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योगेश प्रवीन जिसने लखनऊ से लखनऊ की मुलाकात और पहचान कराई
इतिहासकार पद्मश्री योगेश प्रवीन का निधन हो गया। वो लखनऊ की अथारिटी थे। लखनऊ को उन्होंने महसूस किया था।
लखनऊ: जाने माने इतिहासकार पद्मश्री योगेश प्रवीन का निधन हो गया सुनकर अवाक रह गया। कुछ देर समझ में ही नहीं आया कि ये क्या हुआ, कब, कैसे... सवाल बेतरतीबी से उमड़ घुमड़ रहे थे। अगर लखनऊ की बात करें तो लखनऊ की अथारिटी थे योगेश प्रवीन। लखनऊ को उन्होंने महसूस किया था। लखनऊ के जर्रे जर्रे से उनकी पहचान दोस्ती और परिचय ऐसा था कि खुद लखनऊ को भी अपने बारे में उनसे ज्यादा कुछ नहीं पता था। लखनऊ को धरोहर और सांस्कृतिक विरासत के रूप में अगर किसी ने जिंदा किया तो वह योगेश प्रवीन थे।
बात 1990 के दशक की है मैं उस समय दैनिक जागरण में जनरल डेस्क देखने के साथ कल्चरल रिपोर्टिंग भी कर रहा था। हमारे संपादक विनोद शुक्ल अखबार को लेकर बहुत ही क्रिएटिव थे। वह प्रयोगवादी संपादक थे और इसके लिए वह किसी भी सीमा तक जाकर रिस्क उठाने में यकीन रखते थे। एक दिन मीटिंग में जब बात चल रही थी कि लखनऊ के खानपान, लखनऊ की इमारतों, लखनऊ के पहनावे पर सीरीज शुरू की जाए तो उन्होंने शहर अपना शहर नाम से चार पेज के परिशिष्ट की इजाजत दे दी।
योगेश प्रवीन की लेखनी का असर
इस कार्य के लिए शेखर त्रिपाठी और राजेश विद्रोही को भी शामिल किया गया। इसके सम्मानित लेखकों में योगेश प्रवीन जी का भी सहयोग लिया गया। योगेश प्रवीन जी उस समय विद्यांत कालेज में अध्यापक थे। तब मेरी योगेश प्रवीन जी से पहली मुलाकात हुई। कई बार मैं उनसे लेख लेने गया तो कई बार वह खुद लेकर आए। उनकी लेखनी का असर देखा रातों रात यह साहित्यिक पन्ना शहर अपना शहर लखनऊ में छा गया।
लखनऊ पर कुछ भी लिखते समय मैं उनसे एक बार बात करने की कोशिश जरूर करता था और वह सहज भाव से बताते चले जाते थे। कई बार वह कहते भी थे कि इसके लिए मेरी ये किताब पढ़ो। पिछले दिनों लक्ष्मण टीले के संबंध में भी बात हुई थी।
तमाम प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में किया लेखन
डॉ. योगेश प्रवीन विद्यांत हिन्दू डिग्री कॉलेज से बतौर प्रवक्ता 2002 में सेवानिवृत्त हुए। लेकिन उनकी लेखनी अविरल चलती रही। पिछले चार दशक से अधिक समय में उन्होंने तमाम प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लेखन किया।
28 अक्टूबर 1938 को जन्मे योगेश प्रवीन जी हिन्दी और संस्कृत में एमए थे और लिटरेचर में डाक्टरेट। यह बात शायद बहुत कम लोगों को पता होगी कि शशि कपूर की मशहूर फिल्म जुनून के लिए योगेश प्रवीन ने गीत लिखे थे। इसके अलावा उमराव जान और जुनून दोनों के लिए ही योगेश प्रवीन का सहयोग लिया गया था।
योगेश प्रवीन को उनकी पुस्तक लखनऊ नामा के लिए नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया। उनकी यह पुस्तक अवध की सौ महत्वपूर्ण इमारतों का इतिहास है। उन्हें उत्तर प्रदेश रत्न, नेशनल टीचर अवार्ड, यश भारती अवार्ड, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।
डॉ. योगेश प्रवीन की लगभग 35 किताबें प्रकाशित हैं। जो अवध की संस्कृति और लखनऊ की सांस्कृतिक विरासत पर आधारित हैं। उनकी किताबें प्रमाण हैं लेखन का, जिसमें रामकथा महाकाव्य ' अपराजिता ' और उर्दू में कृष्ण पर आधारित 'विरह बांसुरी' विशेष हैं।