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मुश्किल के दौर से गुजर रहा काशी का राजघराना
आशुतोष सिंह
वाराणसी: गौरवशाली इतिहास और अपनी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध काशी राजघराना इन दिनों मुश्किल के दौर से गुजर रहा है। राजघराने में रार छिड़ी हुई है। परिवार के सदस्य कोर्ट-कचहरी से लेकर पुलिस थाने के चक्कर काट रहे हैं। मीडिया में हर रोज नए किस्से विवाद के रूप में उछल रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। एक ओर कुवर अनंत नारायण सिंह हैं तो दूसरी ओर उनकी तीन बहनें। वजह है संपत्ति को लेकर छिड़ी जंग। इस नए विवाद के कारण राजघराने की प्रतिष्ठा तार-तार हो रही है। करीब दो दशक से लुकेछिपे अंदाज में चली आ रही ये लड़ाई अब सार्वजनिक हो गई है। संपत्ति को लेकर अब तक दावा पेश करने वाली बहनों के प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल करने पर कुंवर का पारा सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ है। वंश परंपरा और विरासत का हवाला देते हुए उन्होंने अपनी बहनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने न सिर्फ रामनगर थाने में मुकदमा दर्ज करवाया बल्कि मीडिया के सामने आए और आरोपों की बौछार शुरू कर दी। वहीं दूसरी ओर कुंवर की बहनें भी खुलकर आरोपों का जवाब दे रही हैं।
प्रतीक चिह्न को लेकर विवाद
पूर्व काशी नरेश विभूति नारायण की तीन पुत्रियां राजकुमारी विष्णु प्रिया, हरि प्रिया एवं कृष्ण प्रिया एवं पुत्र कुंवर अनंत नारायण सिंह हैं। सभी किला परिसर में ही रहते हैं मगर किले में कुंवर का ही राज चलता है। तीनों बहनें किले के ही एक हिस्से में रहती हैं। राजघराने में यूं तो दो दशक से विवाद चल रहा है, लेकिन पिछले दिनों इस विवाद ने ऐसा रूप लिया जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। दरअसल कुंवर अनंत नारायण सिंह की बड़ी बहन हरिप्रिया के बेटे की शादी 10 जुलाई को थी। आरोप है कि हरिप्रिया की ओर से शादी कार्ड पर काशी स्टेट के प्रतीक चिह्न का प्रयोग किया गया। इस बात पर कुंवर अनंत नारायण सिंह ने आपत्ति जताई।
कुंवर के अनुसार वसीयत के मुताबिक प्रतीक चिह्न पर सिर्फ उनका ही अधिकार है। इस बात की शिकायत उन्होंने एडीजी पीवी रामाशास्त्री से करते हुए जांच की मांग की। जांच के दौरान कुंवर के आरोप सही साबित पाए गए और इसके बाद हरिप्रिया के खिलाफ रामनगर थाने में विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। इस घटना के बाद राजघराने का विवाद सार्वजनिक हो गया। हरिप्रिया के समर्थन में उनकी दोनों बहनें उतर आईं और कुंवर पर आरोपों की बौछार शुरू कर दी।
महाराज कुमारी कृष्णप्रिया के मुताबिक हम बहनों के खिलाफ बड़े स्तर पर भ्रम फैलाया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारी तरफ से राजचिह्न का कोई दुरुपयोग नहीं किया गया है, उल्टे महाराज कुंवर ने काशीराज के प्रतीक चिह्न को ट्रेडमार्क का रूप देकर और उसका व्यावसायिक उपयोग करके उसका दुरुपयोग किया है। उन्होंने अपने आरोपों के पीछे तर्क भी दिए। होटल ताज का जिक्र करते हुए कहा कि काशीराज चिह्न का दुरुपयोग ताज होटल (नदेसर पैलेस प्रबंधन) कर रहा है। इस महान प्रतीक चिह्न को झोले पर छापा जा रहा है, यहां तक कि खाने के पैकेट पर भी काशीराज के प्रतीक चिह्न का प्रयोग हो रहा है, जोकि सरासर गलत है। जबकि हम तो राजचिह्न का सदुपयोग ही कर रहे हैं।
उन्होंने महाराज कुमारी हरिप्रिया पर लगाए गए आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि राजकुमारी के बेटे की शादी के कार्ड में हमने इस प्रतीक चिह्न का प्रयोग किया था, जो कि हमारा हक है। इससे पहले भी दो बार शादी के कार्ड में इस चिह्न का प्रयोग किया जा चुका है, उस वक्त महाराज कुंवर भी शादी समारोह में शामिल हुए थे।
दो दशक पुरानी है संपत्ति की रार
पूर्व काशी नरेश परिसर में संपत्ति की रार करीब दो दशक पुरानी है। कुंवर और तीनों बहनों के बीच संपत्ति को लेकर कोर्ट में मुकदमा भी चल रहा है। साल 2011 में संपत्ति का विवाद तब और गहरा गया जब कृष्ण प्रिया सीढिय़ों की मरम्मत करा रही थीं जिसे किला प्रशासन के कर्मचारियों ने रोकवा दिया। बाद में कुंवर ने किले का रंगरोगन कराना शुरू किया तो तीनों बहनों ने रोकवा दिया। विवादों की फेहरिश्त काफी लंबी है। कुछ सालों पूर्व राजकुमारी कृष्णप्रिया ने किला प्रशासन पर सौतेला व्यवहार का आरोप लगाते हुए कुंवर के कर्मचारियों पर उत्पीडऩ का आरोप लगाया था। बहनों का आरोप है कि किला परिसर में कई समस्याएं हैं। यहां तक कि टूटे छत की मरम्मत, पानी का कनेक्शन तक नहीं लेने दिया जा रहा है।
हम बहनों ने हमेशा पूर्वजों की परम्परा का निवर्हन किया है। उन परम्पराओं के संरक्षण के लिए हम सबकुछ न्योछावर करने को तैयार हैं। हमें संपति का कोई लालच नहीं है मगर हमें मूलभूत अधिकारों से वंचित करना एक तरह से अपराध है। उन्होंने किला प्रशासन पर परेशान करने का आरोप लगाया और कहा कि उन्हें जर्जर दीवारों एवं टूटी छत के नीचे रहने के लिए लाचार किया जा रहा है।
बहनों ने कुंवर पर लगाया गंभीर आरोप
आरोपों का सिलसिला यही खत्म नहीं हुआ है। रामनगर किले के अंदर दो दशकों से दबी हुई चिंगारी अब शोला बनकर दहक रही है। कुंवर के इस कदम के बाद आक्रामक हुई बहनों ने उनके खिलाफ संगीन आरोप लगाए हैं। महाराज कुमारी कृष्ण प्रिया के मुताबिक कुंवर के इशारे पर उनके चमचे और किले के नौकर उन्हें बेइज्जत करते हैं। जबतक पिताजी (स्वर्गीय महाराज डॉ.विभूति नारायण सिंह) जिंदा थे तबतक परिवार में फूट नहीं थी। पिताजी के जाने के बाद कुछ लोग हमारे बीच फूट पैदा कर चुके हैं। कुछ लोग कुंवर को ब्लैकमेल करके बड़ी-बड़ी सम्पत्ति बना रहे हैं और इस लूटखसोट में हम बहनें रोड़ा ना बनें, इसके लिए बकायदे पुलिस से साठगांठ करके हमें प्रताणित भी किया जा रहा है। कृष्णप्रिया ने सीधे-सीधे नाम लेते हुए कुंवर के कुछ रिश्तेदारों को इसके लिए दोषी ठहराया है। उन्होंने यहां तक कहा कि महाराज को ब्लैकमेल करने वाले रिश्तेदार उनकी जान के लिये खतरा बन चुके हैं और दुर्घटना में उनकी चार बार हत्या की कोशिश की जा चुकी है। महाराज कुमारी कृष्णप्रिया के अनुसार कुंवर के पास राष्ट्रपति द्वारा दिया गया कोई सक्सेशन सर्टीफिकेट तक नहीं है। ना तो राजा साहब ने कोई डीड बनायी है। पिताजी ने सिर्फ निधन से पहले फैमिली सेटेलमेंट किया था। भारतीय कानून के अनुसार हम तीन बहनों और एक भाई का पिताजी की सम्पत्ति पर बराबर का हक है।
कुंवर ने भी दिया आरोपों का जवाब
बहनों के आरोपों के बाद कुंवर अनंत नारायण सिंह भी मैदान में आ गए। उन्होंने एक-एक आरोपों का जवाब दिया। अनंत नारायण ने कहा कि विवाह के बाद पुत्रियों का पिता के घर रहना कैसी परंपरा है? पिता ने पुत्रियों का विवाह संपन्न परिवार में करने के साथ ही उनके अलग-अलग रहने की अच्छी व्यवस्था भी की। इसलिए बहनों को चाहिए कि वे किले से बाहर चली जाएं। कुंवर ने कहा कि बहन कृष्णप्रिया के कारण विवश होकर मीडिया के सामने आया हूं। मैं अपनी वंश परंपरा का सही तरीके से निर्वहन कर रहा हूं और काशीवासियों से मुझे उचित सम्मान मिलता है। पिता की मृत्यु के बाद बहनों की नजर हमारी संपत्ति पर है। इसी वजह से बार-बार हमें परेशान किया जा रहा है। कुंवर ने कहा कि हमारी बहनें किले में लाइसेंसी की हैसियत से रह रही हैं। काशी नरेश डॉ. विभूति नारायण सिंह ने तीनों बहनों की शादी के साथ ही उन्हें बैराठ फार्म, कटेसर, नदेसर और बिहार के समस्तीपुर में अचल संपत्तियां दीं।
दुनिया में विख्यात है रामनगर की रामलीला
काशी राजघराने की परंपरा बेहद समृद्ध रही है। राजघराने की अगुवाई में शुरू हुई रामनगर की रामलीला पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। रामनगर में होने वाली 250 साल पुरानी रामलीला पहले छोटा मिर्जापुर में हुआ करती थी। इसकी शुरुआत काशी नरेश विभूति नारायण सिंह के दादा महाराज उदित नारायण ने करवाई थी। एक महीने तक चलने वाली लीला को लोग काफी श्रद्धा से देखते हैं। इसके दर्शक यहां आने से पहले स्नान-ध्यान करते हैं। साथ ही माथे पर त्रिपुंड लगाते हैं और फिर लीलास्थल की ओर जाते हैं। वह अपने साथ लाए पीढ़े पर बैठते हैं और फिर रामायण पाठ आरंभ होता है। यहां आने वाला हर व्यक्ति अपने साथ रामायण लेकर आता है और सस्वर पाठ करता है। लीला की शुरुआत काशी नरेश के आगमन के साथ होती है।
वर्तमान महाराज कुंवर अनंत नारायण सिंह हाथी पर लगे हौदे पर सवार होकर आते हैं। परंपरा के अनुसार रामनगर पीएसी सलामी देती है और फिर वे लीलास्थल की ओर प्रस्थान करते हैं। परंपरा के अनुसार आज भी रामलीला में सभी पात्रों को बैल लगी बग्घी और डोली में लाया जाता है। यहां आज भी पूरे लीलास्थल पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग नहीं होता है। हर जगह गैस लाइट ही नजर आती है। लीला पात्रों का चयन दो महीने पहले ही हो जाता है। इसके बाद वे यहीं रहकर अपने-अपने पाठ और राजसी संस्कार सीखते हैं।
काशी नरेश और रामनगर किला का इतिहास
काशी राजघराने का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। इतिहासकारों के मुताबिक 18वीं शताब्दी में काशी स्वतंत्र राज्य बन गया था। बाद में ये राज्य ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया। उस दौर में काशी प्रमुख व्यापारिक और धार्मिक केन्द्र रहा। 1910 में ब्रिटिश प्रशासन ने वाराणसी को एक नया भारतीय राज्य बनाया और रामनगर को इसका मुख्यालय बनाया। काशी नरेश रामनगर किले में रहते हैं। गंगा के पूर्वी छोर पर बना ये किला अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है।
रामनगर किले का निर्माण काशी नरेश राजा बलवंत सिंह ने 18वीं शताब्दी में करवाया था। यह किला मुगल स्थापत्य शैली में नक्काशीदार छज्जों, खुले प्रांगण और सुरम्य गुम्बददार मंडपों से सुसज्जित है। रामनगर किला और इसका संग्रहालय अब ऐतिहासिक धरोहर रूप में संरक्षित है और 18वीं शताब्दी से काशी नरेश का आधिकारिक आवास रहा है। आज भी काशी नरेश नगर के लोगों में सम्मानित हैं। काशी नरेश को नगर के धार्मिक अध्यक्ष के तौर पर माना जाता है। यही नहीं इन्हें भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। काशी नरेश नगर के प्रमुख सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी बड़ी धार्मिक गतिविधियों के अभिन्न अंग रहे हैं।