Holi faag Geet: फाग के बिन रहे अधूरी होली, फाग गीत में होता है श्रृंगार, आनंद और अध्यात्म का संगम

Holi faag Geet: पत्रकार हरिओम का कहना है कि फाग की प्रस्तुति लोकगीतों में होती है। इसमें होली खेलने, प्रकृति वर्णन, राधाकृष्ण के प्रेम का वर्णन होता है।

Viren Singh
Written By Viren Singh
Published on: 7 March 2023 5:54 AM GMT (Updated on: 7 March 2023 6:07 AM GMT)
Holi faag Geet: फाग के बिन रहे अधूरी होली, फाग गीत में होता है श्रृंगार, आनंद और अध्यात्म का संगम
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Holi phag Geet: वसंत ऋतु का आगमन होते ही खेत खलिहान प्रकृति का पीत वस्त्र ओढ़े हैं। आसमान में चल रही माध्यम और हल्की तेज गति की हवाएँ शरीर को शीतलता प्रदान कर रही हैं। यह इस बात का एहसास करती हैं कि कान्हा के ब्रज में अर्थात मुथरा होली का आगमन हो चुका है। ब्रज से शुरू हुई होली का आगमन अब पूरे देश में फैल गया है। लोग हर्षोंल्लास के साथ होली के जश्न में डूबे हैं। पूरा वातावरण होलीमय हुआ पड़ा है। यानी देश में आज से रंगों का त्योहार होली की शुरूआत हो चुकी है। होली हो और इसमें फाग का रंग ना चढ़े तो माज कुछ अधूरा होता है। फाग और होली के बीच का संबंध भी वैसा ही होता है, जैसा राधा और कृष्ण का प्रेम हो। इसलिए पुराने समय से चल रहे गांवों में होली पर फाग का दौर आज से आधुनिक दौर में भी जारी है।

होली पर यूपी में फाग बुंदेलखंड के बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, फतेहपुर, औरैया, इटावा, फर्रुखाबाद के लेकर उन्नाव, कानपुर देहात,कानपुर नगर सहित घाटमपुर बिल्हौर, चौबेपुर में गाया जाता है। यहां पर होने वाला फाग अधिकांश बुंदेली भाषा में गाए जाते हैं। इनमें श्रृंगार, आनंद और अध्यात्म का संगम होता है। इस दौरान फाग मंडली राधा कृष्ण की प्रेम की लीलाओं के गीत के साथ भक्ति के अन्य गीतों की प्रस्तुति करती हैं। इसमें अधिकांश गीत रसिया को नार बनाओ री रसिया को पावन, महावर मांग में बिंदी नाथ बसर पहिराओ री, रसिया को नार बनाओ री... फागुनइया तोरी अजब बहार, सड़क मा नीबूं लगा दे बालम...तोरी होरी की नीयत में खोट कन्हैया, चोट लगी मोरी छती में जैसे इत्यादि फाग ढोलक और मंजिरे के साथ गाए जाते हैं। इन फांगों में बुंदेली, रुहेली, बैसवारा, जती की भाषा का मिलाप होता है।



फागों में होता है होली खेलने, प्रकृति वर्णन, राधाकृष्ण के प्रेम का वर्णन

वरिष्ठ पत्रकार हरिओम का कहना है कि फाग की प्रस्तुति लोकगीतों में होती है। इसमें होली खेलने, प्रकृति वर्णन, राधाकृष्ण के प्रेम का वर्णन होता है। हालांकि फाग की शुरुआत कब हुई पर उनका कहना कि इसका कोई सटीक समय नहीं है। लेकिन के गांव में गाए जा रहे फाग के गीतों से युवाओं लेकर बुजुर्गों में नैकित मूल्यों, मनोरंजन, ऊर्जा के साथ आत्मीयता का संचार होता है।

फाग लोगों के बीच प्रेम पैदा करता है

डीएवी कॉलेज के इतिहास के विभागाध्यक्ष डॉक्टर समर बहादुर सिंह का कहना है कि बुंदेली भाषा में फाग के गीत इस प्रकार होते हैं, जिन्हें निम्म, मध्यम व ऊंचे सुर में गाया जाता है। ढोलक की थाप मंजीरे की संगत और बीच बीच में हाथ की धीमी गमक प्रेम, ऊर्जा के साथ आकर्षण पैदा करती हैं।

फसल पकने की खुसी में किसान गाते फाग

वहीं, उन्नाव जिला के हिलौली ब्लॉक के ग्राम पंचायत रजवाड़ा के प्रधान राजू सिंह का कहना है कि फाग भाषीय पंरपराएं अलग अगल होती हैं। फसल पकने की खुशी में किसान फाग गीत गाते हैं। उन्होंने कहा कि फाग का उत्साह होली से कई दिनों से पहले से शुरू हो जाता है और होली के कई दिनों के बाद तक चलता है। लेकिन फाग का बुंदेली गायन पंरपंरा का एक अलग ही महत्व है।

Viren Singh

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पत्रकारिता क्षेत्र में काम करते हुए 4 साल से अधिक समय हो गया है। इस दौरान टीवी व एजेंसी की पत्रकारिता का अनुभव लेते हुए अब डिजिटल मीडिया में काम कर रहा हूँ। वैसे तो सुई से लेकर हवाई जहाज की खबरें लिख सकता हूं। लेकिन राजनीति, खेल और बिजनेस को कवर करना अच्छा लगता है। वर्तमान में Newstrack.com से जुड़ा हूं और यहां पर व्यापार जगत की खबरें कवर करता हूं। मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई मध्य प्रदेश के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्विविद्यालय से की है, यहां से मास्टर किया है।

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