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हाथरस भगदड़ः क्या कृपालु महाराज की तरह भोले बाबा पर भी नहीं होगी कार्रवाई? जानें जिम्मेदार कौन और कितनी मिलेगी सजा?
Hathras Satsang Hadsa: हाथरस हादसे में अब बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि आखिर इस दर्दनाक हादसे के लिए जिम्मेदार कौन है? इसमें आयोजकों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक किस-किस की जवाबदेही तय होगी? और इस दोष के लिए कितनी सजा मिलेगी?
Hathras Satsang Hadsa: यह पहली बार नहीं है जब किसी सत्संग या समागम में भगदड़ मचा हो और सैकड़ों लोगों की जान चली गई हो। इससे पहले भी ऐसी कई घटनाएं हुई हैं। 2010 में यूपी के प्रतापगढ़ में कृपालु जी महाराज के आश्रम में भगदड़ मच गई थी जिसमें 63 लोगों की मौत हो गई थी। इस हादसे में कृपालु जी महाराज के खिलाफ कोई एफआईआर भी दर्ज नहीं हुई थी और इस तरह कृपालु जी महाराज के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन अब यहां यह सवाल उठ रहा है कि क्या भोले बाबा के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी? तो यहां भी अब तक की जो रिपार्ट है उसके अनुसार बोले बाबा पर भी कोई कार्रवाई नहीं होने वाली दिख रही है। जब एफआईआर में उनका नाम ही नहीं है तो ऐसे में कार्रवाई होने का कोई सवाल ही नहीं उठता है!
कानून के जानकारों की मानें तो हाथरस में साकार नारायण विश्वहरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ मचने से 121 लोगों की जान चली गई। लेकिन इस मामले में अभी तक बाबा पर एफआईआर दर्ज नहीं हुआ है। ऐसे में देखा जाए तो बाबा पर हाथरस मामले में अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हुआ है।
बता दें कि यूपी के हाथरस जिले में स्थित सिकंदराराऊ में आयोजित सत्संग में जुटी भारी भीड़ के बीच मंगलवार (दो जुलाई) को मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई थी।
अब यहां सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर इस दर्दनाक हादसे के लिए जिम्मेदार कौन है? आयोजकों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक किस-किस की जवाबदेही इसमें तय होगी? इस हादसे के लिए कितनी सजा मिलेगी? आइए यहां यह जानने की कोशिश करते हैं?
हाथरस जनपद के सिंकराराऊ क्षेत्र में स्थित फुलरई मुगलगढ़ी में साकार नारायण विश्वहरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग का आयोजन किया गया था। बताया जाता है कि इस सत्संग में शामिल होने के लिए हजारों लोग पहुंचे थे। मंगलवार को सत्संग का आखिरी दिन था और बाबा सत्संग खत्म कर बाहर जाने के लिए निकल रहे थे। उसी दौरान बाबा के पैर छूने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी।
प्रशासन, पुलिस और आयोजक जिम्मेदार कौन?
हाथरस की घटना के लिए जिला प्रशासन और पुलिस से लेकर आयोजक तक कठघरे में हैं। व्यवस्था पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसे में जवाबदेही और जिम्मेदारी तय करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कमेटी बना दी। एडीजी आगरा और कमिश्नर अलीगढ़ की अगुवाई में पूरी घटना की जांच होगी, जिससे स्पष्ट होगा कि आखिर इतने बड़े हादसे के लिए कौन जिम्मेदार है?
बोले डीएम-दी गई थी अनुमति
हालांकि, प्रशासन की ओर से खुद हाथरस के जिलाधिकारी ने कहा है कि सत्संग की अनुमति ली गई थी और इसकी अनुमति एसडीएम ने दी थी। वह खुद सवाल उठा रहे हैं कि आखिर सत्संग स्थल पर आने वाली भीड़ का अंदाजा क्यों नहीं लगाया गया? लोगों के आने-जाने और बाबा के आने और निकलने के लिए प्रवेश और निकास द्वार क्यों नहीं देखा गया?
जिला प्रशासन और पुलिस की थी
जिलाधिकारी का यह भी कहना है कि चूंकि सत्संग का आयोजन बाबा नारायण साकार हरि उर्फ साकार हरि उर्फ साकार विश्व हरि भोले बाबा की ओर से किया गया था। इसलिए अंदर की व्यवस्था खुद बाबा की ओर से की जानी थी। इसके अलावा बाहर कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन और पुलिस की थी। डीएम का दावा है कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ड्यूटी लगाई गई थी। ऐसे में चूक कहां हुई और इस घटना के लिए असल में कौन जिम्मेदार है, कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद इसका खुलासा होगा।
इन धाराओं में दर्ज की गई है एफआईआर
हाथरस मामले में फिलहाल पुलिस की ओर से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस)-2023 की धारा 105, 110, 126 (2), 223 और 238 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। यह एफआईआर भोले बाबा के मुख्य सेवादार देवप्रकाश मधुकर और सत्संग के अन्य आयोजकों के खिलाफ हाथरस के सिकंदराराऊ थाने में दो जुलाई की रात लगभग 10ः18 बजे दर्ज की गई। प्राथमिकी में बाबा का नाम नहीं है। ब्रजेश पांडे नाम के एक व्यक्ति की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर में जिस मुख्य सेवादार देवप्रकाश का जिक्र है, वह हाथरस स्थित सिकंदराराऊ क्षेत्र के दमदपुरा में रहता है।
गैर इरादतन हत्या की इतनी हो सकती है सजा
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील चंद्रचूड़ पांडेय बताते हैं कि हाथरस घटना के लिए जो भी जिम्मेदार होगा, उसके खिलाफ गैर इरादतन हत्या की कार्रवाई की जा सकती है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस)-2023 में दी गई धारा 105 गैर इरादतन हत्या को परिभाषित करती है। इस धारा में इसकी सजा के बारे में बताया गया है, जिसे पुलिस ने एफआईआर में भी शामिल किया है।
उन्होंने आगे कहा कि अगर इस धारा के अनुसार किसी की मौत का कारण बनने वाला काम इसी इरादे से किया गया है, तो सजा आजीवन कारावास या कम से कम पांच साल की कैद है। यही नहीं इसे दस साल तक बढ़ाया भी जा सकता है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यदि यह कार्य इस जानकारी के साथ किया गया है कि इससे मृत्यु होने की संभावना है तो सज़ा को दस साल तक कारावास और जुर्माना तक बढ़ाया जा सकता है। आईपीसी में गैर इरादतन हत्या का मुकदमा धारा 304 के तहत दर्ज होता था।
दूसरी धाराओं में इतनी सजा का प्रावधान-
इसके अलावा धारा 110 तब लगाई जाती है, जब कोई इस तरह के इरादे या बोध के साथ ऐसी परिस्थितियों में कोई कार्य करता है, जिससे वह किसी की मृत्यु का कारण बन जाए, तो वह गैर इरादतन हत्या (जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता) का दोषी होगा। इसमें तीन से सात साल तक की सजा का प्रावधान है। आईपीसी के तहत इसका मुकदमा धारा-308 में दर्ज किया जाता था। इसके अलावा धारा 126 (2) में गलत तरीके से रोकने पर कार्रवाई होती है। इसमें तीन से छह महीने तक की सजा हो सकती है। इसे पहले आईपीसी में धारा-339 के रूप में जाना जाता था। धारा 223 का इस्तेमाल सरकारी अधिकारी के निर्देश या आदेश की अवज्ञा या नहीं मानने पर किया जाता है। इसे पहले धारा 188 के रूप में जाना जाता था और इसका इस्तेमाल लॉकडाउन के लिए किया गया था। धारा 238 को सबूत मिटाने या गलत जानकारी देने के लिए लगाया जाता है। इसमें सात साल तक की सजा हो सकती है।
क्या कहते हैं कानून विशेषज्ञ?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील चंद्रचूड़ पांडेय का कहना है कि ऐसे मामलों में प्राथमिक अंतर इरादे और ज्ञान की डिग्री में निहित होता है। वास्तव में हत्या में उच्च स्तर का इरादा और ज्ञान शामिल होता है कि इस कार्य के परिणामस्वरूप मृत्यु होगी। इसके विपरीत, गैर इरादतन हत्या में हमेशा इतनी उच्च स्तर की निश्चितता या इरादा शामिल नहीं हो सकता है। किसी काम को हत्या मानने के लिए, मृत्यु या गंभीर शारीरिक क्षति पहुंचाने का इरादा स्पष्ट होना चाहिए।
हालांकि, गैर इरादतन हत्या उन स्थितियों में हो सकती है, जहां मृत्यु उन कार्यों के कारण होती है, जिनका उद्देश्य आवश्यक रूप से मृत्यु का कारण नहीं था, बल्कि इस ज्ञान के साथ किया गया था कि वे मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
पूरा अमला जांच की जद में आएगा-
उनका कहना है कि चूंकि आयोजन की अनुमति प्रशासन ने दे रखी थी। ऐसे में हाथरस जिले का पूरा अमला जांच की जद में आएगा। अफसर यह तो कह रहे हैं कि वहां सुरक्षा व्यवस्था की गई थी, लेकिन सवाल उठता है कि अगर सारे समुचित इंतजाम थे तो भगदड़ कैसे और क्यों मच गई?
यहां स्पष्ट है कि प्रशासनिक लापरवाही हुई है। भीड़ का आकलन करने से लेकर उसके प्रबंधन में भारी चूक से इनकार नहीं किया जा सकता। जांच में दोषी पाए जाने पर अफसरों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई तय है। आयोजकों की गिरफ्तारी भी होगी। समय का इंतजार करना होगा, लेकिन सवाल अनेक फिर भी खड़े हो रहे हैं। यहां देखना यह भी होगा कि हाथरस की इस वीभत्स घटना से प्रशासनिक मशीनरी कितना सबक लेती है।
और इस तरह साफ मच गए थे कृपालु जी महाराज-
2010 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालु महाराज के रामजानकी मंदिर में लोग निःशुल्क बांटे जा रहे कपड़े और खाना लेने के लिए जमा हुए थे। यहां एक स्वयंभू तांत्रिक ये आयोजन कर रहा थे। लेकिन कपड़ा और खाना बांटे जाने के दौरान भीड़ अनियंत्रित हो गई और भगदड़ मच गई। जिसमें कम से कम 63 लोगों की कुचल कर मौत हो गई।
प्रतापगढ़ के तत्कालीन जिलाधिकारी चौब सिंह वर्मा ने उस समय बताया था कि मनगढ़ के चौकी प्रभारी ने भंडारे के आयोजकों और प्रबंधकों के विरुद्ध कुंडा पुलिस थाने पर प्राथमिकी दर्ज करा दी है, मगर उसमें किसी व्यक्ति विशेष के नाम का उल्लेख नहीं है। और इस तरह यह घटना में कृपालु जी महाराज का नाम ही नहीं आया और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं हुई।
जानें इस तरह के हादसों पर क्या हैं नियम?
यह कहता है नियम
अगर इस प्रकार का कोई भी आयोजन कहीं पर किया जाता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उसके आयोजकों और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी वहां के प्रशासन की होती है। अगर सुरक्षा में चूक होती है तो सभी आयोजकों पर सरकारी तलवार चलेगी और प्रशासन भी इस हादसे के लिए जिम्मेदार होगा। अब सवाल यह है कि इतने बड़े आयोजन की परमिशन किसने दी और इस सत्संग के आयोजक कौन थे? इन सभी का पता लगाने के लिए और सजा देने के लिए सरकार ने टीम गठित कर दी है।
जानिए क्या कहती है एनडीएमए की रिपोर्ट-
एनडीएमए की रिपोर्ट के अनुसार भीड़भाड़ वाली जगहों पर होने वाले हादसों के लिए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने 2014 में एक रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में कुछ सुझाव दिए गए थे। ये सुझाव राज्य सरकार, स्थानीय अधिकारियों, प्रशासन और आयोजकों के लिए थे।
रिपोर्ट में भीड़ प्रबंधन से जुड़े लोगों के प्रशिक्षण का सुझाव दिया गया था। इसके लिए हर स्तर पर काम करने की जरूरत पर भी जोर दिया गया था। रिपोर्ट में पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को भीड़ के व्यवहार और मनोविज्ञान का अध्ययन और भीड़ प्रबंधन को जानने के बारे में कहा गया था।
धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा के इंतजाम
भारत में होने वाले प्रवचनों और धार्मिक आयोजनों में बड़े पैमाने पर लोग शामिल होते हैं। कई बार तो भीड़ इतनी आ जाती है जितने की आयोजकों को उम्मीद भी नहीं रहती है। ऐसे में उनके इंतजाम भी कम पड़ जाते हैं लेकिन कई बार ऐसे आयोजनों में अव्यवस्था साफ-साफ नजर आती है।
-कई बार देखने में यह भी आता है कि इन आयोजनों के लिए पुलिस इंतजाम पर्याप्त नहीं होते हैं या पुलिस से इजाजत भी नहीं ली जाती है और अगर ली भी जाती है तो उतने लोगों की संख्या पुलिस को नहीं बताई जाती है, जितने श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद होती है। इस वजह से भी पुलिस जरूरी इंतजाम नहीं कर पाती है।