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Hardoi News: आठ साल बाद ज़िंदा हुआ कृष्णपाल, जानें क्या है मामला?
Hardoi News: तत्कालीन तहसीलदार ने जिंदा को मृत और मृत्य को जिंदा बना दिया। इसके बाद वह खेती मृत से जिंदा हुए व्यक्ति के वारिसों को चली गई, जिसको लेकर जिंदा अधेड़ काफी दिनों तक दफ्तरों के चक्कर काटता रहा।
Hardoi News: सिस्टम की लापरवाही से कई बार हम सब ने पढ़ा होगा कि मृतक जिंदा हो जाते हैं। वहीं, जीवित को मृतक बना दिया जाता है। यह लापरवाही जिला स्तर के अधिकारियों द्वारा की जाती है। आए दिन समाचार की सुर्खियों में पढ़ने को मिलता है कि आवास के नाम पर किस तरह से मृतकों को भी जीवित दिखाकर आवास उपलब्ध करा दिए जाते हैं, जबकि जिंदा लोग आवास के लिए तरसते रहते हैं। ठीक उसी प्रकार हरदोई जनपद में भी एक ऐसे ही मामला सामने आया है, जहां अपने आप को जीवित साबित करने के लिए एक अधेड़ काफी दिन से जिला प्रशासन के चक्कर काट रहा, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई।
दरअसल, कृष्णपाल की उसके ताऊ के साथ साझे में खेती थी। ताऊ के निधन के बाद खेती वसीयत के रूप में उनके वारिस के नाम दर्ज होनी थी लेकिन तत्कालीन तहसीलदार ने जिंदा को मृत और मृत्य को जिंदा बना दिया। इसके बाद वह खेती मृत से जिंदा हुए व्यक्ति के वारिसों को चली गई, जिसको लेकर जिंदा अधेड़ काफी दिनों तक दफ्तरों के चक्कर काटता रहा। इसी दौरान उस अधेड़ के लिए मसीहा बनकर आए हरदोई के जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह। ज़िलाधिकारी ने मामले में जांच के आदेश दिए और मृत हो चुके अधेड़ को अभिलेखों में जिंदा कराया।
कई साल काटे चक्कर तब हुआ जीवित
मामला शाहबाद तहसील के ब्लाक पिहानी के कोटड़ा गांव का है, जहां कृष्णपाल सिंह कि अपने ताऊ चंद्रपाल के साथ लगभग 20 से 22 बीघा खेती साझे में थी। कृष्ण पाल इस खेती की बदौलत अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। इसी बीच 20 फरवरी 2015 को चंद्रपाल का निधन हो गया, इसके बाद कृष्ण पाल और चंद्रपाल के बीच साझा खाता राजस्व भूमि चंद्रपाल के आश्रितों के नाम दर्ज होनी थी। लेकिन, 20 फरवरी 2015 को जिम्मेदारों ने चंद्रपाल के स्थान पर कृष्ण पाल को अभिलेखों में मृतक दर्शाते हुए उसके हिस्से के खेत की वरासत चंद्रपाल के उत्तराधिकारियों को दे दी। इस बात की भनक लगते ही कृष्ण पाल अपने को जिंदा साबित करने के लिए अधिकारियों की चौखट पर दर-दर ठोकरे खाने लगा। कई साल तक अधिकारियों की चौखट पर ठोकर खाने के बाद भी कृष्ण पाल अभिलेखों में अपने आप को जीवित साबित नहीं कर सका। इसी बीच गांव में चकबंदी प्रक्रिया शुरू हो गई इसके बाद कृष्ण पाल पुनः अपने आप को जीवित करने के लिए दौड़ लगाने लगा।
कृष्ण पाल ने जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह से मिलकर पूरी घटना की जानकारी दी। जिलाधिकारी ने कृष्ण पाल सिंह की बात सुनकर चकबंदी विभाग को पूरे मामले में जांच कर कार्रवाई के आदेश दिए। जिलाधिकारी से प्राप्त आदेशों में चकबंदी विभाग की जांच में यह स्पष्ट हुआ की तहसीलदार की गलत रिपोर्ट के चलते यह हुआ है। विभाग से प्राप्त रिपोर्ट के बाद जिलाधिकारी ने तत्कालीन तहसीलदार के विरुद्ध अभियोग दर्ज कराने और अभिलेखों में मृत हुए कृष्ण पाल सिंह को वापस जीवित करने के निर्देश विभाग को दिए। जिला अधिकारी से प्राप्त निर्देशों के बाद उपसंचालक चकबंदी ज्ञानेश कुमार त्रिपाठी ने 20 फरवरी 2015 को तत्कालीन तहसीलदार द्वारा किए गए आदेश जिसमें कृष्ण पाल को मृत दिखाया था उसे निरस्त करते हुए कृष्ण पाल को अभिलेखों में जीवित कर उनका नाम दर्ज कर दिया।