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टीचर को सत्र लाभ देने के बाद नो वर्क नो पे को हाईकोर्ट ने माना गलत
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के विशेष सचिव डाक द्वारा जारी 2 मई 17 के शासनादेश को रद्द कर दिया है। इस शासनादेश से 30 जून 15 तक 62 साल की आयु वाले प्राथमिक विद्यालयों के सहायक अध्यापकों को 30 जून के बाद सत्र परिवर्तन के चलते सत्र लाभ से वंचित कर दिया गया था।
राज्य सरकार ने शिक्षा सत्र एक जुलाई से 30 जून तक के शिक्षा सत्र को एक अप्रैल से 31 मार्च तक परिवर्तित कर दिया गया। फलस्वरूप 30 जून 15 तक शिक्षा सत्र में सेवानिवृत्त होने वाले अध्यापकों को जबरन सेवा निवृत्त कर दिया गया। बाद में कोर्ट के आदेश पर सभी अध्यापकों को सत्र लाभ देते हुए मार्च 16 तक कार्यरत रहने के आदेश का पालन करते हुए सभी को ज्वाइन कराया गया किन्तु जुलाई 15 से दोबारा ज्वाइन करने तक का नो वर्क नो पे के आधार पर वेतन देने से इंकार कर दिया गया जिसे चुनौती दी गयी थी। कोर्ट ने 2 मई के शासनादेश को कानून के विपरीत माना है और कहा है कि याचीगण बकाया वेतन पाने के हकदार है।
यह आदेश न्यायमूर्ति पी.के.एस.बघेल ने संत कबीरनगर के बेसिक शिक्षा स्कूल के प्रधानाचार्य अंगद यादव व सात अन्य अध्यापकों की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता का कहना था कि याचियों को 31 मार्च 16 तक सत्र लाभ पाने का अधिकार है। याची हमेशा कार्य करने को तैयार थे। उनसे काम नहीं लिया गया। इसके लिए राज्य सरकार की गलतली है। याचियों का दोष नहीं है। ऐसे में काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धान्त लागू नहीं होगा।
अधिवक्ता का कहना था कि रमेश चन्द्र तिवारी केस में कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि शिक्षा सत्र बदलने के बाद अध्यापकों को 31 मार्च 16 सत्र लाभ पाने का अधिकार है। सरकार ने 30 जून 15 को रिटायर कर पेंशन देना शुरू किया और बाद में पेंशन रोक कर पुनः वेतन देना शुरू किया। नो वर्क नो पे के आधार पर वेतन देने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने इसे सही नहीं माना। छात्रों की पढ़ाई बाधित न हो, इसलिए सत्र लाभ दिया गया है।