बिना आयुर्वेदिक औषधियों के पूरा नहीं होगा भारत को टीबी मुक्त करने का संकल्प

Gorakhpur News: विश्व आयुर्वेद मिशन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष एवं लाल बहादुर शास्त्री आयुर्वेद महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. जीएस तोमर ने कहा कि क्षय रोग (टीबी) के प्रबंधन में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति बेहद कारगर है।

Purnima Srivastava
Published on: 27 July 2024 11:17 AM GMT
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बिना आयुर्वेद नहीं पूरा होगा भारत को टीबी मुक्त करने का संकल्प (न्यूजट्रैक)

Gorakhpur News: विश्व आयुर्वेद मिशन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष एवं लाल बहादुर शास्त्री आयुर्वेद महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. जीएस तोमर ने कहा कि क्षय रोग (टीबी) के प्रबंधन में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति बेहद कारगर है। आयुर्वेद में हजारों वर्षों से इस रोग के कारण, लक्षण और उपचार का विस्तृत वर्णन मिलता है।

डॉ. तोमर शनिवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, गोरखपुर के अंतर्गत संचालित गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (आयुर्वेद कॉलेज) के रोग निदान एवं विकृति विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित ‘क्षय रोग का निदान-आयुर्वेदीय दृष्टिकोण’ विषयक व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक विश्व को टीबी मुक्त करने की योजना बनाई है। जबकि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2025 तक ही भारत को टीबी मुक्त करने का संकल्प लिया है। उनका मानना है कि यह लक्ष्य आयुष की सहभागिता के बिना संभव नहीं है। उनके निर्देश पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एवं आयुष मंत्रालय के बीच एमओयू हुआ है।

डॉ. तोमर ने बताया कि आयुर्वेद में टीबी रोग को राजयक्ष्मा कहा गया है। जब रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तब माइकोबैक्टीरियम ट्युबरकुलाई नामक जीवाणु संक्रमण द्वारा इस रोग को उत्पन्न करता है। उन्होंने कहा कि आजकल क्षय रोगियों की संख्या में हो रही वृद्धि ही नहीं बल्कि मल्टी ड्रग रजिस्टेन्ट ट्युबरकुलोसिस सबसे बड़ी चिंता का विषय है। उन्होंने परामर्श देते हुए कहा कि पोषक आहार एवं सही जीवनशैली के साथ आयुर्वेद में वर्णित व्याधिक्षमत्व वर्धक औषधियों के प्रयोग से न केवल एन्टी ट्युबरकुलर ट्रीटमेंट की अवधि को कम किया जा सकता है अपितु इनके घातक दुष्प्रभावों से बचाते हुए प्रयुक्त आधुनिक औषधियों की प्रभावकारिता को भी बढ़ाया जा सकता है। यही नहीं एमडीआर टीबी को भी आयुर्वेद औषधियों को साथ में प्रयोग करके रोका जा सकता है।

टीबी में इन औषधियों का प्रयोग कारगर

डॉ. तोमर ने टीबी के उपचार हेतु स्वर्ण बसन्त मालती रस, य़क्ष्मारि लौह, शिलाजत्वादि लौह के साथ साथ च्यवनप्राश व पिप्पली क्षीरपाक के सफलतम परिणामों के बारे में भी अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में अश्वगंधा, शतावरी, गिलोय, तुलसी, रुदन्ती, बला, मुलैठी, काली मिर्च, सोंठ, हल्दी एवं पिप्पली जैसी अनेक इम्युनोमोड्यूलेटर औषधियाँ उपलब्ध हैं जो क्षय रोग के नियंत्रण में संजीवनी सिद्ध हो सकती हैं। उन्होंने यह सुझाव राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन के तकनीकी समूह में भी रखे हैं जिससे क्षय रोग पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सके। व्याख्यान में आयुर्वेद कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य डॉ. नवीन के, रोग निदान विभाग के प्रो. गोपीकृष्ण, प्रो. शांति भूषण, प्रो. गिरिधर वेदांतम, डॉ. सन्ध्या पाठक एवं डॉ. सार्वभौम सहित सुश्रुत बैच के सभी विद्यार्थी उपस्थित रहे।

निशुल्क आयुर्वेदिक चिकित्सा शिविर में डॉ. तोमर ने दिए 165 मरीजों को परामर्श

गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ ऑफ मेडिकल साइंसेज बालापार में आयोजित निशुक्ल आयुर्वेदिक चिकित्सा शिविर में विश्व आयुर्वेद मिशन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जीएस तोमर ने 165 मरीजों को परामर्श दिए। इस दौरान उन्होंने कहा कि आयुर्वेद में वर्णित आदर्श जीवनशैली, प्राकृतिक चिकित्सा, योग और आहार पर ध्यान दिया जाए तो जटिल और गंभीर रोग का भी शत प्रतिशत उपचार संभव है।

Shishumanjali kharwar

Shishumanjali kharwar

कंटेंट राइटर

मीडिया क्षेत्र में 12 साल से ज्यादा कार्य करने का अनुभव। इस दौरान विभिन्न अखबारों में उप संपादक और एक न्यूज पोर्टल में कंटेंट राइटर के पद पर कार्य किया। वर्तमान में प्रतिष्ठित न्यूज पोर्टल ‘न्यूजट्रैक’ में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं।

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