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गुजरात में भाजपा को हिन्दुत्व की मलाई खाने से रोकने में जुटी कांग्रेस

raghvendra
Published on: 8 Dec 2017 12:55 PM IST
गुजरात में भाजपा को हिन्दुत्व की मलाई खाने से रोकने में जुटी कांग्रेस
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अंशुमान तिवारी

लखनऊ: गुजरात की चौसर पर इस बार चालें एक ही तरह की चली गयी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव में विजयगाथा लिखने के लिए तकरीबन एक ही तरह की बिसात बिछाई है। पूरा चुनाव हिन्दुत्व के ही आसपास सिमटा हुआ है-हाई हिन्दुत्व बनाम सॉफ्ट हिन्दुत्व। मोदी व राहुल दोनों ने कास्ट केमेस्ट्री को खूब भुनाया। दोनों ने बहुमत की राजनीति की। पहली बार दाढ़ी और टोपी गुजरात के चुनावी एजेंडे में नहीं है। मोदी के मुद्दों पर कांग्रेस ने बढ़त हासिल की मगर खुद को गुजरात अस्मिता व गौरव के केन्द्र में लाकर मोदी ने कांग्रेस की तमाम चालों को पलीता लगा दिया। जो चुनाव मुख्यमंत्री विजय रुपानी बनाम कांग्रेस के किसी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के बीच होना चाहिए था उसे नरेन्द्र मोदी व राहुल गांधी के बीच का चुनाव बनाकर भाजपा ने अपनी जीत का मार्ग प्रशस्त कर लिया।

गुजरात गौरव व अस्मिता के सवाल ने भाजपा की बढ़त की इबारत लिख दी है। विभिन्न सर्वे में भले ही सीटों के कम ज्यादा होने की बात कही जा रही हो मगर भाजपा की सीटें कम होने की बात किसी भी सर्वे में नहीं है। गुजरात की पिच पर मोदी ने कांग्रेस को अपने ही मुद्दों पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर दिया और यही मोदी की सबसे बड़ी कामयाबी है जिसके नतीजे 1८ दिसम्बर को आएंगे। गुजरात गौरव व स्वाभिमान की लड़ाई को सघन करने में मोदी जितने कामयाब होंगे आंकड़ों का पहाड़ उतना ही उनके पक्ष में होगा। गुजरात गौरव की लड़ाई इस बार सरदार पटेल से आगे निकलकर मोरारजी देसाई तक आ गयी है। मोदी इस बार गुजरात के लोगों को बता रहे हैं कि कांग्रेस किस तरह गुजरातियों के खिलाफ काम करती है। इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान मोरारजी देसाई को जेल तक भेजा था।

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इस बार मोदी उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में नहीं हैं, लेकिन फिर भी वे ही इस चुनाव की मुख्य धुरी बने हुए हैं। पूरा चुनाव उन्हीं के इर्द-गिर्द घूम रहा है। दूसरी ओर गुजरात चुनाव राहुल गांधी के राजनीतिक जीवन के लिए एक बड़ी लड़ाई साबित होने जा रहा है।

गुजरात चुनाव के बीच में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनकी ताजपोशी भी तय हो गयी है। उन्हें पता है कि गुजरात चुनाव के नतीजों का संदेश बहुत दूर तक जाएगा। यूपी में भारी विजय के बाद यदि भाजपा गुजरात भी जीतने में कामयाब हो गयी तो भाजपा का पूरा प्रचार तंत्र इसे मोदी की बहुत बड़ी कामयाबी के रूप में प्रचारित करेगा। इसके साथ ही कांग्रेस के लिए 2019 की चुनावी लड़ाई भी काफी मुश्किल हो जाएगी। इसलिए राहुल गांधी ने भी इस चुनाव में अपना सबकुछ झोंक रखा है। 18 दिसंबर को गुजरात के साथ हिमाचल प्रदेश के भी नतीजे भी आएंगे, लेकिन चर्चा में तो गुजरात का सरदार ही रहेगा।

गुजरात रूपी शतरंजी बिसात पर कांग्रेस इस बार काफी सोच-समझकर चालें चल रही है। पार्टी के रणनीतिकार इस बात पर अमल कर रहे हैं कि भाजपा को अकेले हिन्दुत्व की मलाई खाने से रोकना होगा क्योंकि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में इस कारण करारा झटका खा चुकी है। गुजरात के विभिन्न मंदिरों में राहुल गांधी की दस्तक अनायास नहीं है। कांग्रेस की हिन्दू विरोधी छवि को तोडऩे के लिए तय किया गया कि पार्टी राहुल को हिन्दू श्रद्धालु की तरह पेश करेगी और गुजरात के बहुसंख्यक हिन्दुओं का विश्वास जीतने की कोशिश करेगी।

यही कारण है कि कांग्रेस नेता इस बार दंगों व गोधरा की चर्चा तक नहीं कर रहे। इसके पीछे यह सोच है कि यह साबित किया जाए कि राहुल गांधी भी हिन्दुत्व के उतने ही बड़े झंडाबरदार हैं जितनी बड़ी भाजपा। भाजपा भी कांग्रेस की इस रणनीति को लेकर काफी सजग है। यही कारण है कि राहुल के सोमनाथ मंदिर जाने के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर हमला बोल दिया। कांग्रेस की ओर से जवाब देते हुए बात राहुल के जनेऊ पहनने तक जा पहुंची। इलेक्ट्रानिक मीडिया व सोशल मीडिया में राहुल का जनेऊ प्रकरण काफी छाया रहा। हालांकि बाद में कांग्रेस की ओर से आरोप लगाया गया कि भाजपा ने इसे जानबूझकर तूल दिया।

तीन युवा नेताओं की मदद से भाजपा की घेरेबंदी

गुजरात में 22 साल से कांग्रेस को विपक्ष में बैठने के लिए मजबूर करने वाली भाजपा की चिंता का कारण इस बार कांग्रेस की अलग तरह की घेरेबंदी है। कांग्रेस इस बार बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए तीन बड़े विरोधी समूहों को एक साथ ले आई है। हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर के नेतृत्व में क्रमश: पाटीदार, दलित व अन्य पिछड़ा वर्ग और क्षत्रिय का समर्थन जुटाने के कांग्रेस की मुहिम ने भाजपा को चिंता में जरूर डाल रखा है। हार्दिक तो चुनाव मैदान में नहीं उतरे हैं मगर जिग्नेश व अल्पेश दोनों चुनाव भी लड़ रहे हैं।

अल्पेश कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में तो जिग्नेश कांग्रेस समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं। इन तीन समूहों को एक साथ लाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं था, लेकिन कांग्रेस ने इसमें कामयाबी हासिल कर भाजपा की तगड़ी घेरेबंदी में कामयाबी हासिल कर ली है। कांग्रेस के इस जातीय समीकरण साधने के कारण मोदी, अमित शाह सहित अन्य भाजपा नेताओं को इस बार हर बार से ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है।

चुनावी प्रबंधन पर भी खासा जोर दे रही कांग्रेस

मौजूदा चुनाव में कांग्रेस की चुनावी संभावनाएं इस बात पर निभर करेंगी कि वह अपनी रणनीति में आए बदलावों को कितना प्रभावी ढंग से लागू कर पाती है। इस बार पार्टी ने दूसरे नेताओं से चुनावी रैलियों में भाषण देने के बजाय मतदाताओं से सीधा संपर्क स्थापित करने को कहा गया है। उनसे कहा गया है कि वे मतदाताओं के दरवाजे पर जाएं, उनसे बातचीत करें और मतदान के दिन बूथ प्रबंधन का काम संभालें। रैलियों को आयोजित करने का जिम्मा, वोटरों की बात सुनना और सुनाने का काम राहुल, पटेल, ठाकोर और जिग्नेश मेवानी को सौंपा गया है। पुराने धुरंधरों से कहा गया है कि वे वोटरों तक पहुंचे और यह सुनिश्चित करें कि लोगों का गुस्सा बैलेट पेपर पर निकलकर आए।

यही कारण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी गुजरात से राज्यसभा का चुनाव जीतकर भाजपा को शर्मिंदगी महसूस कराने वाले नेता अहमद पटेल भी चुनावी रैलियों से दूर रहकर चुनावी प्रबंधन का काम काम देख रहे हैं। कांग्रेस को डर इस बात का है कि उसके कार्यकर्ता भाजपा की तरह समॢपत नहीं हैं। वे बूथ प्रबंधन में भी भाजपा की तरह कुशल नहीं है। कांग्रेस के पास भाजपा जैसी कार्यकर्ताओं की लंबी-चौड़ी फौज भी नहीं है। इस कारण पार्टी इस बार चुनावी प्रबंधन पर भी खासा जोर दे रही है। पार्टी को उम्मीद है कि हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश की तिकड़ी के समर्पित कार्यकर्ताओं के समर्थन से वह भाजपा को पटखनी देकर सत्ता के गलियारे में दाखिल होने में कामयाब हो सकती है।

कांग्रेस पर तीखे हमले कर रहे मोदी

मौजूदा समय भाजपा के दोनों शीर्ष नेता नरेन्द्र मोदी व अमित शाह गुजरात के ही हैं और यही कारण है कि भाजपा इसके चुनाव परिणामों की गंभीरता से अच्छी तरह वाकिफ है। अपने मैदान पर खेलने का दबाव हर बड़े खिलाड़ी पर होता है और यही दबाव इन दोनों नेताओं पर भी दिख रहा है। मोदी अपनी चुनावी सभाओं में गुजराती अस्मिता की चर्चा के साथ ही गुजराती में संवाद भी कर रहे हैं। अपनी सभाओं में मोदी कांग्रेस पर जोरदार हमले कर रहे हैं। एससी व पाटीदार मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए वे कहते हैं कि कांग्रेस ने सरदार पटेल व बाबा साहब भीमराव अंबेडकर तक को सम्मान नहीं दिया। वे कहते हैं कि भाजपा ने गुजरात में टैंकर राज का अंत किया।

गुजरात में टैंकर का धंधा कांग्रेस नेताओं और उनके परिजनों द्वारा चलाया जा रहा था। कांग्रेस को लगता है कि केवल एक परिवार की वजह से भारत को आजादी मिली। वे भारत की आजादी के संघर्ष में आदिवासियों के योगदान को भूल चुके हैं। महिला मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए वे कहते हैं कि कांग्रेस ने गुजरात में महिलाओं की शिक्षा के लिए कोई काम नहीं किया। मैंने गुजरात के लोगों से लड़कियों की पढ़ाई के लिए भीख मांगी। लोगों से हाथ जोडक़र कहा कि बेटियों को भी पढऩे का मौका दो। मोदी मुस्लिम महिलाओं का जिक्र करना भी नहीं भूलते। वे अपनी चुनावी सभाओं में कह रहे हैं कि जब तीन तलाक का मुद्दा कोर्ट में था तो केंद्र को अदालत में अपना एफिडेविट देना था।

उस समय अखबारों ने लिखा था कि यूपी चुनाव के चलते मोदी सरकार चुप रहेगी, लोगों ने भी मुझे राय दी कि मैं चुप रहूं नहीं तो यूपी में चुनाव हार जाएंगे। लेकिन मैंने तीन तलाक पर चुप न रहने का फैसला किया क्योंकि मेरे लिए चुनाव से जरूरी देश और मानव अधिकार हैं। हमने मुस्लिम बहनों को तीन तलाक से छुटकारा दिलाने के लिए एफिडेविट फाइल किया और सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने में इस पर रोक लगा दी। हम इस पर जल्द ही कानून बनाने जा रहे हैं जिसके बाद मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी में काफी सुधार होगा। भाजपा ने ही देश के सामने विकास का गुजरात मॉडल रखा है और भाजपा ही आगे भी गुजरात को विकास के रास्ते पर ले जाने में सक्षम है।

मोदी को माकूल जवाब दे रहे राहुल

गुजरात के चुनाव में इस बार राहुल में यह बदलाव दिख रहा है कि वे मोदी को हिट व रन का मौका नहीं दे रहे हैं। राहुल अपनी सभाओं में न केवल मोदी व भाजपा पर हमले बोल रहे हैं बल्कि उनके आरोपों का जवाब भी दे रहे हैं। राहुल रोज मोदी से एक सवाल पूछ रहे हैं और विभिन्न मुद्दों को लेकर मोदी की घेरेबंदी कर रहे हैं। राहुल अपनी सभाओं में मोदी पर तंज भी कस रहे हैं। राहुल नोटबंदी व जीएसटी का मुद्दा उठाकर आम लोगों व व्यापारियों का समर्थन पाने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल युवाओं, बेरोजगारी, विकास, किसान, फसल के दाम, ट्यूबवेल का इंतजाम आदि मुद्दे उठाकर गुजरात में 22 साल से काबिज भाजपा को घेर रहे हैं। वे मतदाताओं से अपील कर रहे हैं कि राज्य के असली विकास के लिए कांग्रेस को एक बार मौका दें। राहुल की सभाओं में भी भीड़ उमड़ रही जिससे कांग्रेस उत्साहित दिख रही है।

भाजपा व कांग्रेस दोनों ने उतारी नेताओं की फौज

गुजरात का चुनाव भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए कितना अहम है,इसे इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि दोनों दलों ने राज्य में चुनाव प्रचार के लिए नेताओं की फौज लगा रखी है। भाजपा की ओर मोदी की अगुवाई में अमित शाह, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, निर्मला सीतारमण सहित कई केन्द्रीय मंत्री चुनाव प्रचार की बागडोर संभाले हुए हैं। इसके साथ ही गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित कई मुख्यमंत्री भी चुनाव प्रचार में डटे हुए हैं।

इनके अलावा भोजपुरी स्टार व सांसद मनोज तिवारी, सांसद परेश रावल व गुजराती फिल्म अभिनेता हिदू कनोडिया भी भाजपा के लिए लगे हुए हैं। दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी की अगुवाई में अशोक गहलौत, अहमद पटेल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, राजबब्बर और नगमा चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। कांग्रेस ने भी कई राज्यों से नेताओं को गुजरात बुलाकर चुनाव प्रचार में लगाया है। चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव व बसपा की मुखिया मायावती भी अखाड़े में कूद पड़ी हैं।

मोदी को जवाब देने के लिए सोशल मीडिया व हार्दिक का सहारा

गुजरात में कांग्रेस ने इस बार अपनी रणनीति में एक अहम बदलाव यह किया है कि इस बार मोदी के आरोपों का माकूल जवाब दिया जा रहा है। मोदी के बयान की पूरी जांच-पड़ताल की जाती है और इसके बाद उसका पुख्ता जवाब दिया जाता है। राहुल को मोदी का जवाब देने में कमजोर पड़ता देख उस रोल में हार्दिक पटेल को फिट कर दिया गया है। हार्दिक पटेल आग उगलने में माहिर हैं और वे भाजपा को काफी सख्त भाषा में जवाब भी दे रहे हैं। सौराष्ट्र व दक्षिणी गुजराती की राजनीतिक रैलियों में यह रणनीति अपनाई गई है।

सोशल मीडिया टीम को एक्टिव किया गया है और यह टीम भी मोदी व भाजपा को दमदार जवाब देने में जुटी है। कांग्रेस दो तरीके से मोदी पर हमले कर रही है। पहले मोर्चे में कांग्रेस सोशल मीडिया के जरिए मोदी पर हमला करती है और दूसरे मोर्चे पर हाॢदक पटेल को लगाया गया है। वे अपनी खास तेजतर्रार शैली में मोदी व भाजपा पर हमला करते हैं। कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि 1979 में जब उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मोरबी आई थीं तो उन्होंने नाक पर रुमाल रख रखा था क्योंकि उन्हें मरे हुए लोगों से बदबू आती थी। कांग्रेस की ओर से तत्काल इसका जवाब दिया गया और स्थानीय पत्रिकाओं में छपे वे फोटो जारी किए जब आरएसएस कार्यकर्ताओं ने अपने मुंह भी ढक रखे थे। हार्दिक ने मोदी पर हमला बोला और कहा कि मोदी उस घटना के समय त्रिवेंद्रम में थे। वे क्या वहां से दौडक़र मोरबी पहुंच गए थे। मालूम हो कि इस घटना में एक बांध के टूटने से हजारों लोग मारे गए थे।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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