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हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल थे शाहजहांपुर ये क्रांतिकारी, देश के लिए दी कुर्बानी

उत्तर प्रदेश का शाहजहांपुर जिला अपने अतीत में आजादी की लड़ाई तमाम कुर्बानियों के लिए जाना जाता है। शहीदों की नगरी के रूप में विख्यात शाहजहांपुर की सरजमी पर राम प्रसाद बिस्मिल, आशफाक और रोशन सिंह जैसे अमर शहीदों की जन्म भूमि रही है।

priyankajoshi
Published on: 14 Aug 2017 7:02 PM IST
हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल थे शाहजहांपुर ये क्रांतिकारी, देश के लिए दी कुर्बानी
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शाहजहांपुर : उत्तर प्रदेश का शाहजहांपुर जिला अपने अतीत में आजादी की लड़ाई तमाम कुर्बानियों के लिए जाना जाता है। शहीदों की नगरी के रूप में विख्यात शाहजहांपुर की सरजमी पर राम प्रसाद बिस्मिल, आशफाक और रोशन सिंह जैसे अमर शहीदों की जन्म भूमि रही है।

साथ यहां की सरजमी ने हमेशा साम्प्रदायिक सदभाव की मिशाल पूरे देश में पेश की है। आजादी के 6 दशक बीत जाने के बाद भी यहां के बाशिन्दे क्रान्तिकारियों से अपने जुड़ाव पर गर्व महसूस करते हैं।

आजादी की खातिर चूमा था फांसी का फंदा

जुस्त जू नहीं है, न है कोई आरजू, तमन्ना बस यही है कि कोई रख दे राखे-ए-वतन कफन पे। इन शब्दों के साथ अमर शहीद अशफाक उल्ला खां ने आजादी के खातिर फांसी का फंदा चूमा था। ये वही अशफाक उल्ला खां है, जो शाहजहांपुर के एमन जई जलाल नगर के पठान परिवार मे यहां 22 अक्टूबर सन 1900 को जन्मे थे। शाहजहांपुर के मिशन स्कूल में उन्होने शुरूआती शिक्षा ग्रहण की और यही पर उनकी दोस्ती प. राम प्रसाद बिस्मिल से हो गई।

क्रांतिकारियों की टोली में हुए शामिल

बिस्मिल का परिवार यहां के खिरनी बाग मोहल्ले में रहता था लेकिन वे पक्के आर्य समाजी होने के नाते यहां के आर्य समाज मंदिर में रहते थे। बाद में इन दोनों की दोस्ती इतनी चर्चित और गाढ़ी हो गई कि इस पक्के पठान ने बिस्मिल के निवास स्थान आर्य समाज में ही रहना शुरू कर दिया। जहां से ये अपनी शैक्षिक और क्रान्तिकारी गतिविधियों के बारे योजनाए बनाने का दौर शुरू हुआ। बचपन में देश के प्रति मर मिटने के जज्बे के साथ अशफाक जवानी के दौर में ही बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की टोली में शामिल हो गए।

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आजादी के लिए फिरंगिरयों के खजाने को लूटा

शहीद अशफाक उल्ला खां साहब के पौत्र अशफाक उल्ला खां की मानें तो बिस्मिल के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों की टोली दिनोदिन मजबूत होती जा रही थी। लेकिन उनके सामने देश की जंगे आजादी को जीतने के लिए हथियारों की कमी सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही थी। समस्या को दूर करने के लिए सरकारी खजाने को ले जाने वाली ट्रेन को लूटने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा था। लिहाजा सभी क्रान्तिकारियों ने एकराय होकर 9 अगस्त 1925 को काकोरी में फिरंगिरयों के खजाने को ले जा रही ट्रेन को चन्द्र शेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन और राजेन्द्र लाहड़ी जैसे क्रान्तिकारियों ने लूट लिया। स्वतन्त्रता आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए लूटी गई ट्रेन का अंग्रेज सरकार पर करारी चोट लगी। इसी से बौखलाए फिरंगियों ने 26 दिसम्बर 1925 को पूरे उत्तर प्रदेश से 40 लोगों को गिरफ्तार किया जिसमें शाहजहांपुर के बिस्मिल, आशफाक और रोशन सहित 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया। जिन्हे अलग अलग जेलों में डालकर दो साल तक मुदकमें चलाए जाते रहे।

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मिली फांसी की सजा

19 दिसंबर 1927 में राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, आशफाक को फैजाबाद जेल और 20 दिसंबर को इलाहाबाद की मलाका जेल में रोशन को ट्रेन लूट का आरोपी मानते हुए फांसी दे दी गई। इन शहीदों ने देश को आजाद कराने में अपनी जान न्यौछावर कर दी। आजादी के 65 साल गुजरने के बाद भी शाहजहांपुर के बासिन्दे इस बात पर फक्र करते हैं कि उनका जन्म भी उसी सरजमी पर हुआ है जहां क्रान्तिकारी ही पैदा हुए है।

देश के लिए सबक है इनकी दोस्ती

आशफाक और बिस्मिल की दोस्ती देश के मौजुदा हालात में लोगों के लिए एक सबक साबित हो सकता है क्योंकि जब अंग्रेज एक दूसरे को लड़वा रहे थे तब अलग अलग धर्मो के इन दो महान क्रान्तिकारियों ने एक ही थाली में खाना खाकर जंगे आजादी में अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए। आज शाहजहांपुर की सरजमी और उसके बासिन्दे इन दोनों महान शहीदों को उनकी कुर्बानी के लिए सलाम करती है।

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इन्होंने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत नई दिल्ली में एनडीटीवी से की। इसके अलावा हिंदुस्तान लखनऊ में भी इटर्नशिप किया। वर्तमान में वेब पोर्टल न्यूज़ ट्रैक में दो साल से उप संपादक के पद पर कार्यरत है।

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