल हैं। भारत-नेपाल संबंध में तभी धनिष्ठता आ सकती है जब हम धर्म संप्रदाय को ध्यान में रखते हुए हिंदुत्व को बढ़ावा दे। राजनीतिक कारणों से एक दूसरे के लिए उग्र होना बंद करना होगा। ऐसे में कुछ देश जो इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हैं उन्हें यह अवसर नहीं मिल सकेगा।

सारस्वत अतिथि के रूप में उपस्थित मध्य पश्चिम विश्वविद्यालय, सुर्खेत, नेपाल के उप कुलपति प्रो. नंद बहादुर सिंह ने कहा कि भारत और नेपाल का डीएनए एक है इसलिए दोनों के आपसी संबंध प्रगाढ़ हैं। दोनों देशों का मूल एक है। हमारे चार प्रमुख स्रोत हैं। धर्म, संस्कृति, भाषा व सभ्यता जो दोनों देशों में एक समान है। उन्होंने कहा कि बड़े भाई के रूप में नेपाल की रक्षा करना भारत का भी कर्तव्य है। नेपाल के बॉर्डर से नकली पैसों का आना जाना बंद होना चाहिए।

उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि वाल्मीकि विद्यापीठ, काठमांडू, नेपाल के प्राचार्य प्रो. भागवत ढकाल ने कहा कि हमारे संकल्प में भी भारत का जिक्र है। राम त्रेता युग के थे, वाल्मीकि भी त्रेता युग के हैं। नेपाल के लोग वाल्मीकि की जन्मस्थली नेपाल ही मानते हैं। अगर हम वेदों की बात करें तो चारों वेदों का निष्कर्ष दोनों देशों को एक ही बताते हैं। बुद्ध की जो ख्याति हुई वह नेपाल में हुई। हमारे पठन-पाठन की सामग्री, साहित्य में भी हमारे नियम समान है। हमारे देवता एक हैं, हमारे ग्रंथ हैं। जिस जगह पर हम आए हैं, आज वह अपना घर लगता है। हमारी सोच, हमारी जीवन शैली भी एक समान है।

विशिष्ट अतिथि पुष्पा भुषाल ने कहा कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन से दोनों देशों में समरसता बढ़ेगी। इस पर नेपाल सरकार ने अपने कदम आगे बढ़ाएं हैं। हम यहां का रहन-सहन, संस्कृति, राजनीतिक ऊर्जा सहित अन्य सभी चीज़े लेकर नेपाल गए और उसका नियमित रूप से हम निर्वहन करते हैं। 22 जनवरी को जब यहां राम उत्सव मनाया जा रहा था, ठीक उसी समय नेपाल सरकार ने बहुत ही धूमधाम से इसकी खुशहाली उत्सव के रूप में मनाया।

बीज वक्तव्य देते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा ने कहा कि भारत इस वर्ष अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव मना रहा है। जो हाल ही में 22 जनवरी को अयोध्या में आयोजित किया गया था। भारत नेपाल संबंधों में लुंबिनी से बोध गया तक आता है। नेपाल में जो नेपाली मुद्रा में गुरु गोरखनाथ का सम्मान है वह भी कहीं न कहीं नेपाल और भारत की मधुरता को दर्शाता है। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर में हर वर्ष लगने वाली खिचड़ी मेले में भी नेपाल के लोगों का जो झुकाव है। वह हमारे संबंधों को और मजबूत बना देता है।

महाराणा प्रताप महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव ने आगतों का स्वागत करते हुए कहा कि भारत और नेपाल दोनों देशों का मूल एक है। गोरखनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ से जो रिश्ता है उससे हम भाई हुए। 2014 के बाद भारत बदला है जिससे नेपाल और भारत के संबंध में और भी मधुरता आई है। ऐसी गोष्ठी का आयोजन हर वर्ष होना चाहिए। इसका आयोजन एक वर्ष नेपाल में तो अगले वर्ष भारत में में होना आवश्यक है। इससे दोनों देश एक दूसरे को अतीत से लेकर भविष्य तक समझ पाएंगे।

कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। अतिथियों ने भारत नेपाल के अंतर्संबंधों पर आधारित स्मारिका का विमोचन भी किया। इस अवसर पर आयोजन के संयोजकद्वय डॉ. पद्मजा सिंह और डॉ. सुबोध कुमार मिश्र, प्रो. कीर्ति पांडेय,डॉ. सुधाकर लाल श्रीवास्तव, डॉ. रामवन्त गुप्ता, डॉ. अमित उपाध्याय, डॉ. हर्षवर्धन, डॉ. उग्रसेन सिंह, डॉ. शैलेंद्र उपाध्याय, डॉ. नीरज सिंह, डॉ नीलांबुज, नेपाल से आए विद्वतजन प्रो. नरेंद्र कुमार श्रेष्ठ, डॉ. सागर न्यौपाने, भीम पराजुली, प्रो. सुधन कुमार पौडेल, प्रो. राजराम सुवेदी, श्रीकृष्ण अनिरुद्ध गौतम, प्रो. सुबोध शुक्ला, नारायण प्रसाद ढकाल,राजन कार्की, बाजिरा, बाल बहादुर पांडेय, डॉ. शिवकांत दूबे, कृष्ण हुमागाई, सुभेन्द्र यादव व विनय मिश्र समेत दोनों देशों के प्रतिभागी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

Durgesh Sharma

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