Gorakhpur News: अठारह शताब्दी तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति रहा भारत, बोले प्रो. अमरेश दूबे

Gorakhpur News: जेएनयू में अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त आचार्य प्रो. अमरेश दूबे ने कहा कि भारत पहले विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति था और उसी स्थिति को पुनर्प्राप्त करना है। आर्थिक स्थिति में हम पहले पायदान पर थे और पुनः पहले स्थान पर ही आना है।

Purnima Srivastava
Published on: 16 Sep 2024 10:43 AM GMT
Amresh Dubey said that India was the worlds biggest economic power till the eighteenth century
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प्रो. अमरेश दूबे ने कहा कि अठारह शताब्दी तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति रहा भारत: Photo- Newstrack

Gorakhpur News: जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त आचार्य प्रो. अमरेश दूबे ने कहा कि भारत पहले विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति था और उसी स्थिति को पुनर्प्राप्त करना है। आर्थिक स्थिति में हम पहले पायदान पर थे और पुनः पहले स्थान पर ही आना है। सुखद स्थिति यह है कि आजादी के बाद दशकों तक गरीबी और भुखमरी की चपेट में रहने के बाद देश बीते दस सालों से उसी रोडमैप पर आगे बढ़ चला है जिससे वह पहली शताब्दी से लेकर अठारहवीं शताब्दी तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में प्रतिष्ठित था।

प्रख्यात अर्थवेत्ता प्रो. दूबे सोमवार को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के दूसरे दिन ‘विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की ओर बढ़ता भारत’ विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने दो हजार वर्षों की विश्व की अर्थव्यवस्था को लेकर हुए एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि पहली शताब्दी में आठ-नौ देशों के पास विश्व की 70 प्रतिशत संपदा पर अधिकार था। इसमें भारत का हिस्सा अकेले 35 प्रतिशत था जबकि चीन की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत थी। तबसे लेकर अठारहवीं शताब्दी के अंत तक यही स्थिति बनी रही। अर्थात हम पहली आर्थिक शक्ति थे इसलिए आज बात तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति पर करने की बजाय चर्चा इस पर होनी चाहिए कि हम अपनी पहले नम्बर की स्थिति को कैसे दोबारा प्राप्त करें।

अठारहवीं शताब्दी में भारत अधिक संपन्न था

प्रो. दूबे ने कहा कि औद्योगिक क्रांति के दौर में अंग्रेजी शासन में उत्पादन प्रक्रिया को तीव्रतम करने के लिए भारत की संपदा को बाहर भेजना शुरू किया। दूसरा आजादी मिलने के बाद भी भारत में सोवियत यूनियन की तर्ज पर वामपंथी आर्थिक नीति का अनुसरण होने लगा। कालांतर में इसका प्रभाव यह हुआ आजादी मिलने के बाद भी 1970 में विश्व स्तर पर संपदा के मामले में भारत की हिस्सेदारी महज 2.5 प्रतिशत रह गई। उन्होंने कहा कि 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो इसकी गिनती दुनिया के सबसे गरीब देशों में थी जबकि एक अंग्रेज विद्वान ने अपने अध्ययन में कहा था कि अठारहवीं शताब्दी में अविभाजित भारत के मुर्शिदाबाद का एक सामान्य व्यक्ति रहन-सहन और खाने-पीने के मामले में लंदन के सामान्य व्यक्ति से अधिक संपन्न था।

प्रो. दूबे ने कहा कि 1947 में जब देश आजाद हुआ तो विश्वेश्वरैया जी के नेतृत्व में आर्थिक पुनर्निर्माण, गरीबी और भुखमरी से मुक्ति के लिए नेशनल डेवलपमेंट कमेटी का गठन किया गया लेकिन 1950 में गणराज्य बनने के बाद देश में इस कमेटी की अनुशंसाओं को दरकिनार कर सोवियत यूनियन वाली प्लानिंग को अपनाया जाना शुरू कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि गरीबी पर कुछ असर नहीं पड़ा। गरीबी हटाओ का नारा तो दिया गया लेकिन देश में आर्थिक संपदा बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया गया। जबकि यह तथ्यपूर्ण सत्य है कि बिना संपदा बढ़ाए गरीबी नहीं हटाई जा सकती।

प्रो. दूबे ने आजादी के बाद से अब तक की आर्थिकी का विश्लेषण करते हुए कहा कि 2013 तक अर्थव्यवस्था के मामले में उतार चढ़ाव के बीच पॉलिसी पैरालिसिस वाली स्थिति रही। पर, 2014 से पिछले दस सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की आर्थिक संपदा बढ़ाने और गरीबी हटाने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित समावेशी कदम उठाए हैं। जिस देश में 1974 में गरीबी 55 से 65 प्रतिशत तक रही हो, वहां के लोग अब गर्व कर सकते हैं कि भारत मे 2023 में गरीबी एक प्रतिशत से भी नीचे रह गई है। उन्होंने कहा कि देश की आबादी के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। बीते सात सालों से यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के साथ ही विकास के जो समावेशी प्रयास किए हैं, वे अभूतपूर्व हैं। इससे यह तय हो गया है कि देश की अर्थव्यवस्था को पुराना गौरव दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में उत्तर प्रदेश ही निभाने जा रहा है।

सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा ने कहा कि अर्थव्यवस्था किसी भी देश की आर्थिक दिशा व दशा का निर्धारण करती है। पिछले कुछ वर्षों से भारत की अर्थव्यवस्था सुधरी है, जिसके कारण आज दुनिया में भारत की सुनी जा रही है। पहले वह देश शक्तिशाली होता था जिसके पास सेनाएं व युद्ध उपकरण अधिक होते थे, किंतु आज वह देश शक्तिशाली है जिसकी अर्थव्यवस्था मजबूत है।

युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में सम्मेलन का दूसरा दिन: Photo- Newstrack

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा भारत

इसी कारण से पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर भारत विश्व में मजबूती से खड़ा है और आगे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से अगले तीन वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ अग्रसर है। तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर भारत न केवल विश्व में मजबूती से प्रस्तुत होगा बल्कि प्रत्येक भारतीय की आय दर में भी वृद्धि होगी। इस दिशा में विचार करने पर हमें अपने बीच में एक चक्रवर्ती उदाहरण के रूप में हमारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मिलते हैं, जो अपने कार्यकाल में उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को चरमोत्कर्ष पर ले जा रहे है।

सम्मेलन की अध्यक्षता गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ ने की।।इस अवसर पर सम्मेलन को गुरुधाम वाराणसी से पधारे श्रीमद् जगद्गुरु अनंतानन्द द्वाराचार्य काशीपीठाधीश्वर स्वामी डॉ. रामकमल दास वेदांती, नासिक महाराष्ट्र से पधारे योगी विलासनाथ, कटक उड़ीसा से पधारे महंत शिवनाथ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सम्मेलन में आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य डॉ. रामजन्म सिंह, वैदिक मंगलाचरण डॉ रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पाण्डेय व गौरव तिवारी तथा संचालन माधवेंद्र राज ने किया। इस अवसर पर सुग्रीव किला अयोध्या से स्वामी विश्वेष प्रपन्नाचार्य, सवाई आगरा से ब्रह्मचारी दासला ,रावत मंदिर अयोध्या धाम से महंत राम मिलन दास, सतुआ बाबा आश्रम काशी से महंत संतोष दास, देवीपाटन शक्तिपीठ तुलसीपुर से महंत मिथिलेश नाथ, महंत रवींद्र दास, काशी से योगी रामनाथ आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

Shashi kant gautam

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