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ग्राउंड रिपोर्ट: कड़ाके की ठंड में ठिठुर रहे नौनिहाल, नहीं बंटा स्वेटर

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Published on: 12 Jan 2018 12:36 PM IST
ग्राउंड रिपोर्ट: कड़ाके की ठंड में ठिठुर रहे नौनिहाल, नहीं बंटा स्वेटर
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सुधांशु सक्सेना

लखनऊ। योगी सरकार की नौनिहालों को स्वेटर बांटने की अब तक फ्लाप रही है। स्कूली बच्चे कड़ाके की ठंड में बिना स्वेटर ही स्कूल जाने को मजबूर हैं। उधर टेंडर प्रक्रिया के नाम पर लंबा समय गुजारने के बाद सूबे के बेसिक शिक्षा विभाग ने स्वेटर बांटने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर थोपकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है। शिक्षक जहां एक ओर 200 रुपये में स्वेटर बांटने से हाथ खड़े कर रहे हैं तो दूसरी ओर कुछ स्कूलों में शिक्षक अपनी जेब से अधिक मूल्य के स्वेटर खरीदकर अपनी नौकरी बचाने की जुगत में लगे हैं। गौरतलब है कि यूपी के बेसिक स्कूलों में पढऩे वाले 1.54 करोड़ नौनिहालों को सरकार ने स्वेटर देने का वादा किया था मगर भीषण ठंड में भी यह काम पूरा नहीं हो सका है। अपना भारत ने इस योजना की जमीनी हकीकत की पड़ताल की।

केस 1 : जूते फट गए, स्वेटर मिला ही नहीं

'अपना भारत' की टीम जब नगर जोन 3 के जियामऊ प्राथमिक विद्यालय पहुंची तो वहां सौरभ नाम का एक लड़का बिना जूते पहने खेलता नजर आया। उसने अपने साइज से कहीं बड़ा एक नीले रंग का स्वेटर पहन रखा था। सौरभ ने बताया कि वह इसी स्कूल में कक्षा 1 में पढ़ता है, जो जूते उसे मिले थे वे फट गए। पिता मूंगफली बेचकर परिवार चलाते हैं। इसलिए उसके पास कोई स्वेटर नहीं है। पड़ोस की एक दीदी से उसकी मां ने स्वेटर मांगा था। उसे पहनकर ही वह स्कूल आता है। इसी तरह कक्षा 1 में पढऩे वाली सोजल के पिता रिक्शाचालक हैं। गरीबी के चलते वह बिना स्वेटर ही स्कूल आने को मजबूर है। कुछ यही हाल वहां पढऩे वाले बाकी बच्चों का भी था। स्कूल में मौजूद शिक्षिका सरिता ने बताया कि यहां 105 बच्चे पढ़ते हैं, अभी सिर्फ 10 बच्चों को ही स्वेटर बांट पाए हैं। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय से इतना ज्यादा दबाव था कि याहियागंज मार्केट से 225 रुपये में स्वेटर खरीदकर बांटना पड़ा। एक कक्षा 5 के बच्चे का स्वेटर तो 300 रुपये में खरीद कर दिया है। तब जाकर नौकरी बच पाई है। बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों की उदासीनता का जिक्र करते हुए बताया कि यहां तो सबकुछ शिक्षकों पर ही मढ़ दिया जाता है। किताबें आधा सत्र बीतने के बाद सितंबर में पहुंचीं। सफाई कर्मचारी नहीं आता है, खुद जमादार को हर दूसरे दिन 50 रुपये देकर स्कूल की सफाई करवानी पड़ती है। अगर किसी बच्चे का जूता फट जाता है तो अभिभावक हमसे ही शिकायत करते हैं। 200 रुपये में स्वेटर बांटने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर लाद देना न्यायसंगत नहीं है। बड़े बच्चों के स्वेटर किसी हाल में 300 रुपये से नीचे नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में कैसे स्वेटर बांटें, यह समझ में नहीं आ रहा है।

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केस 2: आखिर कहां से बांट दें स्वेटर

गोमतीनगर के राआसरेपुरवा पूर्व माध्यमिक विद्यालय में कक्षा 6 से लेकर 8 तक के 70 बच्चे पढऩे आते हैं। कक्षा 7 में पढऩे वाली प्रीति शर्मा ने बताया कि हम लोग कड़ाके की ठंड में बिना स्वेटर ही स्कूल आते हैं। इस समय हमारे पेपर चल रहे हैं। इसलिए स्कूल आना भी जरूरी है। भीषण ठंड है मगर अभी तक स्वेटर नहीं मिला है। इसी स्कूल की रोशनी तिवारी और भारती ने बताया कि यहां किताबें भी बहुत लेट बंटी थीं, पुरानी किताबों से ही पढ़ाई हुई थी। अब तक स्वेटर भी नहीं मिला है। ऐसे में ठंड में पढऩे का मन नहीं करता है। पेपर के चलते मजबूरी में स्कूल आते हैं। पिता मजदूरी करते हैं, इसलिए स्वेटर मांगकर ही पहन रहे हैं। यहां पढऩे वाली मुस्कान, शालू, साक्षी और नैंसी का भी यही कहना है। यहां परीक्षा कराते मिले शिक्षक राजेंद्र शुक्ला ने बताया कि हम लोग अपनी जेब से स्वेटर खरीदें तभी बांट पाएंगे। बजट आया नहीं है, कोई उधारी पर स्वेटर देने को तैयार नहीं। एक दुकानदार से बात हुई तो उसने 275 रुपये से कम में स्वेटर देने से इनकार कर दिया। ऐसे में कहां से स्वेटर बांटें?

केस 3: कार्यक्रम में बुलाकर बांटे आधे अधूरे स्वेटर

प्राथमिक विद्यालय बरफखाना में पढऩे वाले मोहम्मद सलमान ने बताया कि स्कूल में 100 बच्चे हैं। इनमें से 50 को टीचर एक कार्यक्रम में ले गए थे। वहां उन लोगों को स्वेटर बांटे गए थे, लेकिन बाकी के 50 बच्चों को अभी तक स्वेटर नहीं मिला है। टीचर कहती हैं कि जब पैसा आएगा तब स्वेटर मिल जाएगा। ऐसे में बाकी बच्चे बिना स्वेटर ही स्कूल आने को मजबूर हैं।

केस 4: पिता के पास पैसे नहीं वरना स्वेटर पहनते

नगर क्षेत्र के पूर्व माध्यमिक विद्यालय जियामऊ में कक्षा 7 में पढऩे वाले निर्भय तिवारी ने बताया कि उसके पिता प्रिंटिंग प्रेस में मजदूरी करते हैं। उसके पांच-भाई बहन हैं। पिता के पास स्वेटर खरीदने के पैसे नहीं हैं। स्कूल में भी स्वेटर नहीं बंटा है। मम्मी ने जब यहां टीचर से पूछा था तो उन्होंने कहा कि अभी हमारे पास पैसे नहीं आए हैं। अगर पिता के पास पैसे होते तो स्वेटर पहनने को मिलता। यहां की इंचार्ज पूनम त्रिपाठी ने कहा कि यहां 26 बच्चे आते हैं। स्वेटर मार्केट में नहीं मिल रहा है। दूसरा इतने कम पैसे में स्वेटर मिलना मुश्किल है। इसलिए अभी तक स्वेटर नहीं बंटा है। अधिकारी खुद के पैसे से स्वेटर बांटने का दबाव बना रहे हैं। ऐसे में स्वेटर कैसे बांटे, समझ में नहीं आ रहा है।

केस 5: टीचर ने फोन से पूछकर बताया रेट

रामआसरे पुरवा के प्राथमिक विद्यालय में 145 बच्चे पढ़ते हैं। इसमें से 60 बच्चों को यहां की इंचार्ज नम्रता सिंह ने अपने पास से मैरून रंग के पूरी बांह के स्वेटर बांटे हैं। पूछने पर बताया कि अधिकारियों का फोन आया था कि दो दिन के अंदर स्वेटर बांटकर फोटो भेजिए। तब आनन-फानन में अपने पास से स्वेटर खरीदकर बांटा है। जब हमने उनसे रेट पूछा तो उन्होंने किसी को फोन लगाकर पूछा कि मीडिया के लोग आए हैं, कितना रेट बताऊं। फिर उन्होंने फोन रखकर कहा कि आप ये मान लीजिए कि 200 में ही मिला है। ज्यादा बताने से पैसा वापस तो मिलना नहीं है। हमने याहियागंज से ओसवाल कंपनी के स्वेटर खरीदे हैं, बाकी आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं।

तेजी से स्वेटर बांटने का मंत्री का दावा

बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल ने बताया कि एक बार शुरुआत में हमने जब कोटेशन मांगा था तो एक कंपनी ने 198 रेट कोट किया था। यह रेट एल वन साइज के स्वेटर का था। बाद में यह कोटेशन तकनीकी कारणों से मेच्योर नहीं हो पाया। इसलिए हमने 200 रुपये स्वेटर का रेट तय किया। स्वेटर बंटना शुरू भी हो गए हैं। तेजी से स्वेटर वितरण का कार्य किया जा रहा है। आगे से इस योजना को बेहतर ढंग से पूरा किया जाएगा।

200 रुपये में खरीदने हैं स्वेटर

अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा राजप्रताप सिंह ने बताया कि टेंडर प्रक्रिया को खत्म करते हुए नौनिहालों के स्वेटर खरीदने का जिम्मा प्रबंध समितियों को दिया गया है। उन्हें चार सदस्यीय कमेटी बनाकर स्वेटर खरीदना होगा। कमेटी में बतौर सदस्य एक अभिभावक को भी रखा जाएगा। किसी भी कीमत पर 200 रुपये अधिक नहीं खर्च करना है। बीस हजार से लेकर एक लाख तक की धनराशि को कोटेशन के माध्यम से लेकर उसमें से फर्म को फाइनल करके स्वेटर बांटा जाएगा। अगर स्वेटरों की लागत एक लाख से ऊपर की है तो उसके लिए प्रबंध समिति को एक चार सदस्यीय समिति बनाकर निविदा मांगनी होगी।

बीएसए का 180 रुपये में ही स्वेटर बांटने का दावा

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी ने बताया कि हमने पहले दिन ही 10 हजार स्वेटर बांटकर रिकार्ड बनाया था। उन्होंने बताया कि जिले में एक लाख सत्तर हजार बच्चे बेसिक स्कूलों में पढ़ते हैं। इनमें 10 हजार को बांटकर शुरुआत की है। बाकी बच्चों को भी बांट दिया जाएगा। हमने एक संस्था के जरिए एक बार डिस्ट्रीब्यूशन करवाया था, 180 रुपये में ही स्वेटर बंट गया था। अगर किसी शिक्षक को स्वेटर न मिले तो हमसे पूछ ले, हम बता देंगे कि किस मार्केट में मिलेंगे। वहां से वो आसानी से खरीदकर स्वेटर बांट सकता है। एक बार स्वेटर बांटकर हमें बिल भेजे, हम तुरंत भुगतान कर देंगे। स्वेटर बांटना हमारी प्राथमिकता है, जबकि हकीकत यह है कि अभी तक जिले में सिर्फ 6 प्रतिशत नौनिहालों को ही स्वेटर बंट पाया है।

प्राथमिक शिक्षक संघ अड़ा

बीएसए प्रवीण मणि त्रिपाठी ने दावा किया कि जिले का प्राथमिक शिक्षक संघ उनके साथ है, लेकिन जिला प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष सुधांशु मोहन का कहना है कि वह किसी भी हाल में अपने पास से खरीदकर स्वेटर नहीं बांटेंगे। एक तो पैसे अपने पास से लगाओ और गुणवत्ताहीन होने का आरोप लगे तो सस्पेंशन झेलो। ये हम लोग कतई स्वीकार नहीं करेंगे। जिले के अधिकारी या तो स्वेटर खरीदकर दें या फिर खुद बंटवा दें। वह इस मुहिम में शामिल नहीं होंगे।

200 में तो ढंग का मफलर भी नहीं मिलेगा

राजधानी के एक यूनीफार्म वितरक अतुल चौधरी ने बताया कि 200 रुपये में स्वेटर बांटना एक तरह से मजाक ही है। इतनी कम कीमत में पूरी बांह का स्वेटर मिलना ही मुश्किल है। अगर मिल भी गया तो उसकी गुणवत्ता बहुत खराब होगी। आजकल 200 रुपये में ढंग का मफलर भी नहीं मिलता है। ऐसे में बच्चों के लिए ढंग का स्वेटर मिलना बहुत मुश्किल है।

रेट पर अटक गई थी डील

बेसिक शिक्षा निदेशालय के सूत्रों की मानें तो नौनिहालों के लिए स्वेटर वितरण करने के लिए सितंबर में ही टेंडर मांगे गए थे। इसके बाद नगर निकाय चुनावों की आचारसंहिता लागू हो गई तो 16 नवंबर को चुनाव आयोग को पत्र लिखकर टेंडर प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति ली गई। विभाग को दो दिन में ही यानी 18 नवंबर को अनुमति भी मिल गई। इसके बाद टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई। इसमें टेक्निकल और फाइनेंशियल बिडों को खोल भी लिया गया था। टेंडर प्रक्रिया में पांच फर्मों ने भाग लिया था। इनमें से दो फर्म टेक्निकल बिड पार करके फाइनेंशियल बिड तक पहुंची थी। जब इन दोनों के लिफाफे खोले गए तो फर्मों ने अनुमानित 200 की दर से कहीं अधिक 362 रुपये के आसपास रेट कोट किया था। जब इस पर बात नहीं बनी तो विभाग ने किरकिरी से बचने के लिए जिम्मेदारी प्रबंध समितियों पर डाल दी।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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