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सुहागिनों ने रखा वट सावित्री व्रत, पति की लंबी आयु की कामना की
Vat Savitri Vart: हरदोई में सुबह से ही बरगद के पेड़ पर सुहागिनों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। सुहागिनों ने वट के पेड़ के नीचे बैठकर पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की।
Hardoi News: आज देश भर में वट सावित्री का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। इस दिन सुहागन महिलायें अपने पति की लंबी आयु के लिए वट की पूजा करती हैं। हरदोई में सुबह से ही बरगद के पेड़ पर सुहागिनों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। सुहागिनों ने वट के पेड़ के नीचे बैठकर पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की। बढ़ती आबादी के बीच आजकल वट के वृक्ष विलुप्त होते जा रहे हैं। ऐसे में जिन महिलाओं को वट के वृक्ष नहीं मिल पा रहे हैं वह बाजार से वट या बरगद की टहनी खरीद कर गमले में लगाकर उनकी पूजा अर्चना कर रही है। महिलाएं वट की पूजा में अलग-अलग तरह से विधि विधान के साथ पूजा कर रही हैं।
इस पूजा के पीछे ऐसी मान्यता है कि जिस प्रकार वट के पेड़ की आयु काफी लंबी होती है ऐसे में महिलाएं इस पेड़ की आयु जैसी अपने पति की आयु के लिए वट के पेड़ से प्रार्थना करती हैं। इसके पीछे पुराणों में एक कहानी भी प्रचलित है। सुबह से ही महिलाएं बिना कुछ खाए पिये इस पूजन को करती हैं। कुछ महिलाएं इस व्रत को निर्जला करती हैं। वट की पूजा करने से ऐसी मान्यता है कि जीवन की सभी प्रकार की बाधायें दूर होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि वट के वृक्ष में साक्षात ईश्वर विराजमान रहते हैं। वट सावित्री की पूजा में महिलाएं बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करती हैं। पूजा के दौरान वट वृक्ष के साथ या 11 बार महिलाएं परिक्रमा करते हुए पेड़ के चारों ओर कच्चा सूत लपेटते हैं यदि कच्चा सूत उपलब्ध नहीं होता तो कलावा भी कुछ महिलाएं प्रयोग करती नजर आ जाती हैं। इसके बाद वट वृक्ष या बरगद के पेड़ पर महिलाएं जल चढ़ाती हैं।
वट सावित्री के व्रत के पीछे है यह कहानी
वट सावित्री व्रत जेष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार महिलाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।करवा चौथ की भांति इस दिन भी महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए व्रत रखकर पूजा करती हैं। वट सावित्री का व्रत महिलाएं वट के पेड़ या बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर करती हैं कहा जाता है कि बरगद के पेड़ पर भगवान विष्णु, शिव जी और भगवान ब्रह्मा का वास होता है।
पुराणो के अनुसार वट सावित्री व्रत की कथा देवी सावित्री के पतिव्रता धर्म के बारे में है। कहा जाता है कि सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ था लेकिन उनकी अल्प आयु थी। एक बार नारद ने इसके बारे में देवी सावित्री को बता दिया और उनकी मृत्यु का दिन भी बता दिया। सावित्री अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए व्रत करने लगी वह अपने पति सास और ससुर के साथ जंगल में रहती थी। जिस दिन सत्यवान के प्राण निकलने वाले थे उसे दिन जंगल में लकड़ी काटने गए सत्यवान के साथ सावित्री भी चली गई थी जिस दिन सावित्री के पति सत्यवान के प्राण निकलने वाले थे उसे दिन सत्यवान के सर में तेज दर्द होने लगा और वह वहीं पर बरगद के पेड़ के नीचे लेट गया। इसके बाद सावित्री ने अपने पति के सर को गोद में रख लिया।कुछ समय में यमराज वहां आए और सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। अपने पति के प्राण यमराज द्वारा लेकर जाते देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल दी।
यमराज ने उसको समझाया कि सत्यवान अल्पायु थे इस वजह से उसका समय आ गया था तुम वापस घर चली जाओ लेकिन सावित्री नहीं मानी इस पर सावित्री ने कहा जहां मेरे पति जाएंगे वहां तक मैं भी साथ जाऊंगी। सावित्री की यह बात सुनकर यमराज प्रसन्न हुए और उसे तीन वरदान मांगने को कहा जिस पर सावित्री द्वारा यमराज से अपने अंधे सास ससुर की आंखों की रोशनी का पहला वरदान मांगा जिस पर यमराज ने तथास्तु कहा और उसे जाने को है लेकिन सावित्री यमराज के पीछे चलती रही तब यमराज दोबारा प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहते हैं तब सावित्री ने वर मांगा कि मेरे ससुर का खोया हुआ राज वापस मिल जाए इसके बाद सावित्री ने मांगा कि मैं सत्यवान के 100 पुत्रों की मां बनना चाहती हूं।
सावित्री की पति भक्ति को देखकर यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए और तथास्तु के का वरदान दे दिया जिसके बाद सावित्री ने कहा कि मेरे पति के प्राण तो आप हर ले जा रहे हैं तो आपके पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूरा होगा। तब यमदेव ने अंतिम वरदान देते हुए सत्यवान को पास से मुक्त कर दिया। सावित्री वापस बरगद के पेड़ के पास लौटी जहाँ सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। कुछ देर बाद सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखों की रोशनी आ गई। साथ ही उनका खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल गया तब से भारत में वट सावित्री का व्रत मनाया जाने लगा।