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आवारा पशुओं के कारण तबाह हो रही फसल, किसानों को नहीं सूझ रहा कोई उपाय

raghvendra
Published on: 18 Jan 2019 1:00 PM IST
आवारा पशुओं के कारण तबाह हो रही फसल, किसानों को नहीं सूझ रहा कोई उपाय
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नीलमणि लाल

लखनऊ: छुट्टा और आवारा पशु बहुत समय से शहरी लोगों के लिए मुसीबत का सबब बने हुए हैं। इन दिनों इस समस्या ने गांवों में भी पैर पसार लिये हैं। छुट्टा जानवरों की समस्या किसी एक इलाके की नहीं है। जिन भी राज्य सरकारों ने अवैध स्लाटर हाउसों पर ताले डालने के लिए कदम उठाये, वहां आवारा और छुट्टा जानवरों की समस्या फसलों की तबाही का सबब बन गई। इस समस्या से निजात पाने के लिए पंजाब के किसानों ने कंटीले तारों की फेंसिंग से अपने खेतों की घेराबंदी इस तरह की कि वहां कंटीले तारों के दाम बेहतहाशा बढ़ गये। पंजाब में किसानों के पास बड़ी जोत है। पर उत्तर प्रदेश में इतनी छोटी जोत वाले किसान हैं कि उनके लिए कंटीले तार लगाना भी बेहद खर्चीला काम होगा। नतीजतन, उनके सामने खेतों में खड़ी फसल की तबाही देखने के सिवाय कोई रास्ता नहीं है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने इन जानवरों के रख-रखाव के लिए सेस लगाया है। गौशालाएं बनाने के आदेश दिये हैं। पहले से ही नील गाय के आतंक से परेशान किसानों को समझ नहीं आ रहा है कि इस समस्या से कैसे पार पाया जाए। रबी का महत्वपूर्ण सीजन है और खेती बर्बाद हो रही है।

उत्तर प्रदेश में किसान जानवरों को हांक कर हाईवे के फ्लाईओवर के नीचे, स्कूल, सरकारी दफ्तर और अस्पतालों के परिसरों में धकेल रहे हैं। उन्हें बस किसी तरह इन छुट्टा जानवरों से छुटकारा पाना है। किसान रात भर जगकर और दिनभर लाठी भांजकर गायों-सांड़ों को भगाने में लगे हुए हैं। कांजी हाउस तो ज्यादातर जगहों पर खत्म हो चुके हैं। गौशालाओं में न तो इंतजाम हैं और न पशु रखने की जगह। वहां भी पशुओं की असमय मौत हो रही है।

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गोरखपुर से लेकर मेरठ तक हर जगह छुट्टा पशुओं से बचाव के लिए खेतों में बाड़बंदी बढ़ी है और कंटीले तार खूब बिक रहे हैं। कई जगह तो सप्लाई ही पूरी नहीं हो पा रही। हार्डवेयर की दुकानों में सिर्फ कंटीले तार की डिमांड है। इन तारों का भी एक दुखद पहलू यह है कि इनकी तेज धार से तमाम पशु घायल होकर मारे भी जा रहे हैं। फसल का यह हाल है कि मेरठ में ही करीब पांच लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल बर्बाद हो गई है। गोंडा में तो इस बार रबी के उत्पादन में एक चौथाई तक गिरावट आने की आशंका जताई जा रही है। समस्या का समाधान न होता देख अब किसानों का धैर्य टूटने लगा है और गुस्सा बढ़ता जा रहा है।

किसानों की आफत

तेज प्रताप सिंह

गोंडा: छुट्टा घूम रहे मवेशी किसानों के साथ ही शहर के लोगों के लिए भी मुसीबत बन गए हैं। इसके चलते इस बार रबी के उत्पादन में एक चौथाई तक गिरावट आने की संभावना जताई जा रही है। खाद-बीज पानी की समस्या से जूझते किसान कर्ज लेकर जो फसलें बोते हैं उन्हें छुट्टा जानवर तबाह कर देते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में छुट्टा जानवर किसानों के दुश्मन बने हैं तो शहर सीमा से सटे सैकड़ों गांवों में आवारा घूमने वाले दुधारू छुट्टा पशुओं के झुंड रातों रात हरी भरी फसल चौपट कर देते हैं लोगों का मानना है कि बूचडख़ानों पर पाबंदी के बाद जिले में आवारा पशुओं की संख्या में काफी वृद्धि हो गई है।

मुसीबत का सबब बने छुट्टा पशु

नगर के विभिन्न चौराहों और तिराहों के साथ ही गलियों में बेखौफ टहल रहे आवारा मवेशियों को देख लोग रास्ता बदलकर चल रहे हैं। स्कूल व बाजार आते-जाते समय बच्चों व महिलाओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यदि थोड़ी सी चूक हुई तो वे किसको सींग मार देंगे, कुछ नहीं कहा नहीं जा सकता है। ये मवेशी अब तक कई लोगों को घायल कर चुके हैं। कई लोगों की तो मौत भी हो चुकी है। नगर के समाजसेवी पंकज सिन्हा बताते हैं कि चौक बाजार, फैजाबाद रोड, उतरौला, लखनऊ रोड हर तरफ छुट्टा जानवरों की बहुतायत है। अब तक इनके हमले और लड़ाई में दर्जनों लोग घायल भी हो चुके हैं।

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किसानों पर दोहरी मार

किसानों की शिकायत है कि एक ओर महंगाई की मार है तो कहीं बाढ़ की मार तो कहीं खाद, बीज और सिंचाई की किल्लत। वहीं दूसरी ओर तैयार फसल को छुट्टा जानवर और जंगली नील गायें बर्बाद कर रही हैं। प्रशासन की ओर से इस विकट समस्या की अनदेखी की जा रही है, जिससे किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। शहर से सटे ग्राम पथवलिया, परेड सरकार, छावनी सरकार, जानकी नगर, बूढ़ा देवर, गिर्द गोंडा, सोनी हरलाल, बडग़ांव, इमरती विसेन, बिमौर, मिश्रौलिया, रुद्रपुर विसेन, केशवपुर पहड़वा, भदुआ तरहर, पूरे उदई सहित सैकड़ों ग्रामों में लगी फसलों को प्रतिदिन छुट्टा जानवर नष्ट कर रहे हैं।

रात-दिन रखवाली करते हैं किसान

अपनी फसलों को बचाने के लिए किसान दिन-रात खेतों की रखवाली करते हैं। इसके बावजूद जरा सी चूक होने पर सारी फसल आवारा पशु नष्ट कर देते हैं। इन पशुओं के आतंक से अधिकतर किसानों का खेती से मोह भंग हो रहा है। शहर से सटे ग्राम केशवपुर पहड़वा के किसान राम रमेश सिंह ने बताया कि रात में एक साथ पचास साठ आवारा जानवरों का झुंड निकलता है। वह जिस तरफ से भी गुजरता है फसलों को बर्बाद करता निकलता है।

अहिरनपुरवा के स्वामी यादव और भदुआ तरहर के बखरवा निवासी किसान और पत्रकार यशोदा नंदन त्रिपाठी बताते हैं कि रात-दिन इन अवारा पशुओं से फसलों की रखवाली खेती के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। पथवलिया के निबिहा निवासी सुरेन्द्र कुमार ओझा का कहना है कि छुट्टा पशुओं ने किसानों का जीना हराम कर दिया है। पूरे उदई के मुक्तियार पांडेय और सरदवन पुरवा के उदय राज सिंह कहते हैं कि एक ओर जहां आवारा पशु सरदर्द बने हुए हैं वहीं दूसरी तरफ नीलगायों का झुंड खेतों में खड़ी फसल को तबाह कर रहा है। पशु पालक दुधारू पशुओं के दूध निकालने के बाद बछड़ों संग उन्हें आवारा छोड़ देते हैं।

कंटीले तार से लगा रहे बाड़

किसान फसल को छुट्टा जानवरों से बचाने के लिए हजारों, लाखों खर्च कर कंटीले तार लगवा रहे हैं जिसमें फंसकर अब तक दर्जनों गौवंश घायल हो चुके हैं। कई किसानों ने तो आरी वाला तार लगा रखा है जिनसे घायल होकर गौवंश मर जाते हैं। वही दूसरी तरफ कुछ किसानों ने बेल के कांटों और बांस से अपनी फसल को बचाने का प्रबंध कर रखा है, लेकिन कुछ छुट्टा पशु बाड़े को तोडक़र फसल नष्ट कर देते हैं। लोहिया ट्रेडर्स के मालिक हरिहर प्रसाद बताते हैं कि कंटीले तार की बिक्री में 60 फीसदी इजाफा हुआ है।

नगर पालिका ने खड़े किए हाथ

नगर पालिका परिषद ने छुट्टा जानवरों को पकडऩे के मामले में हाथ खड़े कर दिए हैं। शहर में बीस साल पहले तक तीन बड़े कांजी हाउस हुआ करते थे। इनमें बडग़ांव का कांजी हाउस रेलवे ने ले लिया और लखनऊ रोड का पालिका ने बंद कर दिया। देहात कोतवाली का कांजी हाउस अभी कागजों में संचालित है।

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इंतजाम न होने से इसमें पशु रखना संभव नहीं है। पालिका द्वारा पशुओं को पकडऩे का कोई इंतजाम नहीं है। नपाप के अधिशासी अधिकारी विकास सेन का कहना है कि सरकार के आदेशानुसार कांजी हाउस की व्यवस्था की जाएगी। डेढ़ दशक पहले तक जिले भर में जिला पंचायत के अधीन सैकड़ों कांजी हाउस संचालित थे लेकिन जिला पंचायत द्वारा नए पाउंडकीपरों की भर्ती नहीं की गयी। नतीजन सभी कांजी हाउस बंद हो गए।

गौशालाओं की स्थिति दयनीय

जिले में गौशालाओं की स्थिति भी अत्यंत दयनीय है। मनकापुर तहसील क्षेत्र के सिसवा गांव में संत विनोबा भावे की प्रेरणा से वर्ष 1992 में करुणा गौशाला की स्थापना हुई थी। गौशाला समिति के अध्यक्ष विद्या प्रसाद शुक्ल बताते हैं कि तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश से कोलकाता जा रही एक ट्रेन की 62 बोगी में 720 गोवंश होने की सूचना पर सैकड़ों ग्रामीणों ने गोंडा रेलवे स्टेशन पर इन पशुओं को उतार लिया। बाद में पुलिस ने 600 गोवंश बरामद किया। इनके पालन के लिए सिसवा निवासी आज्ञाराम आगे आए और अपने गांव में ढाई एकड़ भूमि पर करुणा गोशाला की स्थापना की।

तस्करों के चंगुल से मुक्त कराई गई गायों को वहीं रखा गया। इस गौशाला के संचालन में व्यापारी, शिक्षक और समाजसेवी भरपूर सहयोग करते हैं। गौशाला में 70 गोवंश रखने की क्षमता है। जबकि तरबगंज तहसील क्षेत्र के नवाबगंज ब्लाक के पटपरगंज माझा में वर्ष 1835 में स्थापित सरयू गौशाला छह एकड़ में बनी है जहां 100 गोवंश रखने की क्षमता है। सरकारी सहयोग के अभाव में इसका संचालन बमुश्किल हो रहा है। संचालक राम बहादुर सिंह बताते हैं कि पहले यहां 300 गोवंश रखने की क्षमता थी, लेकिन बाढ़ से कई कमरे जमींदोज हो गए। उन्होंने बताया कि गायों का दूध बेचकर भूसी चोकर आदि की व्यवस्था की जाती है। कुछ क्षेत्रीय नागरिक भूसा उपलब्ध करा देते हैं।

केन्द्र निर्माण की शुरुआत में जिला अव्वल

गोंडा प्रदेश का पहला जनपद बना है जहां पर सबसे पहले गौ आश्रय केन्द्र के निर्माण की आधारशिला रखी गई है। विकासखंड मुजेहना के ग्राम पंचायत रूद्रगढ़ नौसी में चारागाह की 110 बीघे जमीन चिन्हांकित की गई, जिसमें 60 बीघे जमीन पर गौ आश्रय केन्द्र तथा 50 बीघे जमीन पर पशुओं के लिए हरा चारा पैदा किया जाएगा।

विकासखंडों में बनेंगे गौ आश्रय केन्द्र

जिलाधिकारी प्रभांशु कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि छुट्टा जानवरों की समस्या से किसानों को निजात दिलाने के लिए प्रथम चरण में जिले के सभी विकासखंडों पर एक-एक गौ आश्रय केन्द्र बनेंगे।

जहां देखिए वहां छुट्टा जानवर

आसिफ अली

शाहजहांपुर: गांवों, हाईवे और शहर की सङक़ों का यह हाल है कि हर जगह गाय, बैल और सांड़ के झुंड नजर आते हैं। इन आवारा पशुओं के कारण इन दिनों एक्सीडेंट भी बढ़ गए हैं। किसानों का कहना है कि भाजपा की सरकार आने से पूर्व गाय, बैल और सांड़ की समस्या नहीं थी। जब से भाजपा की सरकार आई है तबसे गाय को एक डंडा भी मारना जुर्म हो गया है। छुट्टा और जंगली मवेशियों के झुंड आते हैं और किसानों के सामने उनकी फसल को उजाड़ कर चले जाते हैं। अब किसानों ने छुट्टा मवेशियों से अपने खेतों को बचाने के लिए कंटीले तारों का सहारा लेना शुरू कर दिया है। धारदार ब्लेड वाले तार से पूरे खेत की बाड़बंदी की जा रही हैं। इससे किसानों को कुछ राहत जरूर मिली है। इसके अलावा रात में किसान अपने परिवारवालों के साथ खेतों की रखवाली लाठी-डंडे लेकर कर रहे हैं।

तहसील पुवाया के गंंगसरा गांव के रहने वाले किसान बलजीत सिंह ने दो टूक कहा कि जब से भाजपा सरकार बनी है तब से कुछ ज्यादा ही मवेशी हमारी तैयार फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। इस सरकार से पहले मवेशियों से इतना नुकसान नहीं होता था। अब तो छुट्टा पशुओं की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। किसानों की एक आफत यह भी है कि उसे अपनी फसल बचाने के लिए ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ रहा है। किसान बलजीत ने कहा कि उनका एक एकड़ का खेत है जिस पर फसल तैयार हो रही है। इस खेत को छुट्टा मवेशियों से बचाने के लिए 40 किलो कंटीले तारों से कवर किया गया है। इस तार की कीमत 80 रुपए प्रति किलो है। इतना पैसा बेवजह खर्च हो रहा है। बलजीत कहते हैं कि जितने पैसे हमने छुट्टा मवेशियों से बचाने में खर्च किया है उससे हम 6 महीने तक परिवार का पेट पाल सकते हैं।

पुवायां कस्बे के रहने वाले किसान राकेश जाटव का कहना है कि छुट्टा मवेशी से खेतों की बर्बादी देखने को किसान मजबूर है। सबसे ज्यादा दिक्कत गाय, बैल और सांड़ से हो रही है। अब मवेशियों ने भी खेत को बर्बाद करने का तरीका बदल दिया है। छुट्टा मवेशी को भगाने की कोशिश करें तो वह हमलावर हो जाते हैं। इसलिए अब खेत को बचाने के लिए कंटीले तार का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। सरकार किसानों के हित की बात करती है लेकिन कैसे किसानों का विकास हो पाएगा जब एक जानवर को मारने पर दंगे हो जाते हैं जबकि गाय, बैल या सांड़ किसी इन्सान को भले ही मार दे।

जलालाबाद तहसील के पुरैना गांव के किसानों ने भी अपने खेतो को कंटीले तारों से कवर किया है। किसान रामप्रसाद का कहना है कि भाजपा सरकार से पहले छुट्टा मवेशी की कोई दिक्कत नहीं थी। पहले कभी कभार छुट्टा मवेशी खेतों मे आ जाते थे लेकिन अब तो सडक़ तक पर छुट्टा मवेशी कब्जा किए हुए हंै। इससे एक्सीडेंट भी बढ़ गए हैं। अब तो गाय की जान की कीमत है और इन्सान की कीमत कम हो गई है।

गुनारा गांव के किसान मोहर्रम अली ने बताया कि उन्होंने खेतों के चारों ओर कंटीले तारों का जाल बिछाया हुआ है। तार लगने के बाद फसल बर्बाद होने से बच जाती है लेकिन तार इतने धारदार हैं कि इसमें अगर कोई जानवर फंस जाए तो वह गंभीर घायल हो जाता है और उसकी मौत तक हो जाती है। इस सरकार में यह हाल हो गया है कि छुट्टा मवेशी को मारकर भगाने में भी डर लगता है। आखिर दो साल में इतने छुट्टा मवेशी आ कहां से गए?

तिलहर चौक कोतवाली के ग्राम मोज्जमपुर के विवेक अवस्थी का भी कहना है कि छुट्टा मवेशियों की तादाद योगी सरकार में ज्यादा हो गई है। अगर सरकार को गाय की इतनी ही फिक्र है तो क्यों नहीं उनके लिए कोई इंतजाम करती है। अगर सरकार छुट्टा मवेशियों को पकड़ कर गौशाला भेजने के आदेश दे तो ये दिक्कत खत्म हो सकती है।

डीएम का कहना है कि जिले में तीन स्थल चिन्हित कर उन्हें गौसंरक्षा केंद्रों में बदलने के आदेश दिए गए हैं। साथ ही जिले में जितनी भी सरकारी गौशाला और प्राइवेट गौशाला चल रही है उनमें इन गौवंशों को शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है। सिंचाई, पशुपालन, मत्स्य विभाग समेत कई विभागों की जमीनों कांजी हाउस बनवाया जाएगा। गांव में समितियां बना कर गौशाला निर्माण के लिए प्रेरित करने का भी कार्य किया जा रहा है।

कंटीले तार की बिक्री बढ़ी

शहर के बहादुरगंज बाजार स्थित विकास अग्रवाल की दुकान पर कंटीले तार की बिक्री काफी बढ़ गई है। दुकानदार का कहना है कि अब तो किसान सिर्फ कंटीले तार की ही मांग करता है। खेतों के आसपास लगाने के लिए तार की कई वैरायटी आती है। पहले तो इस तार को कोई पूछता नहीं था लेकिन दो साल से किसान इस तार को ज्यादा खरीद रहा है। इसलिए तार की कीमत बढ़ गई है। डिमांड इतनी ज्यादा है कि सप्लाई कर पाना मुश्किल हो रहा है।

शहरियों की भी आफत

शहरवासियों की बात करें तो वह भी छुट्टा पशुओं के आंतक में हैं। लोगों का कहना है कि अब तो अन्य वाहनों ने ज्यादा डर आवारा घूमते पशुओं से लगता है। बीच सडक़ पर गाय-सांड़ के झुंड बैठे रहते हैं। आवारा पशु कभी कभी अचनाक इधर उधर भागने भी लगते हैं जिससे कार-बाइक का एक्सीडेंट हो जाता है।

बदहाल गौशाला

खटार थाना क्षेत्र के सिमरा विरान गांव में सरकारी गौशाला है जहां करीब 117 गाय और बछड़े हैं। दस दिन के अंदर चार गायों की मौत हो चुकी है। ग्रामीणों का कहना है कि गौशाला में एक डाक्टर की तैनाती है जो कभी कभार आता है। बीमार गायों का इलाज भी सही ढंग से नहीं हो पाता है। गौशाला में गायों के लिए न तो भूसा आता है और न ही दाना। यहां पर्याप्त टीन शेड भी नहीं हैं जिस कारण ज्यादातर गायें खुले में रहती है। सर्दी में यह एक बड़ी आफत है। दूसरी ओर गौशाला में तैनात डॉ. विवेक शुक्ला का कहना है कि जो गायें मरी हैं वह बूढ़ी व कमजोर थीं। उनका दावा है कि गायों का रखरखाव सही है, खाने पीने की कमी नहीं है। गायों का नियमित चेकअप किया जाता है।

स्कूल में बंद किए पशु

दो जनवरी की रात हुआ थाना जलालाबाद के नगरिया बुजुर्ग में गांववालों ने आजिज आकर सरकारी स्कूल में आवारा पशुओं को बंद कर दिया गया। अगली सुबह जब बच्चे स्कूल पहुंचे तो वहां पशुों के झुंड को देख इसकी सूचना प्रिंसिपल को दी। उसके बाद पुलिस ने जानवरों को बाहर निकाला और 6 नामजद और 22 अज्ञात के खिलाफ गंभीर धाराओं मे मुकदमा दर्ज कर लिया। मुकदमा दर्ज होने के बाद ग्रामीणों में हडक़ंप मचा हुआ है। एसडीएम विजय शर्मा का कहना है कि सरकार की छवि धूमिल करने के लिए आवारा पशुओं को स्कूल में बंद किया गया था। उनका दावा है कि गांव में आवारा पशुओं की कोई समस्या नहीं है।

जानवरों का निवाला बन रही फसल

असगर नकी

अमेठी: गोवंश रक्षा के नाम पर जो भी हो रहा है उससे किसानों की कमर टूट गई है। सरकार के पशु प्रेम में किसानों के आंखों के सामने उनकी कई कई बीघे की फसल जानवरों के मुंह का निवाला बनती रहीं पर उन्होंने उफ तक नहीं की। 2019 का चुनावी खतरा मंडराया तो सरकार को सुधि आई और अब छुट्टा पशुओं की धर पकड़ का आपरेशन चलवाया जा रहा है। सरकार की इस देरी और अनदेखी से किसानों का करोड़ों से ज़्यादा का नुकसान हो चुका है। किसानों का कितना नुकसान हुआ है इसका कोई आंकड़ा जा जानकारी प्रशासनिक अमले के पास नहीं है।

राहुल और स्मृति तक से लगा चुके हैं गुहार

अमेठी में जानवरों के कारण बड़े पैमाने पर किसानों की फसल बर्बाद हुई है। सांसद राहुल गांधी आखिरी बार यहां सितम्बर में आए थे। उन्होंने गांव-गांव रुककर खेती-किसानी का हाल जाना था। ज्यादातर किसानों ने उनसे विनती की थी कि छुट्टा जानवरों का कुछ बंदोबस्त कराएं क्योंकि इनसे फसल का भारी नुकसान हो रहा है। ये शिकायत केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी तक से की जा चुकी है। स्मृति ईरानी ने किसानों को मदद का आश्वासन भी दिया था।

किसानों का दर्द

अमेठी तहसील के किसान सतीश बरनवाल ने बताया कि ‘जब से सूबे में नई सरकार आई है खेती तबाह हो गई। जानवरों ने खेतों में इस तरह आफत की कि एक दिन में कई बीघे फसल चर गए। अगर लाठी और डंडे उठाओ तो रक्षक सामने आ जाते हैं।’

कुछ ऐसा ही दर्द जामों के जितेंद्र का भी है। उन्होंने बताया कि उनकी दस बीघे की खेती है। फसल से एक लाख रुपए बचना था। फसल कटती उसके पहले ही इन छुट्टा जानवरों ने फसल को नष्ट कर डाला।

दो पशु शालाएं और एक कांजी हाऊस

गत दिनों मुख्यमंत्री ने अफसरों के वीडियो कांफ्रेंसिंग की और दस जनवरी तक सारे बेसहारा पशुओं को पशु आश्रय स्थलों तक पहुंचाए जाने का फरमान जारी किया। चूंकि जिले में अब तक किसी पशु आश्रय स्थल का निर्माण नहीं हो सका है। ऐसे में तत्काल व्यवस्था के तौर पर प्रशासन ने दो पशु शालाएं और एक कांजी हाऊस सक्रिय किए हैं।

जिलाधिकारी ने पुलिस विभाग को गांवों में टहल रहे पशुओं के मालिकों का पता लगाकर नोटिस जारी करने को कहा है। पशुओं को वापस न बांधने पर उन पर कार्रवाई भी की जाएगी। ६ जनवरी की रात जिले में प्रशासनिक टीम ने पुलिस टीम के साथ सडक़ों पर घूम रहे पशुओं को पकडऩे का आपरेशन चलाया और तमाम जद्दोजहद के बाद 50 जानवर पकड़े गए। आपरेशन में लगी टीम ने 100 पशु स्वामियों को चिन्हित कर उन्हें नोटिस भेजने की भी कार्रवाई शुरू कर दी है।

शिक्षा के मन्दिर बन रहे गौशाला

कपिल देव मौर्य

जौनपुर: किसान छुट्टा पशुओं के आतंक से इतना परेशान हो गये हैं कि उनसे निजात पाने के लिए उन्होंने अब खुद ही मार्चा संभाल लिया है। किसान छुट्टा जानवरों को हांक कर सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के परिसर में बंद कर रहे हैं। उनके लिए अपनी फसलों की सुरक्षा का यही उपाय है। अब आलम यह है कि कड़ाके की ठन्ड में छुट्टा जानवर विद्यालय के अन्दर हैं और पढ़ाई का काम बंद है। किसानों का कहना है कि जब तक सरकार छुट्टा जानवरों को रखने की समुचित व्यवस्था नहीं करेगी तब तक जानवर विद्यालयों में बन्द होते रहेंगे। इस समस्या को लेकर किसान एवं प्रशासन के बीच चिकचिक हो रही है लेकिन इसका स्थाई समाधान नहीं नजर आ रहा है।

प्रदेश सरकार ने छुट्टा पशुओं को रखने के लिए ब्लाक स्तर पर ‘पशु उपवन’ नाम से पशु शाला बनवाने का एलान तो किया लेकिन अभी तक जिले में इस पर कोई काम शुरू नहीं हुआ है। जमीन तक की व्यवस्था नहीं की जा सकी है। छुट्टा जानवरों से त्रस्त किसान प्रदेश सरकार से खासे नाराज हैं। उनका मानना है कि सरकार की गलत नीतियों एवं फरमान के कारण फसल बर्बाद हो रही है। किसानों की नाराजगी इस कदर है कि आने वाले चुनाव में इसका असर दिख सकता है।

स्कूलों में बंद छुट्टा जानवर

जनपद में छुट्टा पशुओं को स्कूल परिसर में बन्द करने की पहली घटना विकास खन्ड सिरकोनी की ग्राम सभा गोपीपुर में हुई। परेशान किसानों ने लगभग 7 दर्जन छुट्टा जानवरो को हांक कर अभिनव प्राथमिक विद्यालय के परिसर में ले जा बंद कर दिया। इस कारण चार दिन तक पढ़ाई-लिखाई ठप रही। बाद में प्रशासन ने जानवरो को दूर ले जाकर छोड़ दिया। छुट्टा पशुओं को लेकर यहां से शुरू हुआ सिलसिला पूरे जनपद में अपना असर दिखाने लगा। इसके बाद सिकरारा विकास खन्ड के गांव सुरुवारपट्टी के किसानों ने छुट्टा जानवरों को स्कूल में बन्द कर दिया। इसी विकास खन्ड के गांव बीबीपुर के किसानों ने भी यही राह चुन।

केराकत के नाऊपुर और भैंसा गांव के किसानों ने भी जानवरों को विद्यालय में बन्द कराया। विकास खन्ड बरसठी के ग्राम सहरमा में किसानों की 200 एकड़ फसल को छुट्टा जनवरों ने चर लिया तो किसानों ने उन्हें प्राथमिक विद्यालय में कैद कर दिया। विकास खन्ड बदलापुर क्षेत्र के किसानों ने भी प्राथमिक विद्यालय डुहियां एवं ढेमा में छुट्टा जानवरों को ले जाकर बंद कर दिया। सूत्रों के अनुसार किसान छुट्टा जानवरों की समस्या जिला प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों को बताते हैं। जब अधिकारी समस्या का निराकरण नहीं कर पाते तभी जानवरों को स्कूलों में बंद किया जाता है। जिले के बेसिक शिक्षाधिकारी ने बताया कि प्राथमिक विद्यालयों में छुट्टा जानवरों को बन्द किए जाने की सूचना मिलने पर संबन्धित थाने की पुलिस के माध्यम से विद्यालय का परिसर का खाली कराकर पठन-पाठन कार्य बहाल कराया जा रहा है।

बढ़ रहा है गुस्सा

नरेन्द्र सिंह

रायबरेली: प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद अवैध स्लाटर हाउस बन्द कर दिए गए जिसके परिणामस्वरूप आवारा जानवरों की संख्या तेजी से बढ़ी है। अब तो आवारा जानवर लोगों के लिए आफत बन गए है। खड़ी फसलों बर्बाद हो रही हैं जिस कारण किसानों में सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ रहा है। रायबरेली में शहर और ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर करीब 44 कांजी हाउस थे लेकिन संसाधन की कमी और जानवरों की पकड़ धकड़ न होने सब एक-एक कर बंद हो गए। कांजी हाउस के कर्मचारियों को जिला पंचायत के टैक्स वसूलने का काम लिया जाने लगा। अब कांजी हाउस को जमीन नीलाम कर नए सिरे से कांजी हाउस और गौशाला का काम शुरू हो गया है।

रायबरेली में 10 गौशाला है। जिनमें तीन गौशाला चल रही हैं। ब्लाक हरचंदपुर ब्लाक के प्यारेपुर में किरण गौशाला में 118 गाय, अमावा ब्लॉक की गोपाल गौशाला में 28 गाय तथा भेला भेला के महिपाल गौशाला में 16 गायों को रखा गया है। अब 18 कांजी हाउस सभी 18 ब्लाक में बनाए जाने हैं। पशु चिकित्सा अधिकारी गजेंद्र प्रताप सिंह के अनुसार पशुओं की टैगिंग की जाएगी जिससे उसकी पहचान हो सके। जो किसान दूध निकाल कर जानवरों को छुट्टा छोड़ देते हैं उन पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।

किसान परेशान

किसान आवारा जानवरों से अपनी फसल को बचाने के लिए ठण्ड भरी रातों में रात रात जाग रहे हैं। बहुत से किसान फसलों को बचाने के लिए खेत के चारों ओर तार की फेंसिंग कर रहे हैं लेकिन फिर भी ये पशु कहीं न कहीं से खेतों में घुस जाते हैं। भदोखर के कोर चन्दा मऊ गांव के रईस अहमद का कहना है अभी तक तो नील गाय खेतों को नुकसान पहुंचाते थे पर अब सांड़ भी छूट गए हैं। इनको देखने वाला कोई भी नहीं है। किसान रमेश दाढ़ी का कहना है कि अगर हम अपने खेतों से इन जानवरों को भगाते हैं तो ये दूसरे खेतों में पहुँच जाते हैं। हर तरफ से नुकसान किसान का ही हो रहा है। कटीले कांटों से बैरिकेड करके खेत को बचाने का काम कर रहे हैं। सरकार को गौशालाओं का काम बहुत पहले शुरू कर देना चाहिए था।

मिथिलेश कुमारी कहना है सरकार द्वारा स्लाटर हाउस बंद करने के बाद जानवरों की बाढ़ आ गई है। इनके कारण अब फसलें बर्बाद हो रही हैं। किसान शिवप्रसाद सिंह चौहान का कहना है कि कांजी हाउस और गौशाला बनाने का काम युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए।

आवारा मवेशियों का आतंक

सुमित शर्मा

कानपुर: कानपुर के तुलसियापुरवा, सचेंडी, सरसौल, बिधनू, रौनापुरपुर, घाटमपुर, सजेती समेत दर्जनों गांवों में किसान आवारा पशुओं से तंग आ चुके हैं। अब तो जगह जगह किसान ऐसे पशुओं को पकड़ कर सीएचसी और प्राथमिक विद्यालयों में बंद करके अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं। अधिकारियों ने जब किसानों से मिन्नतें की तब जाकर मवेशियों को छोड़ा गया। बीते दिनों आवारा मवेशियों को छुड़ाने गई पुलिस की ग्रामीणों ने पिटाई कर दी थी और जमकर पथराव किया था । किसानों का यह आंदोलन अब उग्र रूप लेता जा रहा है यदि इस पर प्रशासन द्वारा ठोस कदम नहीं उठाए गए तो इसके गंभीर परिणाम भी सामने आ सकते हैं।

शहरी क्षेत्र में 12 हजार आवारा मेवशी

कानपुर के शहरी क्षेत्र की बात जाए तो यहां लगभग 12 हजार गोवंश हैं जो शहर की हर सडक़ - गली में विचरण करते रहते हैं। यह छुट्टा पशु राहगीरों के लिए आफत बने हुए हैं। आए दिन इन पशुओं के कारण एक्सीडेंट होते हैं। नगर निगम के कैटिल कैचिंग दस्ते की समस्या है कि वह आवारा पशुओं को पकड़ कर रखे कहां।

कानपुर शहर में हैं तो कई कांजी हाउस लेकिन सिर्फ जाजमऊ और दर्शनपुरवा में बने कांजी हाउस ही बचे हैं जबकि कल्याणपुर, डिप्टी पड़ाव और नौबस्ता के कांजी हाउस पर अवैध कब्जे हो गए हैं। जाजमऊ और दर्शनपुरवा के कांजी हाउस की क्षमता भी बहुत कम है। यहां 200 से ज्यादा मवेशी नहीं आ सकते।

ग्रामीणों का दर्द

ग्रामीण भानु सिंह सवाल दागते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रो में अचानक इतनी बड़ी संख्या में आवारा मवेशी आए कहां से। क्या इन्हें शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ धकेला गया है। भानु सिंह के अनुसार आवारा मवेशियों ने खेत के खेत उजाड़ दिए हैं। उन्होंने कहा कि हम इन जानवरों को बर्दाश्त नहीं करेंगे।

सीडीओ अक्षय त्रिपाठी ने बताया कि बिधनू और शिवराजपुर में गो संरक्षण केंद्र खोले जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में 44 गो संरक्षण केंद्र खोलने की योजना है। नगर आयुक्त संतोष कुमार शर्मा के मुताबिक शहर में घूमने वाले पशुओं को पकड़ कर रखने की व्यवस्था की जा रही है।

गोवंश संरक्षण के नाम पर हीलाहवाली

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहजनपद गोरखपुर और आसपास के जिलों में गो-सरंक्षण की स्थिति काफी खराब है। जो गो-सरंक्षण केन्द्र वजूद में हैं वे छुट्टा पशुओं से ओवरलोडेड हैं और जो निर्माणधीन हैं उनकी रफ्तार काफी धीमी है। सडक़ों पर घूम रही गायों और सांड़ों को भले ही महराजगंज के मधवलिया गो-सदन पहुंचाया जा रहा हो, लेकिन वहां गो संरक्षण के नाम पर मजाक ही हो रहा है। जिस गो-सदन में बमुश्किल 300 से 400 गोवंश के संरक्षण की व्यवस्था है, वहां 1000 से अधिक छुट्टा पशु पहुंच चुके हैं। पशुओं की संख्या देख हाथ खड़ा करने वाले सदन के संचालकों ने गोरखपुर नगर निगम से 61 लाख रुपए की मांग की है।

महराजगंज का मधवलिया गो-सदन 500 एकड़ में फैला है और यह पूर्वांचल के सबसे बड़े गो-सदनों में शुमार है। इस गो-सदन को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है। संचालकों को अपने संसाधन से ही पशुओं की खुराकी का इंतजाम करना होता है। गो-सदन के चारों तरफ न बाउंड्री है, न ही पर्याप्त नाद। मुख्यमंत्री के कड़े रुख के बाद स्थानीय प्रशासन ने जन सहयोग से 10 हजार वर्ग फीट में टिनशेड का निर्माण कराया जा रहा है। इस बीच गोरखपुर नगर निगम की तरफ से करीब 600 सांड़ों को पकडक़र मधवलिया भेज दिया गया है। अब तो रोज 15 से 30 आवारा पशु मधवलिया गो-सदन भेजे जा रहे हैं।

महराजगंज के डीएम ने गोरखपुर नगर निगम को पत्र लिखकर भूसा और चारे के लिए 61 लाख रुपए की मांग की है। कंगाल नगर निगम शासन में डिमांड की फाइल शासन में भेजकर सरकारी कोरम पूरा कर रहा है। गो-सदन में 1000 पशुओं की देखभाल के लिए दो सुपरवाइजर और 12 मजदूर हैं जिन्हें मानदेय के नाम पर बमुश्किल 125 से 150 रुपए ही मिलते हैं। जिलाधिकारी के निर्देश पर गो सदन की फेन्सिंग कर जंगली जानवरों से सुरक्षित बनाया जाना है। पशुओं के चारे की व्यवस्था के लिए गो सदन प्रशासन ने करीब 152 एकड़ भूमि किसानों को खेती करने के लिए दिया है। उसी आय से पशुओं की अन्य व्यवस्था की जानी है तथा खेती कर रहे किसानों को पराली व भूसा आदि गो सदन को दे देना है।

कंटीले तार की मांग बढ़ी

छुट्टा पशुओं से बचाव के लिए खेतों में बाड़बंदी बढ़ी है और कंटीले तार खूब बिक रहे हैं। तार और बाड़बंदी महंगा काम है सो इसका खर्च बड़े किसान ही उठा पा रहे हैं। गगहा क्षेत्र के किसान रणविजय चंद का कहना है कि 15 एकड़ खेत की बाड़बंदी में 2 लाख रुपए से अधिक के कंटीले तार लगाए गए हैं। नील गाय तो उसे भी पार कर खेतों को चौपट कर रही है। कटीले तारों के थोक विक्रेता महेन्द्र मौर्या का कहना है कि सामान्य से 20 फीसदी का इजाफा हुआ है। बड़ी जोत वाले किसान ही इसका उपयोग कर रहे हैं।

बर्बाद हो गई लाखों हेक्टेयर फसल

शहरों और कस्बों में नगर निगम और निकाय की टीम आवारा पशुओं को पकडक़र गांव की तरफ छोड़ दे रहे हैं। वहीं गांव में भी छुट्टा पशुओं की बड़ी जमात है। अपनी फसलों को बचाने के लिए गोरखपुर, महराजगंज, बस्ती, देवरिया, कुशीनगर आदि जिलों में किसान रात भर जगकर और दिनभर लाठी भांजकर गायों को भगाने में लगे हुए हैं। नाराज किसान आवारा गायों को सरकारी भवनों जैसे स्कूलों, अस्पतालों और पंचायत भवनों में बंद कर अपना विरोध जता रहे हैं।

गोरखपुर में जगतबेला के किसान राधेश्याम निषाद का कहना है कि तीन एकड़ खड़ी फसल आवारा पशुओं के चलते बर्बाद हो गई। गांव का सौहार्द भी पशुओं के चलते खराब हो रहा है। गोरखपुर में कौड़ीराम,चौरीचौरा, कैम्पियरगंज आदि तहसीलों के दर्जनों गांव के ग्रामीण शिफ्ट में ड्यूटी लगाकर फसल की रखवाली कर रहे हैं। किसान महेश मौर्या का कहना है कि गोहत्या पर प्रतिबंध की पहल का स्वागत है, लेकिन सरकार को फसलों की सुरक्षा का भी इंतजाम करना होगा। नील गाय का आंतक कम नहीं हुआ। इसके उलट छुट्टा गाय पलक झपकते ही सैकड़ों एकड़ फसल बर्बाद कर दे रही है।

पॉलीथिन खाने से गायें बीमार, पशु चिकित्सक नहीं

गोरखपुर नगर निगम या आसपास के नगर पंचायतों से भेजे गए सांड़ और गाय पॉलीथिन खाने से बीमार है। गो-सदन के संचालक जितेन्द्र पाल कहते हैं कि एक साल पशु चिकित्सक की मांग की जा रही है। पहले भी पॉलीथिन खाने से बीमार गायों की मौत हो चुकी है। बीते वर्ष जनवरी में प्रशासनिक आकड़ों के मुताबिक गो-सदन में 29 पशुओं की मौत हो गई थी। जबकि मीडिया रिपोर्ट में यह संख्या 100 से अधिक बताई जा रही थी। वर्तमान में भी 50 से अधिक पशु गम्भीर रूप से बीमार हैं। वर्ष 1997-98 में तत्कालीन आयुक्त राजीव गुप्त की पहल पर गीता प्रेस द्वारा पशुओं के लिए दो टिनशेड व एक चारा भंडारण शेड बनवाया गया। अब 22 वर्ष बाद कुछ निर्माण कार्य शुरू हुए हैं।

गोरखपुर नगर निगम क्षेत्र में 4000 छुट्टा पशु

गोरखपुर नगर निगम क्षेत्र में 4000 से अधिक छुट्टा पशुओं की बड़ी जमात है। पिछले दस वर्षों में सांड़ों के हमले में पूर्व कुलपति से लेकर अधिकारी तक की मौत हो चुकी है। सहायक नगर आयुक्त संजय कुमार शुक्ला का कहना है कि डोर-टू-डोर कर्मचारियों को भेजकर पशु पालकों से घोषणा पत्र भरवाया जा रहा है कि वह सडक़ों पर पशुओं को नहीं छोड़ेंगे। यदि सडक़ पर पशु दिखे तो 10 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा। नगर निगम द्वारा महेवा में कान्हा गो-सदन बनाया जा रहा है जिसमें 1000 से अधिक पशु रखे जा सकेंगे। नगर निगम के पास फर्टिलाइजर में मवेशी खाना है। यहां बमुश्किल 50 गो-वंशी रखे जा सकते हैं। गोरखपुर के गाजेगड़हा गांव में 5 एकड़ में गो सरंक्षण केन्द्र और गो शाला का निर्माण कराया जा रहा है। बस्ती में 250.37 लाख तो रुधौली में 2 करोड़ की लागत से कान्हा हाउस का निर्माण हो रहा है। दोनों गोशालाओं के लिए दो वर्ष पहले मंजूरी मिली थी, लेकिन कार्य पूर्ण न होने के चलते अभी तक यहां पशुओं को रखने का इंतजाम नहीं हो सका है। दोनों स्थानों पर 500-500 पशुओं की व्यवस्था का दावा है।

ग्रामीणों का सब्र दे रहा जवाब

सुशील कुमार

मेरठ: मेरठ समेत वेस्ट यूपी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में छुट्टा मवेशियों की बढ़ती तादाद लोगों के लिए मुसीबत बन गयी है। किसानों के लिए तो यह बड़ी आफत है। मेरठ में ही किसानों की करीब पांच लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल बर्बाद हो रही है। फसलों की बर्बादी देख किसान सरकारी भवनों में पशुओं को बंद करने को मजबूर हैं। यही नहीं, देखरेख न होने की वजह से कई पशु बीमारी की चपेट में आ रहे हैं और कुछ की मौत भी हो चुकी है। समस्या का समाधान न होता देख अब किसानों का धैर्य टूटने लगाहै। नतीजतन,किसान जगह-जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

किसानों की फसल बर्बाद

गांव खेड़ी के किसान चन्द्रवीर का कहना है कि बेकार पशु का खर्च उठाना किसान के बस की बात नहीं है इसलिए किसान गोवंश को छोड़ रहे हैं। जिले के 484 गांवों में प्रत्येक में छुट्टा मवेशियों की संख्या 50 से 150 तक है। जानीखुर्द ब्लाक क्षेत्र के किठौली गांव के प्रधान नवीन कहते हैं, गांव के करीबी क्षेत्र के खेत सबसे अधिक प्रभावित हैं। कुछ किसानों का सरसों और गेहूं पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। निलोहा के किसान यशपाल सिंह कहते हैं, उनकी 15बीघा गेहूं की फसल को छुट्टा मवेशियों ने नष्ट कर दिया।

कई गांवों में किसानों ने खेती छोड़ी

खेड़ी महिरन गांव के जगवीर और सिसाना निवासी राजू बताते हैं कि उन्होंने पांच एकड़ के खेत में 50 हजार खर्च करके तारबंदी कराई, लेकिन फसलों की सुरक्षा तब भी पूरी नहीं हो पा रही है। बड़े किसान तो तारबंदी करा सकते हैं, लेकिन छोटे किसान कैस तारबंदी का खर्च उठाएंगे? कुछ गांवों में आवारा पशुओं से फसलों में 50 से 80 फीसदी तक नुकसान आम है।

गोशालाओं में क्षमता से अधिक जानवर

एक तरफ छुट्टा मवेशियों की तादाद बढ़ रही है तो दूसरी तरफ जिले की चार गोशालाओं में क्षमतासे अधिक जानवरों को रखा जा रहा है। मेरठ में दिल्ली रोड स्थित गोपाल गोशाला में करीब 750 पशु हैं जबकि इसकी क्षमता सिर्फ 450 की है। गोशाला के प्रबंधक उमेश चंद का कहना है कि पशुओं के रखरखाव के लिए सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलती है जबकि प्रशासन पशुओं को जबरन यहां भिजवा देता है। गोशाला के संचालकों के अनुसार एक साल में गोशाला में करीब डेढ़ करोड़ का खर्च आता है। जिले के कपसाड़ गांव की साधुजगराम स्मारक गोशाला में फिलहाल 90 पशु हैं। वहां 200 पशु रखे जा सकते हैं लेकिन चारा और दूसरे खर्च पूरे नहीं होने से प्रबंध समिति अन्य पशु रखने में असमर्थ है। समिति के सचिव रहे वीर सिंह का कहना है कि गांव में करीब 125 आवारा पशु फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

कांजीहाउस में उचित प्रबंध नहीं

मेरठ में सूरजकुंड के कांजीहाउस में पशओं के लिए न तो कोई उचित स्थान है और न ही चारा-पानी का कोई प्रबंध। कांजी हाउस में पशुओं को रखने के लिए टीन शेड तो है, लेकिन कई जगह से टूटा है। एक कर्मचारी ने बताया कि सिर्फ दिखावे के लिए एक -दो कुंतल भूसा डाला जाता है। ऐसे में पशुओं को जंगल में जाकर ही अपना पेट भरना पड़ता है। महापौर सुनीता वर्मा कांजी हाउस की बदहाल हालत से खुद को अनजान बताते हुए इतना ही कहती हैं कि जल्द ही सब कुछ ठीक कर दिया जाएगा।

आवारा मवेशियों का सर्वे

जिले में छुट्टा मवेशियों की बढ़ती तादाद पर जिलाधिकारी अनिल ढींगरा कहते हैं कि हम आवारा व बेसहारा मवेशियों का सर्वे करा रहे हैं। सर्वे के दौरान पाए गए छुट्टा मवेशियों की संख्या के अनुरूप जिले में यथासंभव आश्रय स्थलों का निर्माण कराया जाएगा। जिले की मुख्य विकास अधिकारी आर्यका अखोरी के मुताबिक निराश्रित पशुओं के लिए मेरठ जिले में 34 जगह पशु आश्रय स्थल बनेंगे। चारागाह के स्थान पर इन आश्रय स्थलों को बनाया जाएगा।

मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. के.सिंह के मुताबिक जिलों में पशुओं की गणना हो रही है। इससे पहले 2012 में गणना हुई थी। तब मेरठ जिले में निराश्रित समेत सात लाख 73 हजार गाय और भैंस की नस्ल के पशुथे। अब इनकी संख्या बढऩे का अनुमान है। गणना की रिपोर्ट जल्द शासन को भेजी जाएगी।

विपक्षी दलों ने सरकार को नाकाम बताया

समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जहां पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी का पुतला फूंका। रालोद के वेस्ट यूपी संगठन प्रभारी डा. राजकुमार सांगवान कहते हैं कि देहात क्षेत्र में छुट्टा पशुओं ने अब तक गेहूं की करीब 70फीसदी फसल को बर्बाद कर दिया है। सांगवान ने कहा कि इस तरह के नुकसान से आने वाले समय में रोटी का संकट पैदा हो सकता है। कोई कार्रवाई नहीं की गई तो बेसहारा पशुओं को सरकारी कार्यालयों में छोड़ दिया जाएगा।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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