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DIOS के खिलाफ 4 साल से लंबित जांच किसी किनारे नहीं पहुंची, कोर्ट ने सरकार पर जताया आश्चर्य

लंबे अरसे से लखनउ में तैनात जिला विद्यालय निरीक्षक उमेश कुमार त्रिपाठी के खिलाफ मुश्किलें बढ़ सकती है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से उनके खिलाफ लंबित विजिलेंस जांच की स्टेटस रिपोर्ट 30 नवंबर को तलब की है।

tiwarishalini
Published on: 29 Nov 2016 12:00 AM IST
DIOS के खिलाफ 4 साल से लंबित जांच किसी किनारे नहीं पहुंची, कोर्ट ने सरकार पर जताया आश्चर्य
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लखनऊ: लंबे अरसे से लखनउ में तैनात जिला विद्यालय निरीक्षक उमेश कुमार त्रिपाठी की मुश्किलें बढ़ सकती है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से उनके खिलाफ लंबित विजिलेंस जांच की स्टेटस रिपोर्ट 30 नवंबर को तलब की है। कोर्ट को आश्चर्य हो रहा था कि आखिर किन कारणों और किनके प्रभाव में उक्त जांच चार साल से किसी किनारे पर नही पहुंच सकी। यह आदेश जस्टिस ए पी साही और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने नेशनल एसोसिएशन फॉर वेलफेयर ऑफ यूथ की ओर से दाखिल एक जनहित याचिका पर दिए।

याचिका में कहा गया है कि डीआईओएस उमेश कुमार त्रिपाठी के खिलाफ चार साल से विजिलेंस जांच लंबित है। जिसे उनको लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से अब तक पूरा नहीं किया गया है। याची के वकील अनुपम मेहरोत्रा के अनुसार, याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट उक्त जांच को तय समय सीमा में पूर्ण करने का आदेश दे। इसके साथ ही जांच पूरी होने तक उमेश कुमार त्रिपाठी को डीआईओएस लखनऊ पद से हटाया जाए और किसी भी महत्वपूर्ण पद पर तैनाती न दी जाए।

याचिका में डीआईओएस के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान याची की ओर से एक पूरक शपथ पत्र भी दाखिल किया गया। जिसमें उमेश कुमार त्रिपाठी के खिलाफ कई-कई सालों से अलग-अलग नौ विभागीय जांचें लंबित होना बताई गईं। जिनमें से एक के अतिरिक्त किसी में भी रिपोर्ट नहीं तैयार की गई है। यह भी दावा किया गया है कि लोकायुक्त ने भी अपनी प्राथमिक जांच में उमेश कुमार त्रिपाठी के खिलाफ मुख्यमंत्री को रिपोर्ट भेजी है। मामले की अग्रिम सुनवाई 30 नवंबर को होगी।

अगली स्लाइड में पढ़िए विभागीय जांच न कर पाने पर स्टाफ की कमी का रोना रोने पर HC ने सरकार को लगाई फटकार

विभागीय जांच न कर पाने पर स्टाफ की कमी का रोना रोने पर हाई केार्ट ने सरकार को लगाई फटकार

लखनऊ: सेवा संबधी एक मामले में राज्य सरकार की ओर से दाखिल याचिका पर गौर करने पर हाईकोर्ट ने पाया कि सरकार का तर्क है कि स्टाफ की कमी के कारण जांच पूरी नहीं की गई। इस पर कोर्ट ने कहा कि सरकार की इस प्रकार की दलील से हम आश्चर्यचकित हैं। जस्टिस शबीहुल हस्नेन और जस्टिस ए के श्रीवास्तव की बेंच ने कहा कि यह सरकार पर हर्जाना लगाए जाने के लिए बिल्कुल उपयुक्त मामला है लेकिन हम खुद को रोक रहे हैं।

दरअसल समाज कल्याण विभाग के कर्मचारी शंकर लाल के खिलाफ दंडात्मक आदेश पर स्टेट सर्विस ट्रिब्युनल ने अपने निर्णय में रोक लगा दी थी। हालांकि अपने आदेश में ट्रिब्युनल ने यह भी स्पष्ट किया था कि विभाग यूपी सरकारी कर्मचारी (अनुशासन व अपील) अधिनियम 1999 के नियम- 7(7) के तहत जांच करने को स्वतंत्र है लेकिन जांच किए जाने का निर्णय यदि लिया जाता है तो यह दो महीने में शुरू कर के छह महीने में पूरा कर लिया जाए।

राज्य सरकार ने ट्रिब्युनल के इसी आदेश को लगभग दो साल बाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा कि राज्य सरकार ने दो महीने में जांच शुरू करने के बजाए दो साल याचिका तैयार करने में लगा दिए। याचिका के तथ्यों पर गौर करने से पता चलता है कि स्टाफ की कमी के कारण जांच पूरी नहीं हो सकी। सरकार की ऐसी दलील आश्चर्यजनक है। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह एक उपयुक्त मामला है जिसमें सरकार पर विपक्षी को मनमाने ढंग से कोर्ट में घसीटने के लिए हर्जाना लगाया जाए लेकिन हम खुद को रोक रहे हैं।



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tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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