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इलेक्ट्रिक बसें चलाने की मांग को लेकर याचिका, राज्य सरकार व प्रदूषण बोर्ड से जवाब तलब

sudhanshu
Published on: 3 July 2018 8:15 PM IST
इलेक्ट्रिक बसें चलाने की मांग को लेकर याचिका, राज्य सरकार व प्रदूषण बोर्ड से जवाब तलब
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इलाहाबाद: उच्च न्यायालय ने प्रदेश में इलेक्ट्रिक ट्रान्सपोर्ट बस चलाने की स्कीम लागू करने की नेशनल ऑटो फ्यूल पॉलिसी 2003 के तहत बनी फेम स्कीम लागू करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर मंगलवार को राज्य सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है। इस स्कीम के तहत बड़े शहरों व अन्तरराष्ट्रीय मार्गों पर इलेक्ट्रिक बसें चलाने तथा 3 से 5 साल में पेट्रोल व डीजल के वाहनों को खत्म कर इलेक्ट्रिक या वैकल्पिक ईंधन के वाहनों को ही अनुमति देने की व्यवस्था दी गयी है।

जौनपुर के डा. के.के मिश्र की याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डी.बी भोंसले तथा न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा की खण्डपीठ ने की। कोर्ट ने राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुधांशु श्रीवास्तव व केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता शम्भू चोपड़ा से इस संबंध में उठाये गये कदमों की जानकारी मांगी है। याची के अधिवक्ता राहुल अग्रवाल का कहना है कि प्रदेश के बड़े शहरों व स्मार्ट सिटी में इलेक्ट्रिक बसें चलायी जाय। पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम लागू किया जाय। धीरे धीरे पेट्रोल डीजल वाहनों को बन्द कर दिया जाय। नगर निगम एरिया में इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित किया जाय। याची का कहना है कि एन.सी.आर में बने ग्रेडेड एक्शन प्लान की तर्ज पर प्रदेश के शहरों में योजना लागू की जाय। याचिका की सुनवाई तीन हफ्ते बाद होगी।

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कोर्ट की अन्‍य खबरें

मकान के ध्वस्तीकरण पर रोक से इंकार, याचिका खारिज

इलाहाबाद: उच्च न्यायालय ने काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी के पक्ष में खरीदे गये भवन के ध्वस्तीकरण पर रोक की मांग को लेकर दाखिल याचिका मंगलवार को खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि विवाद को लेकर अधीनस्थ कोर्ट में विचाराधीन सिविल वाद में 12 जुलाई को अर्जी दाखिल करे। अधीनस्थ कोर्ट से अंतरिम आदेश न मिल पाने पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गयी थी। कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।यह आदेश न्यायमूर्ति एम.सी त्रिपाठी ने कमला देवी की याचिका पर दिया है। राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार सिंह ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने खण्डहर हो चुके भवन को खरीद कर मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को कब्जा दे दिया है। जिसे गिराकर जनसुविधा केन्द्र शौचालय आदि का निर्माण कराये जाने की योजना बनायी गयी है। विश्वनाथ मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए योजना तैयार कर अमल में लायी जा रही है। यह कदम जनहित में उठायेे जा रहे हैं। याची का कहना है कि वह विवादित भवन में बतौर किरायेदार अपना व्यवसाय व जीविकोपार्जन कर रहा है और मकान मालिक ने मकान बेंच दिया है। किरायेदारों के हितों की अनदेखी कर उन्हें बेदखल किया जा रहा है।

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सरकारी वकीलों के नियुक्ति वैधता की चुनौती याचिका खारिज

इलाहाबाद: उच्च न्यायालय ने राज्य विधि अधिकारियों की मनमानी नियुक्ति के खिलाफ याचिका वापस करते हुए मंगलवार को खारिज कर दी है । साथ ही याची को छूट दी है कि वह लखनऊ खण्डपीठ के समक्ष विचाराधीन याचिका में अन्तर्हस्तक्षेपी अर्जी दाखिल कर मुद्दे उठा सकते हैं। लखनऊ पीठ में महेन्द्र सिंह पवार ने याचिका दाखिल कर अयोग्यों को सरकारी वकील नियुक्त करने की वैधता को चुनौती दी है।

यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी भोंसले तथा न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा की खण्डपीठ ने अधिवक्ता सुनीता शर्मा की जनहित याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता विजय चन्द्र श्रीवास्तव ने बहस की। याची का कहना था कि सरकारी वकीलों की नियुक्तियों में एल.आर मैनुअल के उपबन्धों का पालन नहीं किया गया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के बृजेश्वर सिंह चहल केस की गाइड लाइन का खुला उल्लंघन किया गया है। याची का यह भी कहना था कि सरकारी धन का भुगतान करने के कारण राज्य सरकार को अयोग्य व अपने चहेतों की नियुक्ति करने का मनमाना अधिकार नहीं है। याचिका में सरकारी वकीलों की नियुक्ति की अधिसूचनाओं को निरस्त कर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन व मानकों के अनुसार नियुक्ति किये जाने की मांग की गयी थी। सुप्रीम कोेर्ट ने कमेटी गठित कर योग्य वकीलों की नियुक्ति करने के संबंध में दिशा निर्देश जारी किये गये हैं और कार्यरत अधिवक्ताओं को बिना ठोस आधार के मनमाने तौर पर हटा दिया गया है। महिला अधिवक्ताओं की भी अनदेखी की गयी है। कोर्ट ने याची को सभी मुद्दे लखनऊ पीठ में उठानेे की छूट दी है। अधिवक्ता सुनीता शर्मा का कहना है कि वह शीघ्र ही लखनऊ पीठ में अन्तर्हस्तक्षेपी अर्जी दाखिल करेंगी।

दिव्यांग बच्चें के सहारा दे रही एनजीओ को देर से फंड जारी करने पर हाई कोर्ट नाराज

लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने योगी सरकार द्वारा जानकीपुरम स्थित दृष्टि सामाजिक संस्थान सहित प्रदेश के अन्य ऐसे गैर सरकारी संस्थाओं के दिव्यांग बच्चें के कल्याण हेतु सरकारी फंड जारी करने में देरी करने पर सख्त एतराज जताते हुए बाल एवं महिला कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव एवं निदेशक को 5 जुलाई के व्यक्तिगत रूप से तलब किया है। यह आदेश जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय एवं जस्टिस राजन राय की बेंच ने 2008 से विचाराधीन अनूप गुप्ता की ओर से दायर एक रिट याचिका पर मंगलवार को पारित किया। कोर्ट इस याचिका पर दिव्यांग बच्चें के कल्याण हेतु सरकारी नीति एवं क्रियाकलाप का एक तरह से मानीटरिंग कर रही है। कोर्ट ने 24 नवंबर 2017 को प्रमुख सचिव व निदेशक के निर्देश दिया था कि इन संस्थाओं को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में समय से फंड जारी कर दिया ताकि संस्थाओं में शरण पाये दिव्यांग बच्चें को कष्ट न हो। निदेशक ने कोर्ट को ऐसा आश्वासन भी दिया था। बाद में सरकार ने 8 दिसम्बर 2017 को एक शासनादेश भी जारी किया जिसके तहत यह प्रावधान किया गया कि प्रत्येक वर्ष 18 अप्रैल तक फंड जारी कर दिया जायेगा।

जब सुनवाई में मामला मंगलवार को कोर्ट के सामने आया तो दृष्टि सामाजिक संस्थान की पैरवी के लिए कोर्ट की ओर से नियुक्त एमीकस क्यूरी अपूर्व तिवारी ने बताया कि इस वर्ष भी 18 अप्रैल के बजाय 1 जून को फंड जारी किया गया है। इस पर कोर्ट सरकार पर नाराज हो गयी। कोर्ट ने सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश पांडे से कहा कि 18 अप्रैल से 1 जून के बीच संस्थान के बच्चें के कितने कष्टों से गुजरना पड़ा होगा क्या इसका अंदाजा सरकार को है। कोर्ट ने सरकारी तंत्र के ढुलमुल काम काज के तरीके पर तंज कसते हुए प्रमुख सचिव व निदेशक को तलब कर लिया कि वे स्पष्टीकरण दें कि आदेश के बावजूद समय से फंड क्यों नहीं जारी हुआ। जब कोर्ट के संज्ञान में आया कि निदेशक का स्थानांतरण हो गया है, तो बेंच ने कहा कि जो निदेशक 18 अप्रैल से 1 जून के बीच पद पर रहा हो वह अगली तारीख पर उपस्थित होगा।

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