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शुगर मिलों को 2004 की प्रमोशन पॉलिसी के तहत लाभ देने का कोर्ट ने दिया आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा गन्ना उद्योग प्रमोशन पॉलिसी 2004 को वापस लेने संबधी 4 जून 2007 का आदेश खारिज कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने उक्त पालिसी के तहत निवेश करने वाले शुगर मिलों को पॉलिसी का लाभ देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने दो महीने में मिलों के दावों का परीक्षण कर, उन्हें उक्त लाभ देने को कहा है।
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा गन्ना उद्योग प्रमोशन पॉलिसी 2004 को वापस लेने संबधी 4 जून 2007 का आदेश खारिज कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने उक्त पालिसी के तहत निवेश करने वाले शुगर मिलों को पॉलिसी का लाभ देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने दो महीने में मिलों के दावों का परीक्षण कर, उन्हें उक्त लाभ देने को कहा है।
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यह आदेश चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस शबीहुल हसनैन की बेंच ने 11 शुगर मिलों की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया। उक्त पॉलिसी के तहत वर्ष 2004 में राज्य सरकार ने शुगर मिलों में निवेश को बढावा देने के उद्देश्य से निवेशकों को कुछ टैक्सों में राहत व प्रतिपूर्ति का वादा किया था। लेकिन वर्ष 2007 में सपा सरकार बनने के बाद उक्त पॉलिसी को खत्म कर दिया गया था।
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याची मिलों की ओर से उक्त याचिकाएं वर्ष 2007, 2008 और 2009 में दाखिल की गई थीं। मिलों की दलील थी कि सरकार के उक्त पॉलिसी पर भरोसा करते हुए, उन्होंने नए शुगर मिलों की स्थापना व पूर्व से स्थापित मिलों की क्षमता को बढाने में भारी-भरकम रकम निवेश कर दी लेकिन प्रदेश में सरकार बदलने के बाद 4 जून 2007 को उक्त पॉलिसी अचानक खत्म कर दी गई। कहा गया कि उन्होंने इतनी बड़ी रकम निवेश की लेकिन पॉलिसी को खत्म करने से पूर्व उन्हें नोटिस भी जारी नहीं की गई।
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कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद, मामले पर विस्तृत निर्णय देते हुए टिप्पणी कि हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उक्त पॉलिसी को समाप्त करना, प्राकृतिक न्याय व वचन विबंधन के सिद्धांत के विपरीत था। कोर्ट ने 4 जून 2007 के पॉलिसी खत्म करने के शासनादेश को रद् कर दिया व याची मिलों के दावों का परीक्षण करते हुए उन्हें लाभ देने का आदेश दिया।