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Mulayam Singh Yadav: जब नदी में डूबने से बचे मुलायम, फिर कांशीराम को भेजा संसद
लोहियावादी नेता मुलायम सिंह यादव ने हमेशा समाज के हर वर्ग के लोगों को राजनीति में आगे बढ़ाया है, 1991 में बसपा के संस्थापक कांशीराम को संसद भेजा था।
लखनऊ: जिस साइकिल चुनाव निशान की दम पर देश के दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव सूबे के तीन बार मुख्यमंत्री व एक बार देश के रक्षा मंत्री रह चुके हैं, उन्हीं मुलायम सिंह यादव का एक समय वो भी था, जब उनके पास अपनी खुद की साइकिल तक नहीं थी। अपने चुनाव प्रचार के लिये मुलायम सिंह यादव को दूसरों की साइकिल के भरोसे ही रहना पड़ता था। सन 1962 से मुलायम सिंह के साथ रहकर राजनीति का ककहरा सीखने वाले सपा के पूर्व सांसद रामसिंह शाक्य यह बताते हैं कि यह बात उन दिनों की जब मैं बीएससी का छात्र हुआ करता था। तब मुलायम सिंह यादव राजनीति करने के लिये सैफई से बस से आते थे और इटावा में स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रोफेसर जेडी के यहां रुकते थे। ताज्जुब की बात यह भी है कि आज जिस मुलायम सिंह यादव के आगे पीछे कई लग्जिरी कारों का काफिला हर समय तैयार रहता है। उसी मुलायम सिंह का एक समय वो भी था, जब विधायक होने के बाद भी अधिकारियों से लोगों की सिफारिश करने के लिये उन्हें रिक्शे से जाना पड़ता था।
संघर्ष की कोख से पैदा हुए नेता मुलायम सिंह यादव
यह 1962 का समय था, जब मुलायम सिंह यादव संयुक्त सोश्लिष्ट पार्टी के टिकट पर इटावा जसवन्तनगर विधान सभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे। तब पार्टी के क्षेत्रीय मंत्री होने के नाते पूर्व सांसद राम सिंह शाक्य हमेशा मुलायम सिंह के साथ ही रहते थे। तब 1962 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव राम सिंह शाक्य के साथ सायकिल पर बैठ कर अपना चुनाव प्रचार करने जाते थे। सन 1962 से 1980 तक मुलायम सिंह यादव ने ज्यदातर सायकिल से व कभी कभार मोटरसाइकिल से भी चुनाव प्रचार किया है। राम सिंह शाक्य बताते हैं कि सन 1962 से लेकर सन 1980 तक हम लोगों के पास इतना बजट भी नहीं रहता था कि हम लोग चुनाव प्रचार के लिये एक मोटरसाइकिल भी खरीद सकें, कार तो बहुत दूर की बात है। सुबह मुलायम सिंह यादव प्रतिदिन अपने गांव सैफई से पहले इटावा, फिर बस के द्वारा इटावा से बसरेहर आते थे। फिर बसरेहर से गांव-गांव सायकिल से भृमण व जनसम्पर्क किया करते थे। शाम को फिर वापस बस से अपने गांव सैफई जाते थे। रामसिंह शाक्य ने बताया कि मुलायम सिंह यादव रिक्शे वालों से विशेष प्रेम रखते थे। उन्होंने बताया कि सहकारिता मंत्री बनने के बाद एक बार वे फिर विधायक बने थे। तब वे लोगों की अधिकारियों से सिफारिश करने के लिये रिक्शे से ही जाते थे।
मुलायम सिंह ने आम लोगों को बड़ा नेता बनाया
मुलायम सिंह ने अपने बचपन के सखा राम सिंह शाक्य को 7वीं, 9वीं और 11वीं लोकसभा में इटावा से सांसद बना कर भेजा था। जबकि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें वर्ष 1991 व 1992 में इटावा का जिला पंचायत अध्यक्ष भी बनाया था। जब मुलायम सिंह यादव सन 1977 में सूबे के सहकारिता मंत्री बने थे, तब उन्होंने राम सिंह शाक्य को यूपी वेयर हाउस फेडरेशन का डायरेक्टर भी बनाया था। इसके अतिरिक्त अपने मित्र धनीराम शाक्य के पुत्र रघुराज शाक्य को 1991 में जसवन्तनगर का युवजनसभा का अध्यक्ष बनाया। फिर 1999 व 2009 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर दो बार इटावा लोकसभा सीट से सांसद भी बनवाया।
देश के दिग्गज लोहियावादी नेता मुलायम सिंह यादव ने हमेशा समाज के हर वर्ग के लोगों को राजनीति में आगे बढ़ाया है। इटावा के महेवा ब्लॉक के एक साधारण किसान के परिवार में जन्म लेने वाले प्रेम दास कठेरिया, एक बार मुलायम सिंह को इलाके के एक गांव तक पहुंचाने के लिये बनियान व तहमद पहनकर उनकी कार में बैठे गए थे। तब से आज तक प्रेमदास कठेरिया मुलायम सिंह यादव की समाजवादी कार से कभी नहीं उतरे। सबसे पहले मुलायम सिंह यादव ने प्रेमदास कठेरिया को 1995 में महेवा ब्लॉक प्रमुख बनवाया था। उसके बाद वर्ष 2000 में इटावा जिला पंचायत अध्यक्ष व 2009 में इटावा का सांसद भी बनाया। कभी मुलायम के धुर विरोधी रहे इटावा के तत्कालीन वरिष्ठ कांग्रेसी नेता स्वर्गीय बाबू सत्य नरायन दुबे, जब 1994 में सपा में आये तब मुलायम सिंह यादव ने सन 1995 में उन्हें इटावा विधानसभा सीट से सपा का प्रत्याशी बनाकर चुनाव में उतार दिया। हालंकि बाबू सत्य नारायण दुबे सपा के टिकट पर यह चुनाव हार गए, लेकिन मुलायम सिंह यादव उनका खुद छोटे के नाते बहुत सम्मान करते थे। उन्हें मुलायम सिंह ने दिलासा दी कि वे जल्द ही उन्हें कहीं अच्छी जगह एडजस्ट करेंगे।
जब 2004 में सूबे में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तो उन्होंने बाबू सत्यनारायण दुबे को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए यूपी इलेक्ट्रोनिक निगम का चेयरमैन बना दिया। इसके अतिरिक्त मुलायम सिंह यादव ने सूबे में काबिज अपनी विभिन्न सरकारों में औरैया के कमलेश पाठक, इटावा के उमेश दीक्षित, शहर में दोन पत्तल के दुकानदार राम प्रसाद सविता, कभी शहर की शीला टाकीज में गेटकीपरी करने वाले दयाराम प्रजापति, स्वर्गीय रामा धीन शर्मा समेत कइयों को सूबे के अलग अलग निगमों का चेयरमैन बनाकर उनके राजनीतिक कैरियर को नई दिशा प्रदान की है। सूबे के आगरा, मैनपुरी, कन्नौज, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया फिरोजाबाद, एटा, अगर आज समाजवादी गढ़ में रूप में प्रख्यात है तो इसके पोछे का बस यही एक कारण है कि इन क्षेत्रों में मुलायम सिंह यादव ने अपने संघर्ष की एक मजबूत इबारत लिखी है। मुलायम सिंह यादव ने इन इलाकों में राह चलते लोगों को नेता बनाया है। अगर इन सभी के नामों की हम चर्चा करने लगे तो उनकी इतनी लंबी फ़ेहरिश्त है कि उसे स्टोरी में समाहित करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
जब मिले मुलायम सिंह और कांशीराम
इटावा में मुलायम सिंह यादव के धुर विरोधी,पूर्व सांसद व बसपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष कांशीराम के परम मित्र मिशनरी बसपा नेता खादिम अब्बास बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव अपने राजनैतिक विरोधियों से भी काफी स्नेह रखते हैं। सन 1977 के चुनाव के बाद मुलायम सिंह यादव, चौधरी चरण सिंह के साथ लोकदल में चले गए थे। इस कारण 1980 के चुनाव में कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया, पं देवीदयाल दुबे ने जसवन्तनगर के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह का खुला विरोध किया था और उन्हें चुनाव भी हरवा दिया था। उसके बावजूद भी मुलायम सिंह यादव, कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया व पं देवीदयाल दुबे को वो ही सम्मान देते थे जो वे उनके दल में रहने के दौरान देते थे। लगातार मुलायम सिंह यादव के द्वारा दिये जा रहे सम्मान की वजह से ही इटावा में दैनिक देशधर्म के संस्थापक पं देवी दयाल दुबे सन 1990 के बाद मुलायम सिंह यादव के चुनावी मंचों पर दिखने लगे थे।
बसपा नेता खादिम बताते हैं कि अपने धुर राजनैतिक विरोधी कांशीराम को इटावा लोकसभा सीट से पहली बार सांसद बनवाने में मुलायम सिंह यादव ने विशेष सहयोग किया था। सन 1991 के उपचुनाव में बसपा मिशनरी कार्यकर्ताओं के बेहद दवाब व मुलायम सिंह का अपने प्रति स्नेह देखते हुए देश के दिग्गज दलित नेता व बसपा के संस्थापक कांशीराम ने इटावा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और इस चुनाव की पहली चुनावी सभा भी जसवन्तनगर के तमैरी गांव मे सम्पन्न हुई थी। जैसे ही एक मंच पर आम जनता को मुलायम व कांशीराम की जोड़ी दिखाई दी वैसे ही भीड़ से नारा निकला, 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम' यह वो समय था जब राम मंदिर का मुद्दा बेहद गर्म था। इटावा लोकसभा सीट से जीत हासिल कर कांशीराम पहली बार संसद में पहुंचे थे।
सन 1974 के चुनाव में जसवन्तनगर विधानसभा सीट से कांग्रेस से चौधरी विशम्भर सिंह मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे। यह चुनाव चौधरी विशम्भर सिंह यादव व मुलायम सिंह यादव के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। इस समय स्व बाबू सत्यनारायण दुबे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार थे। चौधरी विशम्भर सिंह के पक्ष में वोट मांगने के लिये बाबू सत्यनरायन दुबे मुलायम सिंह यादव के गांव में पहुंच गये। जब यह बात मुलायम सिंह यादव को पता चली तो उन्होंने खुद जनता पार्टी का प्रत्याशी रहते हुए भी अपने गांव में सत्यनरायण दूबे का स्वागत किया। फिर उन्हें अपने घर से भोजन करवाने के बाद जाने दिया। मुलायम सिंह यादव के अपने प्रति जारी इसी स्नेह के कारण सत्यनारायण दुबे बाद में मुलायम सिंह यादव के साथ उनकी समाजवादी पार्टी में आ गए थे।
एक बार नदी में डूबते-डूबते बचे थे मुलायम
यह बात सन 1965 के आसपास की है, मुलायम सिंह यादव अपने साथियों के साथ सायकिल से गांव-गांव भ्रमण कर रहे थे और अपने दल के सदस्य बनाने के अभियान में लगे थे। इसी भ्रमण के दौरान बसरेहर इलाके में रास्ते मे सेंगर नदी मिली। इस नदी को तैर कर ही पर करना था। जब मुलायम सिंह ने इस नदी को पार करने के लिये पानी मे प्रवेश किया तो मुलायम सिंह यादव की छोटी कद काठी के होने के कारण वे नदी में डूबने से लगे। तब अन्य साथियों ने उन्हें हाथ पकड़कर नदी से निकाला। फिर वहीं रुक कर मुलायम सिंह यादव ने भीग चुकी अपनी धोती सुखाई तब आगे बढे।
भीड़ में अपने कार्यकर्ताओं को पहचान लेते थे नेताजी
मुलायम सिंह यादव को जानने वाले लोग उनकी यादाश्त के बेहद कायल हैं। उनसे जुड़े नेता बताते हैं कि आज भी मुलायम सिंह यादव अपने दल से जुड़े हर छोटे से छोटे कार्यकर्ता को नाम से जानते हैं। उन्हें यह तक याद रहता है कि कौन सा कार्यकर्ता कब कहां और कितने बजे उन्हें मिला था? उनकी इसी आदत की वजह से कार्यकर्ता उन्हें बेहद पसंद करते हैं। पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया का कहना है कि नेता जी अपने प्रत्येक कार्यकर्ता की समस्या को अपनी समस्या मानते हैं। यह बात उनके विरोधी भी स्वीकार करते हैं कि मुलायम सिंह यादव अपने कार्यकर्ताओं की मदद के लिये किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। उनके लिये कार्यकताओं का सम्मान सबसे अव्वल है। एक बार मुलायम सिंह यादव अपने एक सामान्य से कार्यकर्ता सुरेंद्र बहादुर सिंह भदौरिया से मिलने उनके गांव पहुंचे थे, तब मुलायम सूबे के सीएम थे। उनके साथ उनकी सुरक्षा में ब्लैक कैट कमांडो भी थे। जैसे ही सुरेन्द्र बहादुर सिंह, मुलायम सिंह यादव से गले मिलने के लिये आगे बढे तो कमांडो ने उनके माथे पर प्रहार कर दिया। मुलायम सिंह यादव ने यह दृश्य देखा तो उन्होंने सुरेन्द्र बहादुर सिंह को गले से लगा लिया उनसे माफी भी मांगी।
इनसे आज भी चिढ़ते हैं मुलायम सिंह
मुलायम सिंह यादव के जानने वाले लोग बताते हैं कि नेता जी को तम्बाकू खाने वाले, शराबियों से बेहद चिढ़ रहती है। अगर तम्बाकू मुंह में दबाकर कोई उनके सामने पहुंच गया तो फिर उसे मुलायम सिंह यादव के गुस्से का सामना आज भी करना पड़ता है। इसी तरह से मुलायम सिंह को यदि यह पता चला जाता है कि उनका फलां नेता व कार्यकर्ता शराब पीने का आदी है तो फिर वे उसे निगलेट करने लगते हैं। मुलायम सिंह यादव की इसी सख़्ती के चकते ही उनके परिवार का कोई भी शख्स आज भी मसाला सिगरेट के सेवन करने से काफी दूर रहता है।