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Gorakhpur News: DDU में होली पर कार्यशाला, 60 प्रतिभागियों ने ‘रंग बरसे’ के जरिये होली की परम्परा को जाना

Gorakhpur News: गोरखपुर विश्वविद्यालय ने कहा कि कार्यशालाएँ केवल प्रशिक्षण का माध्यम नहीं होतीं, बल्कि यह संस्कृति और परंपरा के संरक्षण का सशक्त माध्यम भी हैं।

Purnima Srivastava
Published on: 10 March 2025 10:19 PM IST
Gorakhpur News
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Gorakhpur News: दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया (भाई) एवं विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय पारंपरिक होली गीत कार्यशाला ‘रंग बरसे’ का सोमवार को भव्य समापन हुआ।

मुख्य अतिथि प्रो. सुग्रीव नाथ तिवारी, निदेशक, इंजीनियरिंग संकाय, डी.डी.यू. गोरखपुर विश्वविद्यालय ने कहा कि कार्यशालाएँ केवल प्रशिक्षण का माध्यम नहीं होतीं, बल्कि यह संस्कृति और परंपरा के संरक्षण का सशक्त माध्यम भी हैं। लोकसंगीत को जीवंत बनाए रखने और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने में इस तरह के आयोजन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला में प्रतिभागियों के उत्साह और उनके प्रदर्शन को देखकर प्रसन्नता हुई।

कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि के स्वागत एवं अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित करने से हुई। इसके बाद प्रतिभागियों ने पिछले दो दिनों में सीखे गए पारंपरिक होली गीतों का मनमोहक प्रदर्शन किया, जिसमें ‘आज जमुना के तीर ये कान्हा होली खेले अइहा…’ और ‘खेले मसाने में होली दिगंबर खेले मसाने में होली…’ शामिल थे। प्रतिभागियों की उत्साहपूर्ण प्रस्तुति ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। अंग्रेज़ी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अजय शुक्ला ने कहा कि भोजपुरी लोकगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक हैं। इस कार्यशाला ने यह सिद्ध कर दिया कि अंग्रेज़ी विभाग के छात्र भी पारंपरिक लोकसंस्कृति को आत्मसात कर सकते हैं, जिससे उनकी अपनी संस्कृति और परंपरा के प्रति गहरी रुचि और जुड़ाव का प्रमाण मिलता है।

परम्पराओं को जीवंत बनाए रखते हैं लोकगीत

कार्यशाला निदेशक डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने प्रशिक्षुओं के समर्पण की सराहना करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को लोकसंस्कृति से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। लोकगीतों में न केवल प्रेम, भक्ति और हास्य का अद्भुत समावेश होता है, बल्कि ये हमारी परंपराओं को भी जीवंत बनाए रखते हैं। इस कार्यशाला में प्रतिभागियों ने न केवल गीतों को सीखा, बल्कि उनकी आत्मा को भी समझा। कार्यशाला के अंतिम दिन कुल 60 प्रतिभागियों ने भाग लिया। ढोलक संगत मो शकील ने दी और कार्यक्रम का संचालन शिवेंद्र पांडेय ने किया। कार्यशाला के समापन पर सभी प्रतिभागियों को प्रशिक्षण प्रमाण पत्र वितरित किए गए, जिससे वे इस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित हो सकें। इस अवसर पर राकेश मोहन , कनक हरि अग्रवाल , अफ़रोज़ आलम सहित तमाम लोग उपस्थित थे।

Ramkrishna Vajpei

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