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Gyanvapi Case: शिवलिंग की कार्बन डेटिंग के मुद्दे पर हिंदू पक्ष में था मतभेद,जानिए इसका कारण,जानकार भी सहमत नहीं
Gyanvapi Case: काशी के ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग के संबंध में जिला जज की अदालत ने आज शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग को खारिज कर दिया है।
Gyanvapi Case: काशी के ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग के संबंध में जिला जज की अदालत ने आज अहम फैसला सुनाते हुए शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग को खारिज कर दिया है। जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश के इस फैसले के बाद अब शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं होगी। अदालत के इस फैसले को हिंदू पक्ष के लिए भले ही झटका माना जा रहा हो मगर हिंदू पक्ष भी कार्बन डेटिंग की मांग पर एकमत नहीं था।
चार महिला वादियों की ओर से शिवलिंग के कार्बन डेटिंग की मांग की गई थी जबकि एक अन्य महिला वादी राखी सिंह के अधिवक्ता ने कार्बन डेटिंग की मांग से सहमति नहीं जताई थी। दरअसल कार्बन डेटिंग के दौरान शिवलिंग के खंडित होने की आशंका थी। इसीलिए राखी सिंह के अधिवक्ता ने इस मांग का विरोध किया था। मुस्लिम पक्ष भी कार्बन डेटिंग की मांग से सहमत नहीं था। वैसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर अशोक सिंह का भी मानना है कि इसे शिवलिंग की कार्बन डेटिंग संभव नहीं है।
अब हाईकोर्ट जा सकता है हिंदू पक्ष
जिला जज की अदालत ने कार्बन डेटिंग की मांग को खारिज करते हुए शिवलिंग के खंडित होने की आशंका की ओर इशारा भी किया है। जिला जज ने कार्बन डेटिंग की मांग को खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में पूरे परिसर और कथित शिवलिंग को सुरक्षित रखने का आदेश दिया है। इस कारण यदि कार्बन डेटिंग के दौरान शिवलिंग को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचती है तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि शिवलिंग के खंडित होने पर आम लोगों की धार्मिक भावनाओं को भी चोट पहुंचेगी। ऐसे में शिवलिंग की कार्बन डेटिंग करना उचित नहीं होगा। अदालत ने कार्बन डेटिंग के साथ ही किसी अन्य वैज्ञानिक तरीके से शिवलिंग के परीक्षण की मांग भी खारिज कर दी है। अदालत के इस आदेश को हिंदू पक्ष के लिए झटका माना जा रहा है। माना जा रहा है कि इस फैसले के खिलाफ हिंदू पक्ष हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
कार्बन डेटिंग के मुद्दे पर वादी पक्ष में था मतभेद
उल्लेखनीय है कि श्रृंगार गौरी और अन्य विग्रहों के पूजा के अधिकार के वाद पर सुनवाई के दौरान हुए सर्वे में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वजूखाने में शिवलिंग जैसी आकृति मिली थी। चार महिला वादियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने प्रार्थना पत्र दाखिल करके शिवलिंग की कार्बन डेटिंग सहित अन्य वैज्ञानिक तरीकों से जांच कराने की मांग की थी। इससे पहले जिला जज डॉ अजय कृष्णा विश्वेश की अदालत में 29 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान शिवलिंग की कार्बन डेटिंग के मुद्दे पर वादी पक्ष में ही मतभेद उभरकर सामने आ गया था। जिला जज की अदालत में चार महिला वादियों की ओर से पेश अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने मांग की थी कि शिवलिंग के नीचे अरघे और आसपास के पूरे इलाके की जांच कराई जानी चाहिए।
कार्बन डेटिंग पर असहमति का क्या था कारण
उनका कहना था कि यह काम किया जाना जरूरी है मगर इस दौरान शिवलिंग से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। अधिवक्ताओं की दलील थी कि यह काम कार्बन डेटिंग या किसी अन्य तरीके से किया जा सकता है। दूसरी और एक अन्य महिला वादी राखी सिंह की ओर से पेश अधिवक्ता ने कार्बन डेटिंग पर सहमति नहीं जताई थी। उनका कहना था कि कार्बन डेटिंग की प्रक्रिया से शिवलिंग के खंडित होने का अंदेशा है। इस मामले में मुस्लिम पक्ष की दलील दी थी कि पत्थर और लकड़ी की कार्बन डेटिंग नहीं हो सकती। इस मामले में बहस पूरी होने के बाद जिला जज ने आदेश के लिए आज की तारीख तय की थी।
क्या कहते हैं जानकार
वैसे शिवलिंग की कार्बन डेटिंग के मुद्दे पर जानकारों का मानना है कि ऐसा किया जाना संभव नहीं है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय बीएचयू के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर अशोक सिंह का कहना है कि शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं की जा सकती। उनकी दलील है कि पत्थर की कार्बन डेटिंग संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि केवल उसी चीज की कार्बन डेटिंग संभव है जिसमें कभी कार्बन रहा हो प्रोफ़ेसर सिंह ने कहा कि शिवलिंग के संबंध में जानकारी हासिल करने के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सिस्टम का प्रयोग किया जा सकता है। इस सिस्टम का इस्तेमाल करने के लिए भूवैज्ञानिकों की मदद लेनी होगी। उन्होंने कहा कि सारनाथ के पुरातात्विक सर्वेक्षण में इस सिस्टम का इस्तेमाल किया गया था और इसके जरिए कई महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल की गई थीं।