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Hapur Tea History: ब्रिटिश काल के शासन ने खोली थी इस जनपद में पहली चाय की कैंटीन

Hapur Tea History: उस समय लोग चाय को इतना पीना पसंद नहीं करते थे। इसके चलते अंग्रेजों ने स्टेशन पर आने वाले लोगों को चाय के लाभ बताने वाले शिलापट भी लगवाए थे।

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Published on: 14 March 2024 5:21 AM GMT (Updated on: 14 March 2024 6:59 AM GMT)
Hapur Tea History
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पहली चाय की केंटीन  (फोटो: सोशल मीडिया )

Hapur Tea History: यूपी के जनपद हापुड़ से चाय पीने का आरंभ किया गया था। जनपद के हापुड़ रेलवे स्टेशन पर सन 1924 में चाय की पहली कैंटीन खोली गई थी।चाय की डिमांड अधिक बढ़ने पर इसके एक साल बाद ही सन 1925 में दूसरी कैंटीन अमरोहा रेलवे स्टेशन में खोली गई। उस समय लोग चाय को इतना पीना पसंद नहीं करते थे। इसके चलते अंग्रेजों ने स्टेशन पर आने वाले लोगों को चाय के लाभ बताने वाले शिलापट भी लगवाए थे। जनपद की इस केंटीन पर सन 1924 में दो प्रकार की चाय एक और दो आने में पिलाई जाती थी। चाय को एनर्जी टॉनिक के रूप में पेश किया जाता था। केंटीन संचालक बताते है कि सुबह के समय चाय फ्री में पिलाई जाती थी। अब रेलवे के पुरातत्व विभाग ने चाय के शिलापट को अपने संरक्षण में लेने की पहल आरंभ की है।

आर्याव्रत में बहती थी दूध घी की नदिया

पुराने लोग बताते है कि आर्याव्रत में दूध-धी की नदियां बहती थीं, यानि देश में इनकी प्रचूरता था। दूध और घी के भोजन का आधार था। अब दूध और घी का प्रयोग सीमित होता जा रहा है।ज्यादातर लोग चाय का प्रयोग करते हैं।चाय ब्रिटिश शासन में अंग्रेजों की देन है। आरंभ में लोग चाय का प्रयोग नहीं करते थे। इसको सेहत के लिए नुकसानदेह माना जाता था।वहीं अंग्रेज कारोबारी इसको बड़े बिजनेस के रूप में स्थापित कर रहे थे। ऐसे में चाय को एक लाभकारी और स्वास्थ्यवर्धक पेय के रूप में प्रस्तुत किया गया। चाय के फायदे बताने वाले बोर्ड लगाए गए। लोगों को चाय का बनाना भी सिंखाया गया।


इस रेलवे स्टेशन पर हुआ था आरंभ

हापुड़ जंक्शन रेलवे स्टेशन पर भूरेलाल एंड संस के नाम से चाय की पुरानी कैंटीन आज भी है। यहां पर 1924 में ब्रिटिश शासन ने चाय बिक्री का लाइसेंस दिया था। इनको ही अमरोहा रेलवे स्टेशन पर 1925 में दूसरा लाइसेंस दिया गया। इन कैंटीन से चाय को आमजन में प्रस्तुत किया गया। इससे पहले चाय का प्रयोग अंग्रेज और भारतीय अधिकारी ही करते थे। कैंटीन से उत्तर प्रदेश के आमजन के लिए चाय का आरंभ किया गया।भूरेलाल कक्कड़ के 62 वर्षीय पौत्र नन्हें सिंह कक्कड़ ने बताया उनके परिवार की दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी मिलकर आज भी कैंटीन का कारोबार संभाल रहे हैं।


दिल्ली संग्रहालय में रखे जायेगे शिलापट

रेलवे के पुरातत्व विभाग ने अब चाय के इन शिलापट को कब्जे में लेने की तैयारी की है। उन्होंने केंटीन संचालक परिवार से संपर्क करके इन शिलापट को देने का आग्रह किया है। जिससे शिलापट को रेलवे संग्रालय का हिस्सा बनाया जा सके।


ब्रिटिश काल में दिए गए थे, शिलापट

नन्हें सिंह कक्कड़ ने बताया कि यह शिलापट हमारी कैंटीन को ब्रिटिश काल में दिए गए थे। हमने इनको संभाल कर लगाया हुआ है। रेलवे को संग्रालय में हमारे कैंटीन के नाम को भी शामिल करना होगा। उसका लिखित अनुबंध होने पर ही शिलापट सौंपा जाएगा।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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