HC ने खारिज की याचिका, कहा- रेलवे की प्रॉपर्टी पर उपभोक्ता सहकारी समिति का कोई अधिकार नहीं

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने रेलवे उपभोक्ता सहकारी समिति लिमिटेड की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि याचियों को उक्त सम्पत्ति पर दावे का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि याचियों का दावा था कि वे 65 सालों से उक्त सम्पत्ति पर काबिज हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति एपी साही और न्यायमूर्ति संजय हरकौली की बेंच ने समिति की ओर से दाखिल याचिका पर दिया।

tiwarishalini
Published on: 11 Jan 2017 3:25 PM GMT
HC ने खारिज की याचिका, कहा- रेलवे की प्रॉपर्टी पर उपभोक्ता सहकारी समिति का कोई अधिकार नहीं
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लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने रेलवे उपभोक्ता सहकारी समिति लिमिटेड की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि याचियों को उक्त सम्पत्ति पर दावे का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि याचियों का दावा था कि वे 65 सालों से उक्त सम्पत्ति पर काबिज हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति एपी साही और न्यायमूर्ति संजय हरकौली की बेंच ने समिति की ओर से दाखिल याचिका पर दिया।

याचिका में कहा गया था कि 6 जनवरी को समिति को वह परिसर खाली करने का आदेश दे दिया गया जिस पर वे साल 1951 से काबिज थे। याची पक्ष का कहना था कि परिसर का इस्तेमाल रिफ्रेशमेंट के लिए किया जाता रहा है और इसका किराया भी रेलवे वसूलती है।

याचियों के अधिवक्ता की ओर से दलील दी गई कि उक्त याचिका दाखिल करने के बाद बुधवार (10 जनवरी) को सुबह दस बजे परिसर को खाली करा दिया गया। जबकि याचियों को सार्वजनिक परिसर अधिनियम-1972 का सहारा मिलना चाहिए अथवा कम से कम नोटिस दी जानी चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि बलपूर्वक परिसर को खाली कराने का आदेश न्यायोचित नहीं है।

कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए रेलवे के अधिवक्ता से परिसर को खाली कराने का कारण पूछा। जिस पर उन्होंने बताया कि परिसर से लगी हुई सड़क पर टैक्सी का रास्ता उपलब्ध न होने की वजह से खाली करने का आदेश दिया गया है। उन्होंने यह भी दलील दी कि ट्रेड यूनियन के अन्यत्र शिफ्ट हो जाने के बाद याची पक्ष ने परिसर पर कब्जा कर लिया।

उधर कोर्ट के पूछने पर याची पक्ष आवंटन संबंधी कोई दस्तावेज नहीं पेश कर सका। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि याची परिसर को खाली करने के आदेश का विरोध नहीं कर सकते। लिहाजा याची पक्ष को उस परिसर पर दावे का अधिकार नहीं है जिसकी रेलवे को अपने इस्तेमाल के लिए जरूरत है। हालांकि याची पक्ष की ओर से वैकल्पिक स्थान की व्यवस्था के अनुरोध पर कोर्ट ने रेलवे को उनके अनुरोध पर गौर करने के आदेश दिए।

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