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हमीरपुर: पहले टीबी मरीजों को दवा, फिर डॉ.दिनेश और मंजू का दूसरा काम
शहर से लगे भिलावां में प्राइवेट क्लीनिक चलाने वाले डॉ.दिनेश की सुबह टीबी रोगियों को दवा खिलाने से होती है। सर्दी के मौसम में जब लोग बिस्तर से बाहर नहीं आना चाहते, ऐसे मौसम में दिनेश रोज सुबह अपने मरीजों का हालचाल लेने और उन्हें दवा देने निकल पड़ते हैं।
हमीरपुर: शहर से लगे भिलावां में प्राइवेट क्लीनिक चलाने वाले डॉ.दिनेश की सुबह टीबी रोगियों को दवा खिलाने से होती है। सर्दी के मौसम में जब लोग बिस्तर से बाहर नहीं आना चाहते, ऐसे मौसम में दिनेश रोज सुबह अपने मरीजों का हालचाल लेने और उन्हें दवा देने निकल पड़ते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मंजू धुरिया की दिनचर्या भी इसी से मिलती-जुलती है। दिव्यांग पति और दो पुत्रों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी संभालने वाली मंजू बताती हैं कि वह लंबे समय से स्वास्थ्य विभाग में अपनी सेवाएं दे रही हैं, इसके बदले में कुछ पैसा मिल जाता है।
लंबे अरसे से कर रहे ये काम
डॉ.दिनेश और मंजू धुरिया दोनों डॉट्स प्रोवाइडर हैं, इनका काम टीबी मरीजों को समय से दवा खिलाने का है, जिसे दोनों ही लंबे अरसे से बखूबी निभा रहे हैं। डॉ.दिनेश बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 2007 से बतौर डॉट्स प्रोवाइडर का काम करना शुरू किया था, आज उन्हें इस काम को करते हुए चौदह साल हो चुके हैं। अब तक वह 134 टीबी रोगियों को दवा खिलाकर ठीक कर चुके हैं। दुर्भाग्यवश छह मरीजों की जान नहीं बच सकी। मौजूद समय में आठ टीबी रोगियों को दवा दे रहे हैं, जिसमें एक मरीज एमडीआर टीबी का है। डॉ.दिनेश बताते हैं कि वह मरीजों को समय से दवा खिलाने के बाद ही दूसरे कार्य करते हैं।
सुबह से घर से निकल जाते हैं। सोते हुए मरीजों को नींद से उठाकर उन्हें सवेरे ताजी हवा में घूमने को प्रेरित करते हैं ताकि उनके फेफड़े मजबूत हो और वह जल्दी इस बीमारी से ठीक हो सके। अब यह सब कुछ उनकी आदत में शुमार हो चुका है। उनके पास मौजूदा समय में जो मरीज हैं उनमें एक 17 साल की किशोरी है और सबसे बुजुर्ग मरीजों में 67 साल के वृद्ध है। सभी नियमित दवा लेकर ठीक हो रहे हैं।
मंजू ने 85 मरीजों को दिलाई टीबी से मुक्ति
शहर के मंझूपुर मोहल्ले की मंजू धुरिया ने भी टीबी को जड़ से समाप्त करने की मुहिम में अपना योगदान पांच साल पूर्व देना शुरू किया था। मंजू सुनराही गली, कजियाना, पुराना यमुना घाट जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में मिलने वाले टीबी रोगियों को दवा खिलाने की जिम्मेदारी निभा रही हैं। पांच सालों में मंजू ने भी करीब 85 टीबी रोगियों को दवा खिलाकर चंगा किया है। मंजू बताती हैं कि उसके दो पुत्र हैं, पति नाथूराम दिव्यांग हैं, कोई काम नहीं कर पाते हैं। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के साथ ही वह मरीजों की देखभाल में सारा वक्त निकाल देती है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए जाने वाले विभिन्न अभियानों में सहयोग करती हैं, इसी से जो आमदनी हो जाती है, उससे परिवार का भरण-पोषण करती हैं। मौजूदा समय में तीन मरीजों को दवा दे रही हैं, जिसमें एक मरीज एमडीआर टीबी का है।
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खास बिंदु
-जनपद में करीब 928 डॉट्स प्रोवाइजर हैं। इनमें आशा बहू, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सोशल वर्कर्स शामिल हैं।
-अलग-अलग श्रेणी के टीबी मरीजों को दवा खिलाने के एवज में डॉट्स प्रोवाइडर को शासन से प्रोत्साहन राशि मिलती है। छह माह का कोर्स कराने पर एक हजार रुपए और एमडीआर टीबी के मरीजों जिनका 24 माह का कोर्स होता है, उन्हें दवा खिलाने के बदले डॉट्स प्रोवाइडर को पांच हजार रुपए की राशि दी जाती है।
- जनपद में 15 ऐसे प्राइवेट डॉक्टर हैं, जो अपना क्लीनिक चलाने के साथ-साथ टीबी मरीजों को दवाएं मुहैया कराते हैं।
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गतवर्ष मिले 1681 टीबी मरीज
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ.महेशचंद्रा ने बताया कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2025 तक टीबी को समूल रूप से समाप्त करने की मुहिम चला रखी है। जिसके चलते जनपद में सघन टीबी रोगी खोज अभियान (एसीएफ) चलाकर मरीजों को खोजा जाता है। गतवर्ष 2020 में जनपद में कुल 1681 टीबी मरीजों को चिन्हित किया गया था, जिनका उपचार किया गया। ज्यादातर मरीज ठीक हो चुके हैं, कुछ का उपचार अब भी जारी है। जिले के सभी डॉट्स प्रोवाइडर अच्छा कार्य कर रहे हैं, जिन्हें शासन से मिलने वाली प्रोत्साहन राशि दी जाती है।