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सपाई वकीलों की नियुक्ति के बाद, आरएसएस ने तलब किया महाधिवक्ता को
लखनऊ : आरएसएस ने राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट की लखनउ बेंच में मुकदमों की पैरवी के लिए जारी सरकारी वकीलों की सूची पर संघ व संगठन से जुड़े तमाम वकीलों की उपेक्षा पर नाराजगी जतायी है।
विधि विभाग की ओर से शुक्रवार देर शाम जारी 201 सरकारी वकीलों की इस सूची में पिछली सपा सरकार के दौरान रहें करीब पचास सरकारी वकीलों को फिर से स्थान मिल गया है। सूची में न्यायाधीशेां के सगे संबधियों को भी काफी तवज्जो दी गयी है। सूची में नाम न देख संघ व भाजपा की विचारधारा से जुडे़ वकीलेां में मायूसी छा गयी। तमाम वकीलों ने भाजपा प्रदेश व क्षेत्र कार्यालय तथा संघ के भारती भवन जाकर अपनी आपत्ति जतायी।
सूत्रों के मुताबिक महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह शनिवार अपरान्ह अपनी सफायी देने भारती भवन पहुचें। जहाँ उन्होंने कहा कि सूची बनाने में उनका कोई हाथ नही है जिस पर उनसे कहा गया कि यदि न्याय विभाग ने सूची जारी करने से पहले उनसे राय नही ली तो पूरी सूची को रिकाल कर नयी सूची क्यों न जारी की जाये। बड़े पैमाने पर सपा विचारधारा के वकीलों पर भरेासा जताने पर महाधिवक्ता कोई स्पष्ट जवाब न दे सके।
सूत्रों के अनुसार मामला मुख्यमंत्री के भी संज्ञान में आ गया है। बतातें चलें कि तीन माह से प्रतीक्षारत सूची प्रमुख सचिव विधायी रंगनाथ पांडे के शुक्रवार को बतौर हाईकोर्ट जज शपथ लेने के तुरंत बाद न्याय विभाग की ओर से जारी कर दी गयी।
हाईकोर्ट की लखनउ पीठ में करीब चार सौ अट्ठाइस सरकारी वकील कार्यरत थे। जिनमें से एक सौ पचीस के लगभग क्रिमिनल साइड और शेष सिविल साइड के सरकारी वकील थे। सरकार ने क्रिमिनल साइड के अपर शासकीय अधिवक्ताओं को छोडंकर बाकी को शुक्रवार को हटा दिया था और 201 सरकारी वकीलो की नयी सूची जारी कर दी थी।
नयी सूची में सपा सरकार में मंत्री रहे शिवाकांत ओझा के पुत्र सत्यांशु ओझा सहित तमाम पुराने सरकारी वकीलों केा फिर से रिपीट कर दिया गया। सूची में जहां अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रहे व एक जज के भाई विनय भूषण को प्रोन्नत कर मुख्य स्थायी अधिवक्ता द्वितीय बनाया गया है। वहीं पहले से रहे सरकारी वकीलों राहुल शुक्ला, अभिनव एन त्रिपाठी, देवेशचंद्र पाठक, पंकज नाथ कमल, हसन रिजवी, विवेक शुक्ला, मनु दीक्षित सहित हिमांशु शेखर, नीरज चैरसिया, आशुतोष सिंह, रनविजय सिंह सहित कुल पचास के करीब सपाई सरकारी वकीलों केा फिर से वापस सरकारी वकील बनाने को लेकर संघ व संगठन में काफी रोष देखा गया।
इसके अलवा संगठन में चर्चा है कि सूची में 79 नाम ऐसे हैं जिनके बारे में कोई अधिकृत जानकारी नहीं है कि वे नाम किसके कहने पर सूची में जोड़े गये।