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Holi 2022: टेसू के फूल, गुलाल, फूलों की पत्ती और पानी की हो रही बरसात से बनी इंद्रधनुषी छटा के बीच ब्रज होली का हुआ समापन
Holi in Mathura: बृज में होली का खुमारा चढा है। बल्देव के मुख्य दाऊजी मंदिर प्रांगण में खेले जाने वाले हुरंगे में भाभीयों द्वारा देवर के कपडे फाड़ कर उनके कोढे बनाये और फिर देवरो पर जमकर बरसाए।
Holi in Mathura: धूल होली के बाद भी बृज में होली की खुमारी उतरने का नाम नहीं ले रही है, और इसी खुमारी के क्रम के बृज के राजा कहे जाने वाले बलदाऊ जी की नगरी बल्देव में हुरंगा कपड़ा फाड़ होली खेली गयी। बल्देव के मुख्य दाऊजी मंदिर प्रांगण में खेले जाने वाले हुरंगे में भाभीयो द्वारा देवर के कपडे फाड़ कर उनके कोढे बनाये और फिर देवरो पर जमकर बरसाए। कोड़ों की प्यार भरी तीखी नौक-झोंक होने की वजह से इसे कपड़ा फाड़ होली भी कहा जाता है/
बृज में होने वाले 45 दिन के होली उत्सव के दौरान आज बृज के राजा बलदाऊ जी की नगरी बल्देव में हुरंगे का आयोजन शनिवार को सम्पन्न हुआ। बृज में वैसे तो इस पूरे होली उत्सव के दौरान राधा-कृष्ण की होली की ही धूम रहती है, लेकिन बल्देव में आयोजित किये जाने वाले इस हुरंगे की ख़ास बात ये है कि यहाँ बलदाऊ जी कि नगरी होने की वजह से देवर-भाभी की होली खेली जाती है/ मंदिर प्रांगण में खेली जाने वाली इस होली का यहाँ व्यापक रूप देखने को मिलने की वजह से इसे हुरंगा कहा जाता है।
इस होली की परम्परा ये रही है कि इसमें महिलाऐं और पुरुष ही शामिल होते है/ सबसे पहले मंदिर प्रांगण में इकठ्ठा हुई हुरियारिन भाभी और हुरियारे देवर बल्दाऊ जी के मुख्य भवन की परिक्रमा करते है और जैसे ही मंदिर के मुख्य भवन के अन्दर से ऊंची केसरिया झंडी बाहर प्रांगण में आती है, तो यहाँ मौजूद हुरियारिन अपने हुरियारे देवरों के कपडे फाड़ना शुरू कर देती है। इसके बाद इन कपड़ों को टेसू के फूलों से बने रंगों में भिगोया जाता है और फिर भाभी इसे कोड़ा बनाकर देवर को मारती है/ अपना बचाव करने के लिये देवर भी बाल्टी में रंग भरकर भाभी के ऊपर डालते है। हुरंगे के दौरान हुरियारे इतने उत्साहित हो जाते है कि वह कभी अपने साथियों को कंधे पर बिठा लेते है और कभी उने गिरा देते है।
इस दौरान लगातार कपडे के बनाये हुए कोड़े से हुरियारिन इन ग्वालों पर वार करती रहती है। इसे देखकर यहाँ आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक भाव विभोर हुए बिना नहीं रह पाते.बरसाना और नन्दगाँव की ही तरह यहाँ के हुरंगे में भी हुरियारिन हुरियारों पर हावी रहती है, लेकिन यहाँ लाठियों से नहीं बल्कि हुरियारों के कपडे फाड़कर बनाये गये कोड़ों से ही हुरियारिन भाभी अपने हुरियारे देवरों को इस होली का मजा चखाती है।
इसे होली नहीं हुरंगा है कहते है, कहा जाता है की बरसाने , नन्द गाँव , और गोकुल के बाद की लठमार होली खेलने के बाद बलदाऊ जी ने पुरे बृज के सभी गोपी और ग्वाल बालों से कहा की आप हमारे यहाँ आओ हम तुम्हे क्षीर सागर में निलाहेंगे माखन मिश्री खिलाएंगे और आप की होली की थकान मिठायेंगे इस पर सभी गोपी और ग्वालबाल बलदेव पहुंचे और वहाँ जा कर देखा तो पानी के आलावा कोई व्यवस्था नही थी और बलदाऊ भांग के नशे में मस्त थे।
ड्रामों में पानी भरा था फिर क्या था गोपी गुस्से में आ गयी और बलदाऊ जी सहित सभी ग्वालों के कपडे फाड़ कर उनके कोड़े बना कर जम कर उनकी माजमत कर दी तब से लेकर आज तक उसी परपरा का निरभन करते हुए बलदाऊ जी के हुरंगा का आयोजन किया जाता है जिस में देश विदेश के हजारों हजारों की संख्या में भक्त पर्यटक पहुँचते है / इस तरह 40 दिन से चलने वाली बृज की होली का समापन होता है।