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लम्बित केसों की शीघ्र सुनवाई के लिए उसी कोर्ट में दी जाए अर्जीः हाईकोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि विचाराधीन मुकदमे की शीघ्र सुनवाई के लिए सम्बन्धित कोर्ट में ही अर्जी दी जाय और कोर्ट उचित कारण होने पर शीघ्र सुनवाई के लिए अर्जी पर आदेश दे।
प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि विचाराधीन मुकदमे की शीघ्र सुनवाई के लिए सम्बन्धित कोर्ट में ही अर्जी दी जाय और कोर्ट उचित कारण होने पर शीघ्र सुनवाई के लिए अर्जी पर आदेश दे। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को विचाराधीन मुकदमें की शीघ्र सुनवाई का आदेश देने से उन लोगो के साथ अन्याय होता है जो गरीबी के कारण हाईकोर्ट नहीं आ सकते। उनका नुकसान होता है। ऐसे में मुकदमे को जल्दी सुने जाने की अर्जी उसी कोर्ट में दी जानी चाहिए।
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कोर्ट ने कहा है कि यदि याची अर्जी देता है तो नियमानुसार विचार कर निर्णय लिया जाय। 2018 से याची का मुकदमा सक्षम अधिकारी/जिलाधिकारी आर्बिट्रेटर एटा के समक्ष विचाराधीन है। यह आदेश न्यायमूर्ति पी.के.एस.बघेल तथा न्यायमूर्ति आर.आर. अग्रवाल की खंडपीठ ने अभिषेक गोयल की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।
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याचिका पर विपक्षी अधिवक्ता आर.के. जायसवाल ने कोर्ट को अली शाद उस्मानी केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सामान्यतया हाई कोर्ट को अधीनस्थ कोर्ट को मुकदमे को शीघ्र तय करने का आदेश देने से बचना चाहिए, क्योंकि यह वादकारी का अलग वर्ग बनाता है। जिसके मुकदमे जल्दी सुने जाएंगे। यह गरीब व हाईकोर्ट आने में असमर्थ वादकारियों के हितों के खिलाफ है। यह सिद्धांत अधिकरणों, अर्ध न्यायिक अधिकारियो पर भी समान रूप से लागू होगा। याची का अधिक मुआवजे का मामला अर्बिट्रेटेर के समक्ष विचाराधीन है।