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हाईकोर्ट का फैसला, बिना कारण बताये पारित आदेश न्याय देने से इनकार के समान
कोर्ट ने कहा कि वादकारी का यह अधिकार है कि उसके विरुद्ध आदेश का कारण बताया जाए। ऐसा न करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों का उल्लंघन है।
इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी आदेश के पीछे कारणों का उल्लेख करना निष्पक्षता एवं पारदर्शिता के लिए जरूरी है और वादकारी का यह अधिकार है कि उसके विरुद्ध आदेश का कारण बताया जाए। ऐसा न करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों का उल्लंघन है।
आदेश का कारण न बताना, न्याय देने से इनकार करने के समान है। कारण स्पष्ट न करने के कारण ऐसा आदेश विधि सम्मत न होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
कोर्ट ने सस्ते गल्ले की दुकान का लाइसेंस पांच हजार रूपये प्रतिभूति जब्त कर बहाल करने के एसडीएम सदर फतेहपुर के 15 दिसम्बर 16 के आदेश को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है। आदेश में दण्ड देने का कारण स्पष्ट नहीं किया गया था।
आदेश का कारण बताना जरूरी
-यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी.केशरवानी ने बुद्धराज की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
-एसडीएम ने याची के स्पष्टीकरण को संतोषजनक नहीं माना था और उसके विकलांग होने व पहली गलती होने के कारण पांच हजार प्रतिभूति जब्त कर लाइसेंस बहाली का आदेश दिया था जिसे चुनौती दी गई थी।
-कोर्ट के निर्देश पर एसडीएम ने हाजिर होकर बिना शर्त माफी मांगी और कहा कि दस माह पूर्व ही सेवा में आये हैं। अनुभव की कमी के कारण ऐसी गलती हुई है।
-उन्होंने कहा कि आदेश में कारण स्पष्ट न कर पाने की गलती माफ की जाए।
-कोर्ट ने पुनर्विचार का आदेश देते हुए दो माह में पक्षों को सुनकर कारण सहित नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
-याची की फतेहपुर जिले की अकबरपुर इटोरूरा ग्राम पंचायत में सस्ते गल्ले की दुकान थी। शिकायत पर लाइसेंस निलंबित कर दिया गया था।