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हाल ए सरकार: भ्रष्टाचार+अपराध=कराहती काशी

raghvendra
Published on: 8 July 2023 5:39 PM IST
हाल ए सरकार: भ्रष्टाचार+अपराध=कराहती काशी
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को स्मार्ट सिटी का तमगा हासिल है। शहर को संवारने को लेकर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ तक की नजर वाराणसी पर लगी रहती है, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि काशी का ना तो अपेक्षाकृत विकास नहीं हो रहा है और ना ही कानून व्यवस्था के मोर्चे पर पुलिस मुस्तैद दिख रही है। भ्रष्टाचार और अपराध के गठजोड़ से काशी कराह रही है। ऐसा लग रहा है कि स्थानीय प्रशासन बेबस हो चुका है।

अपराधी बेखौफ होकर वारदात को अंजाम दे रहे हैं। पिछले एक महीने में बदमाशों ने 6 लोगों को मौत की नींद सुला दिया और पुलिस सिर्फ लकीर पीट रही है। आलम ये है कि एक दशक के बाद वाराणसी और आसपास के जिलों में फिर से गैंगवार की आहट मिलने लगी है। सिर्फ कानून व्यवस्था ही क्यों, भ्रष्टाचारी अफसरों के अंदर भी सरकार का खौफ नहीं दिख रहा है। पीडब्ल्यूडी और जलकल जैसे महत्वपूर्ण विभागों में अफसरों की कमीशनखोरी ठेकेदारों के लिए जानलेवा बनती जा रही है।

तहसील के अंदर ठेकेदार की हत्या

यूपी की सत्ता में आते ही योगी सरकार के एजेंडे में दो प्रमुख मुद्दे थे। कानून-व्यवस्था को सख्त करना और भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस। संगठित अपराध पर लगाम लगाने के लिए एनकाउंटर का दौर शुरू हुआ। सीएम ने पुलिसवालों के बंधे हुए हाथ खोल दिए। अपराधियों से साफ कह दिया गया या तो यूपी की सीमा छोड़ दो या फिर गोली खाने के लिए तैयार रहो। नतीजा ये हुआ है कि अपराधी जमानत तुड़वाकर जेल जाने लगे। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनावी मंच से योगी आदित्यनाथ की पीठ थपथपाई और कानून-व्यवस्था को दुरुस्त बताया। लेकिन खुद उनके ही संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

30 सितंबर को तहसील परिसर में ठेकेदार और बस संचालक नितेश सिंह बबलू की हत्या इसकी बानगी है। अपराधियों के अंदर पुलिस का खौफ शायद गायब है, तभी तो उन्होंने वारदात को अंजाम देने के लिए भीड़भाड़ वाले तहसील परिसर को चुनने से भी गुरेज नहीं किया। तहसील के अंदर उन्हें गोलियों से छलनी कर बदमाश आराम से फरार हो गए। घटना को लेकर तरह-तरह की कयासबाजी लगाई जा रही है।

गैंगवार की आशंका से दहली पुलिस

वाराणसी में दबंग किस्स के नितेश सिंह की हत्या के बाद जरायम की दुनिया में अचानक सरगर्मी बढ़ गई है। पूर्वांचल में एक बाहुबली परिवार के बढ़ते कद के बीच नितेश की हत्या से सनसनी फैल गई है। वारदात में जिन हथियारों का इस्तेमाल किया गया और जिन शूटरों ने घटना को अंजाम दिया, उससे पुलिस की सांसें फूलने लगी है। चंदौली के धानापुर के रहने वाले नितेश सिंह लेबर सप्लाई के साथ ही बस संचालक थे। वाराणसी-गाजीपुर रुट के अलावा मध्यप्रदेश में उनकी दर्जनों बसें चलती हैं। इसके अलावा उन्होंने कम वक्त में ही अच्छी-खासी दौलत जुटा ली थी। पिछले कुछ दिनों से वे पूर्वांचल के एक बाहुबली एमएलसी के निशाने पर थे। उसकी वजह ये थी कि नितेश बाहुबली के एक विरोधी की मदद कर रहे थे और ये बात बाहुबली परिवार को खटक रही थी।

यही नहीं डीपी सिंह हत्याकांड में शामिल एक कुख्यात से भी नितेश की अनबन चल रही थी। नितेश लगातार इस कुख्यात की जमानत का विरोध कर रहे थे। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक नितेश सिंह के नाम पर सारनाथ में चार और कैंट थाने में एक केस दर्ज है। उनके खिलाफ रासुका की भी कार्रवाई हो चुकी है। 2013 में नितेश के चचेरे भाई अजय खलनायक के ऊपर भी जानलेवा हमला हो चुका था। उस हमले में खलनायक गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। पुलिस को आंशका है कि नितेश की हत्या के बाद पूर्वांचल के माफियाओं में फिर से जंग तेज हो सकती है क्योंकि नितेश कई अपराधियों को न सिर्फ शरण देते रहे हैं बल्कि उनकी खुलकर आर्थिक तौर पर मदद भी करते थे।

कारोबारियों में झुन्ना पंडित का आंतक

वाराणसी और आसपास के जिलों में कभी मुन्ना बजरंगी, अन्नू त्रिपाठी, बाबू यादव, विश्वास नेपाली सरीखेे बदमाशों की तूती बोलती थी। ये बदमाश शहर की प्रमुख मंडियों के अलावा डॉक्टर और बड़े कारोबारियों से हर महीने करोड़ों रुपए वसूलते थे, लेकिन वक्त के साथ बदलाव आया। इसमें से अधिकांश बदमाश या तो मार दिए गए या फिर अंडरग्राउंड हो गए। इस बीच हाल के दिनों में एक लाख के इनामी झुन्ना पंडित का नाम तेजी से सुर्खियों में है। जरायम की दुनिया में झुन्ना पंडित की गिनती एक बड़े अपराधी के तौर पर होने लगी है। पूर्वांचल के बड़े माफियाओं के लिए झुन्ना पंडित चुनौती बनकर उभरने लगा है। पिछले दिनों झुन्ना पंडित ने जमीन के एक विवाद में जिस तरह से दिव्यांग पान विक्रेता को गोली मारी, उसका अंदाज को देखने के बाद पुलिसवाले भी दंग रह गए। रियल स्टेट से जुड़े कई बड़े कारोबारी झुन्ना पंडित के निशाने पर हैं।

पिछले कुछ सालों से वह बनारस बड़े कारोबारियों से रंगदारी मांग रहा है। उसके आतंक से सिर्फ रियल स्टेट ही नहीं दूसरे अन्य कारोबार से जुड़े लोग भी परेशान हैं। दिव्यांग पान विक्रेता के अलावा उसने पाइप कारोबारी धर्मेंद्र कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी थी। फिलहाल पुलिस के लिए झुन्ना पंडित एक बड़ी चुनौती बन चुका है, जिससे पार पाना आसान नहीं होगा। झुन्ना पंडित की तलाश में पुलिस यूपी के अलावा देश के कई अन्य प्रदेशों और नेपाल की खाक छान रही है, लेकिन अभी तक उसे कामयाबी नहीं मिली है।

ताबड़तोड़ हत्याओं से दहला शहर

सिर्फ सितंबर महीने की ही बात करें तो पांच हत्याएं हो चुकी हैं। हैरानी इस बात की है कि सभी वारदात को बदमाशों ने दिनदहाड़े खुलेआम अंजाम दिया गया। दिव्यांग पान विक्रेता और ठेकेदार नितेश सिंह के अलावा चेतगंज के कालीमहाल इलाके में प्रॉपर्टी के विवाद में पुरोहित केके उपाध्याय और उनकी पत्नी की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

हैरानी इस बात की है कि दंपति पुलिस से लगातार अपने जान की सुरक्षा के लिए गुहार लगा रहा था, लेकिन पुलिस ने एक नहीं सुनी। इस मामले में भी पुलिस के मुख्य अभियुक्त की तलाश है। सारनाथ इलाके में नारंगी देवी नाम की एक बुजुर्ग महिला की हत्या कर दी गई। अति सुरक्षित माने जाने वाले बीएचयू कैंपस में भी बदमाशों ने जमीन के विवाद में चाय विक्रेता को मौत के घाट उतार दिया।

भ्रष्टाचार के आंकठ में डूबे ये विभाग

नौकरशाही में जिस तरह से कमीशन का खेल जारी है, उसने आम लोगों के नाक में दम कर दिया है। लोग अब ये कहने लगे है कि बीजेपी सरकार में नौकरशाह बेलगाम हो चुके हैं। अधिकांश दफ्तर भ्रष्टाचार के आकंठ डूबे हैं। हर विभाग में कमीशन का रेट फिक्स है। अगर वाराणसी की बात करें तो यहां पर जिला पंचायत में ठेकेदारों से 30-35 फीसदी कमीशन लिया जाता है। नगर निगम में 15-20 फीसदी, इसी तरह पीडब्ल्यूडी में 15-25 फीसदी और बिजली विभाग में 10-15 फीसदी रकम बतौर कमीशन चुकानी होती है। एक ठेकेदार ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि इतनी मोटी रकम चुकाने के बाद भी पेमेंट कब मिलेगा, तय नहीं होता है।

अब सवाल इस बात का है कि जब विकास का एक बड़ा हिस्सा नौकरशाहों के जेब में पहुंच जाएगा तो क्या उम्मीद की जाए? वाराणसी में भ्रष्टाचार की जो जड़ें जमी हैं, उसका असर भी देखने को मिल रहा है। पीएम से लेकर सीएम तक शहर को चमकाने में लगे हैं, लेकिन सिर्फ दो-तीन कामों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश कार्य या तो अधूरे पड़े हैं या फिर उनकी गुणवत्ता को लेकर सवाल उठ रहे हैं। शहर में चाहे सडक़ों का हाल हो या फिर सफाई का। ऐसा लग रहा है कि स्थानीय प्रशासन हर मोर्चे पर फेल हो चुका है।

सरकारी दफ्तरों में जानलेवा कमीशनखोरी

सरकारी सिस्टम में इस कदर दीमक लग चुका है कि अब कमीशनखोरी ने जानलेवा शक्ल अख्तियार कर ली है। पीडब्ल्यूडी और जलकल विभाग इसके दो बड़े उदाहरण हैं। दोनों ही विभागों में घूसखोरी चरम पर है। आलम ये है कि पीडब्ल्यूडी विभाग में ठेकेदारी करने वाले एक शख्स ने चीफ इंजीनियर के दफ्तर में खुद को गोली मार ली। इसके पीछे जो वजह सामने आई, उसने सिस्टम की पोल खोल दी। बताया गया कि विभाग के अफसरों ने कमीशनखोरी के चक्कर में ठेकेदार अवधेश श्रीवास्तव का लाखों रुपए रोक रखा था। ठेकेदार अपने पैसे के लिए लगातार विभाग के चक्कर काट रहा था, लेकिन अफसर कमीशन के बगैर पेमेंट करने पर राजी नहीं थे। दूसरी तरफ कर्ज बढऩे से ठेकेदार डिप्रेशन में आ गया था।

29 अगस्त को अवधेश श्रीवास्तव ने चीफ इंजीनियर के दफ्तर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इस घटना की गूंज लखनऊ तक सुनाई दी। कुछ अफसरों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई, लेकिन अभी भी कई विभागों में कमीशन का खेल खुलेआम हो रहा है। कमीशनखोरी का शिकार जलकल विभाग के विनय श्रीवास्तव भी बने हैं। जब उन्होंने विभाग के अफसरों की जेब गरम नहीं की तो पहले उनके फर्म को ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया और फिर उनका लाखों का भुगतान रोक दिया। पेमेंट के लिए विनय पिछले 8 महीने से अफसरों से गुहार लगा रहे थे, लेकिन जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो विनय ने जहर खा लिया।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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