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सरकारी तंत्र की लापरवाही से बंद हो रहे उद्योग
कपिल देव मौर्य
जौनपुर: सरकारी तंत्र की लापरवाही एवं सरकारी सुविधाओं के अभाव के चलते जिले में उद्योग अंतिम सांसें गिनता नजर आ रहा है। इसका नतीजा यह है कि बेरोजगारी बढ़ रही है। शासन-प्रशासन जिले के औद्योगिक क्षेत्रों की तरफ से बेखबर बना हुआ है। सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते उद्योग जगत से जुड़े लोग निराश हैं। उद्योगों के बंद होने से लोग रोजगार की समस्याओं से भी जूझ रहे हैं।
औद्योगिक इकाइयों के मालिक अपनी समस्याओं को लेकर सरकारी विभागों के चक्कर लगाते नजर आते हैं, लेकिन उनके निराकरण में इतनी देरी कर दी जाती है कि उद्यमी थक हारकर घर बैठने को मजबूर हो जाते हैं। उद्यमियों की समस्याएं दूर कराने के लिए बने विभाग की दशा इतनी खराब है कि उसका कोई पुरसाहाल नहीं है। दो बाबुओं के सहारे इस विभाग का संचालन हो रहा है। यहां पर अधिकारी कभी कभार ही नजर आते हैं। इसका परिणाम यह है कि सरकार की मंशा पर पानी फिरता दिख रहा है।
सतहरिया में बंद हो गयीं तमाम इकाइयां
लगभग 29 साल पहले केन्द्र की राजीव गांधी सरकार के शासनकाल में जिले के पश्चिमांचल में मुख्यालय से 50 किमी दूर इलाहाबाद-जौनपुर की सीमा के पास स्थित सतहरिया को औद्योगिक क्षेत्र घोषित किया गया था। इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 28 जून 1989 को किया था। स्थापना काल के समय यहां पर लगभग 172 औद्योगिक इकाइयां लगी थीं, लेकिन स्थापना के एक दशक बाद ही विभिन्न समस्याओं के चलते यहां से पलायन शुरू कर दिया। यहां कुल 80 औद्योगिक इकाइयां ही बाकी बचीं। इसके बावजूद सरकार की ओर से ध्यान नहीं दिया गया।
इसका परिणाम है कि वर्तमान समय में यहां पर चौधराना स्टील, विंध्यवासिनी स्टील,जौनपुर टेक्सटाइल, सुमन टेक्सटाइल, रघुबंसी टायर, अमित आयल, पेप्सी कोला सहित कुल 63 औद्योगिक इकाइयां ही तमाम समस्याओं को झेलते हुए कार्यरत हैं। सरकारी तंत्र की लापरवाहियों के चलते पेप्सी कोला को भी 2009 में बन्द कर दिया गया था, लेकिन बाद में 2013 में इसे पुन: चालू कर दिया गया है। औद्योगिक इकाइयों के बंद होने का परिणाम यह है कि भारी संख्या में लोगों का रोजगार छिन गया है।
शिकायतों का निस्तारण नहीं
औद्योगिक क्षेत्रों में आज भी सडक़, पानी, बिजली के साथ उद्यमियों की समस्या दूर करने के लिए वन विन्डो की सुविधा नहीं काम कर रही है। सतहरिया में सडक़ों का बुरा हाल है। सडक़ पूरी तरह से गढ्ढे में तब्दील हो चुकी है। सडक़ बनवाने के लिए सरकारी स्तर पर किसी तरह का प्रयास न होने से यहां के उद्यमी खासे दु:खी एवं नाराज हंै। यहां की समस्या दूर करने के लिए स्थापित सीडा में तमाम शिकायती पत्र डम्प पड़े हुए हैं। सीडा की समस्याओं के बाबत सीडा प्रबंधक से बात करने की कोशिश करने पर उन्होंने बात करने से मना कर दिया। साथ ही कहा कि समस्याएं अपने तरीके से हल होती रहती हैं। उन्होंने समस्याओं के लिए उद्यमियों को जिम्मेदार ठहरा दिया।
नहीं मिल रही पर्याप्त बिजली
यहां पर्याप्त मात्रा में बिजली न मिलने के कारण उद्यमियों को अपनी जनरेटर के सहारे इकाइयां संचालित करनी पड़ रही है। इससे उनका प्रोडक्ट बाजार दर से अधिक मूल्य पर तैयार हो रहा है। उद्यमी मुनाफा कम होने का खमियाजा भुगतने को मजबूर हैं। यही स्थिति कमोबेश सभी औद्योगिक क्षेत्रों की है। सरकारी लापरवाही के कारण समस्याएं मुंह फैलाए खड़ी हैं। जिला प्रशासन सहित सम्बन्धित विभाग समस्याएं सुलझाने के प्रति उदासीन है।
औने-पौने दाम पर जमीन बेचने को मजबूर हुए उद्यमी
इसके अलावा रोजगार सृजन के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वाराणसी-जौनपुर सीमा के पास स्थित त्रिलोचन बाजार के पास एक औद्योगिक क्षेत्र बनाया था। यहां पर इक्का दुक्का छोडक़र उद्यमी अपनी औद्योगिक इकाई चलाने का साहस ही नहीं जुटा सके। वे औने पौने दाम पर अपनी जमीन को बेचकर जाने को मजबूर हो गये थे क्योंकि सरकारी स्तर से किसी तरह की सुविधा यहां मुहैया नहीं कराई गई। सुविधाएं न होने से उद्यमी यहां से लौट गये जिसका परिणाम रहा कि इलाके के लोग दूरदराज जाकर रोजगार तलाशने को मजबूर हैं। यही हाल जिले के दक्षिणांचल में स्थित जौनपुर-भदोही की सीमा पर स्थित सिधवन औद्योगिक क्षेत्र का भी है। यहां पर लगे उद्योग लगभग बंद हो चुके हैं।