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Hapur News: तालाबों पर अतिक्रमण से धोबी समाज को झेलनी पड़ रही परेशानी, सरकार से की ये मांग
Hapur News: अधिकतर तालाबों पर अतिक्रमण होने के कारण उनका अस्तित्व समाप्त हो चुका है। जिसके बाद धोबी समाज को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
धोबी समाज को झेलनी पड़ रही परेशानी (photo: social media )
Hapur News: यूपी के जनपद हापुड़ के पिलखुवा हैंडलूम नगरी देश-विदेश मे प्रख्यात हैं। इस हैंडलूम नगरी मेें करीब पांच हजार की आबादी धोबी समाज की हैं। जिनका पुश्तैनी काम चादर की छपाई करना, कपड़े धोना और प्रेस करने के कार्य से जुड़ा हुआ है। लेकिन जब से हैंडलूम नगरी बसी है तब से तालाब और घाट विलुप्त हो गए हैं। वहीं अधिकतर तालाबों पर अतिक्रमण होने के कारण उनका अस्तित्व समाप्त हो चुका है। जिसके बाद धोबी समाज को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि सरकार समाज के उत्थान के लिए सुविधाओं के साथ घाट आवंटित किए जाने चाहिए। जिससे समाज के लोग दोबारा से अपने पुश्तैनी काम पर वापस लौट सके।
धोबी समाज के लोगों को अपनी जिंदगी में उजाले का इंतजार है, तालाबों पर अतिक्रमण होने के बाद कपड़ा धोना मुश्किल हो गया है। हैंडलूम नगरी के चारों ओर तालाब ही तालाब थे, लेकिन समय बीतने के बाद तालाबों पर अतिक्रमण होता गया ओर तालाब विलुप्त हो गए। धोबी समाज के लोगों को अपना और परिवार का पालन पोषण करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि अन्य समाज के लोगों के हस्तक्षेप के कारण दूसरे धंधे में जाना पड़ रहा है। लेकिन मुख्य काम कपड़ों की धुलाई का है। धोबी समाज के लोग कारोबार को बढ़ावा देने के लिए सस्ती दरों पर ऋण और भत्तों का लाभ चाहते हैं। वहीं धोबी समाज की युवा पीढ़ी अपने पुश्तैनी काम की जानकारी नहीं होने पर परंपरागत काम से विलग होती जा रही है। जिसके लिए युवाओं को प्रशिक्षण की आवश्यकता है, जिससे पुश्तैनी काम एक बार फिर पटरी पर आ सके।
तालाबों पर अतिक्रमण, कैसे हो कम?
धोबी समाज के लोगों ने बताया कि एक समय था कि जब नगर के चारों ओर तालाब की तालाब हुआ करते थे। लेकिन समय के परिवर्तन के कारण काम विलुप्त होता चला गया। अब घरों में होदी लगाकर कपड़े धोने का काम किया जा रहा है। जिससे परिवार के पालन पोषण करने में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि जनपद प्रशासन और शासन इस मुद्दे को गंभीरता से ले, जिससे समाज दोबारा कपड़े धोने के काम कर सके।
कम दरों पर मिले ऋण
धोबी समाज के लिए पुश्तैनी काम को बचाना किसी चुनौती से कम नहीं हैं। वर्तमान समय में कपड़े धोने के लिए आधुनिक मशीनों की आवश्यकता बढ़ गई है। जिसके लिए समाज को सरकार की तरफ से कम दरों पर ऋण उपलब्ध कराए जाने की दरकार है। जिससे पुश्तैनी तरीकों से काम करने के लिए समाज को आर्थिक रूप से सशक्त बनने में मदद मिल सके।
धोबी समाज की नजर में
सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ जानकारी के अभाव में नहीं मिल पाता है। प्रशिक्षण के लिए सरकार को संस्थान खुलवाने चाहिये । तालाब पर हो रहे अतिक्रमण के कारण काम खत्म हो चुके है। जिस कारण समाज को अन्य काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।समाज के लोग घरों में ही होदी लगाकर कपड़े धो रहे है। जिससे आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है। सुविधा नहीं मिलने पर समाज ने पुश्तैनी काम से किनारा कर लिया है। सरकार को तालाब पर हो रहे अतिक्रमण को हटाना चाहिए। पूर्व में चारों ओर तालाब ही तालाब थे। समय बदलता गया ओर तालाब विलुप्त हो गए हैं। समाज की नई पीढ़ी पुश्तैनी काम से किनारा कर रही है। सरकार को समाज के हित में निर्णय लेना चाहिए।
न्यूज़ ट्रेंक के सुझाव
सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ समाज को मिल सके इसके लिए प्रशासन को जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। तालाबों पर हो रहे अतिक्रमण को हटा कर दोबारा उनका पु:न निर्माण कराना चाहिए। धोबी समाज को पुश्तैनी काम को बढ़ावा देने के लिए कम दरों पर ऋण मिलना चाहिए।
धोबी समाज की शिकायत
सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी नहीं मिल रही है जिसके कारण वंचित रहना पड़ रहा है। तालाबों पर हो रहे अतिक्रमण के कारण समाज के लोगों को दूसरे कामों में रूचि लेनी पड़ रही है। पुश्तैनी काम को बढ़ावा देने के लिए कम दरों पर ऋण उपलब्ध नहीं कराया जाता है।