Hamirpur News: विलुप्त हो गई नई दुल्हन के घर सावनी भेजने की परंपरा, हाकौं भी हो गया है बन्द

Hamirpur News: सावन माह कई मायने में महत्वपूर्ण है। यह महीना तीज त्योहारों परंपराओं से भरा पड़ा है। लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध ने तमाम परंपराओं को खत्म कर दिया है

Ravindra Singh
Published on: 2 Aug 2022 12:13 PM GMT
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Hamirpur: विलुप्त हो गई नई दुल्हन के घर सावनी भेजने की परंपरा। (Social Media)

Hamirpur: सावन माह कई मायने में महत्वपूर्ण है। यह महीना तीज त्योहारों परंपराओं से भरा पड़ा है। पूरे माह घर-घर में हंसी खुशी का माहौल बना रहता है। लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध ने तमाम परंपराओं को खत्म कर दिया है। इससे यह महीना धीरे-धीरे बदरंग होता जा रहा है। पूर्व में परंपरा थी कि प्रत्येक नई नवेली दुल्हन को सावन मनाने मायके जाने पर सावनी पहुंचाने की परंपरा गांव-गांव विद्यमान थी। लेकिन अब यह गायब है।

आज के मायने में 70 से 80 के दशक का सावन ज्यादा महत्वपूर्ण था: स्थानीय निवासी

विदोखर के बुजुर्ग ज्ञान सिंह, कामता प्रसाद सोनी, बाबूराम श्रीवास,परशुराम यादव आदि बताते हैं कि आज के मायने में 70 से 80 के दशक का सावन ज्यादा महत्वपूर्ण था। घर-घर पूरे माह खुशियों का माहौल रहता था। नई नवेली दुल्हन बनी बेटियों को ससुराल से नागपंचमी के पूर्व मायके लाया जाता था। नागपंचमी (Nagpanchami) से ससुराल पक्ष बहू के मायके सावनी लेकर आने का शिलशिला शुरू हो जाता था। ससुराल पक्ष के लोगों की खूब आवभगत होती थी। सावनी में चूड़ियां, खिलौने, कपड़े, मिठाइयां आदि सामान लाया जाता था। सावन का महीना खत्म होने के बाद बेटी की ससुराल में हाकौं भेजा जाता था। इस हाकौं में दुधारू गाय भैंस हुआ करते थे। ताकि बेटी की सेहत में किसी तरह की परेशानी ना होने पाए। अब यह सब परंपराएं विलुप्त हो गई हैं। युवा पीढ़ी इन परंपराओं के बारे में जानता तक नहीं है।

हमने ऐसी किसी परंपराओं को नहीं देखा है: युवा

युवा विद्यासागर, भूपेंद्र यादव ,विनय यादव, राजू आदि पूछने पर बताते हैं कि हमने ऐसी किसी परंपराओं को नहीं देखा है। अगर ऐसा होता था तो यह अच्छी परंपरा थी। इसको कायम रखना चाहिए। विदोखर निवासी बुजुर्ग अमर सिंह, मुन्ना मिश्रा, राजकुमार द्विवेदी, पूर्व प्रधान राधेश्याम सिंह का मानना है कि यह परम्पराएं मुख्य रूप से महंगाई की भेंट चढ गई है। महंगाई बढ़ने से इन परंपराओं से लोगों ने दूरी बना ली है और अब यह किस्से कहानियों की तरह हो गई।

Deepak Kumar

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