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मजिस्ट्रेट के सम्मन पर आरोप का ट्रायल हो सकता है शुरू: हाईकोर्ट

sudhanshu
Published on: 9 Aug 2018 1:47 PM GMT
मजिस्ट्रेट के सम्मन पर आरोप का ट्रायल हो सकता है शुरू: हाईकोर्ट
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इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि मजिस्ट्रेट के सम्मन पर आरोप का ट्रायल शुरू हो सकता है। इसलिए पुलिस रिपोर्ट पेश होने पर मजिस्ट्रेट को विवेक का प्रयोग कर संज्ञान लेना चाहिए क्योंकि मजिस्ट्रेट के सम्मन पर आरोप निर्मित हो सकता है व गवाही हो सकती है। ऐसे में कैजुअली या विवेक का प्रयोग किए बगैर आदेश नहीं देना चाहिए ।

कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट प्राप्त करने का कार्यालय नहीं है । और न ही विवेचना पूरी करने की रिपोर्ट पर मुहर लगाने के लिए है ।

कोर्ट ने अलीगढ़ के क्वारशी थाना क्षेत्र निवासी डॉ नरेन्द्र चौधरी की 25 सितंबर 2014 को हुई हत्या के मामले में आरोपियों को सम्मन जारी कर तलब करने के आदेश को रद्द कर दिया है और मजिस्ट्रेट को एक माह में आदेश करने का निर्देश दिया है ।कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने बिना विवेक का प्रयोग किए आदेश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह ने शकुंतला देवी व शीलेन्द्र कुमार की याचिका पर दिया है ।मामले के तथ्यों के अनुसार पुलिस ने हत्या के आरोप में चार्जशीट दाखिल की।कहा आरोपी सीसीटीवी रिकार्डिंग में मृतक के साथ आखिरी बार देखे गए थे। हत्या का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था। मजिस्ट्रेट ने पुलिस को कुछ बिंदुओं पर नए सिरे से विवेचना पूरी करने का निर्देश दिया। विवेचक ने दो अन्य गवाहों के बयान दर्ज करके दोबारा चार्जशीट दाखिल की। मजिस्ट्रेट ने पुरानी रिपोर्ट व रिकार्ड का अवलोकन कर सम्मन जारी किया लेकिन संतुष्ट होने का कारण नहीं बताया । याची के अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने कहा मजिस्ट्रेट ने आदेश देते समय विवेक का प्रयोग नहीं किया ।जिस पर कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए सम्मन जारी करने का आदेश रद्द कर दिया है।

कोर्ट की अन्‍य खबरें:

टीजीटी 2009: पुनरीक्षित रिजल्ट में पास अभ्यर्थियों की नियुक्ति का आदेश

इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने टी जी टी 2009 की भर्ती परीक्षा के कला विषय के पुनरीक्षित घोषित परिणाम में सफल अभ्यर्थियों को नियुक्त करने का आदेश दिया है और कहा है कि जरूरी हो तो विज्ञापित पद की कमी को अतिरिक्त पद जोड़ कर नियुक्ति की जाय। कोर्ट ने कहा है कि पहले से कार्यरत अध्यापको की सेवा बाधित नही होगी।वरिष्ठता व पेंशन आदि के लिए सेवा को माना जायेगा।

यह आदेश न्यायमूर्ति एस पी केशरवानी ने मंजू कुमारी सहित सैंकड़ों याचियों की याचिकायें स्वीकार करते हुए दिया है। मालूम हो कि 2009 की टी जी टी भर्ती परिणाम को कुछ सवालों के उत्तर विकल्प सही न होने को लेकर याचिका दाखिल हुई। कोर्ट ने दो सवालों के उत्तर सही कर परिणाम घोषित करने का निर्देश दिया। इससे पहले सेकड़ो सफल घोषित अभ्यर्थियों की नियुक्ति हो चुकी थी।पुनरीक्षित परिणाम में पूर्व में चयनित सैंकड़ों अध्यापक फेल हो गए। उनकी नौकरी पर संकट आ गया। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे काफी लंबे समय से कार्यरत हैं, अधिकांश ओवर एज हो चुके हैं। उन्हें नही हटाया जाए। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने भी ओम प्रकाश यादव केस को निस्तारित करते हुए पूर्व में कार्यरत अध्यापकों को डिस्टर्ब किये बगैर पुनरीक्षित परिणाम में सफल अभ्यर्थियों को भी नियुक्त किया जाए। इसी समान याचिकाओं को भी उसी फैसले के तर्ज पर कोर्ट ने याचियों को नियुक्ति देने का फैसला लिया है।

हाईकोर्ट: पुलिस कस्टडी में मौत की मजिस्ट्रेट करे जाँच

इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने संत रविदास नगर (भदोही)के गोपीगंज थाने में रामजी मिश्र की पुलिस अभिरक्षा में हुई मौत की जांचच न्यायिक मजिस्ट्रेट से कराने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने जिलाधिकारी को मजिस्ट्रेटी जांच का आदेश निर्गत करने का निर्देश दिया और कहा है कि रिपोर्ट आने के बाद चार हफ्ते में पीड़ितों को मुआवजे के भुगतान के बारे में निर्णय लिया जाए।

यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति डीबी भोसले एवं न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने वेदिका गुप्ता व छह अन्य विधि छात्र-छात्राओं की जनहित याचिका पर दिया है।याचिका में गोपीगंज के थाना इंचार्ज सुनील वर्मा के खिलाफ पर एफआईआर दर्ज कराने व पुलिस अभिरक्षा में मौत की न्यायिक जांच की मांग की गई थी। याची के अधिवक्ता केके रॉय का कहना था कि घटना की जांच के लिए एसीजेएम भदोही के समक्ष सीआरपीसी की धारा 176 के तहत अर्जी दी गई लेकिन कोई आदेश नहीं हुआ। इस पर कोर्ट ने कहा कि स्थानीय क्षेत्राधिकार वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट से घटना की जांच कराई जानी चाहिए और जिलाधिकारी को न्यायिक जांच कराने का आदेश दिया। कोर्ट ने एक माह में जांच पूरी करने की उम्मीद जताई है।

नहीं खारिज हो सकती मृतक आश्रित की नियुक्ति

इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि मृतक आश्रित की नियुक्ति की अर्जी यह कहकर खारिज नहीं की जा सकती कि अर्जी पांच साल बाद दाखिल की गई है। कोर्ट ने कहा कि आश्रित परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए देरी माफ की जानी चाहिए। इसी के साथ कोर्ट ने बीएसए औरैया के आदेश रद्द करते हुए छह हफ्ते में नए सिरे से आदेश पारित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि यदि नियत समय के भीतर आदेश नहीं किया जाता है तो वह प्रतिदिन की जाने वाली देरी के लिए एक हजार रुपये याची को हर्जाने का भुगतान करे।

यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने पूर्व माध्यमिक विद्यालय मनी कोठी औरैया के मृत सहायक अध्यापक करोड़ी लाल के पुत्र महादेव प्रसाद शाक्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। मामले के तथ्यों के अनुसार पिता की मृत्यु के समय याची 12 साल का था। 2012 में बालिग होने पर उसने नियुक्ति की अर्जी दी। जिसे बीएसए ने देरी से दाखिल करने के कारण निरस्त कर दिया। कहा कि अर्जी पांच साल बाद देरी से दाखिल की गई है। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि मृतक आश्रित सेवा नियमावली 1974 में 2014 में नियम पांच में संशोधन कर व्यवस्था दी गई है कि आर्थिक स्थिति पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर अर्जी देने में देरी माफ़ की जा सकती है। याची का कहना था कि मजदूरी कर वह जीवनयापन करते हुए अपनी बीमार मां की देखभाल कर रहा है, बीएसए ने इस पर विचार नहीं किया। कोर्ट ने शिव कुमार दुबे केस के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे मामले में उचित एवं सौम्यतापूर्ण ढंग से विचार कर निर्णय लिया जाना चाहिए। कोर्ट के उस फैसले के प्रकाश में निर्णय लेने का आदेश दिया है।

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