×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

दीनदयाल जिला अस्पताल या लूट का ‘अड्डा’!

raghvendra
Published on: 15 Jun 2018 12:29 PM IST
दीनदयाल जिला अस्पताल या लूट का ‘अड्डा’!
X

आशुतोष सिंह

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को फिटनेस मंत्र देते हैं। महंगी दवाओं से लोगों को छुटकारा दिलाना सरकार के एजेंडे में है। आयुष्मान योजना के तहत स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी क्रांति तैयारी चल रही है। लेकिन हैरानी इस बात की है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था बेपटरी हो चुकी है। ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को छोडिय़े, दीनदयाल जिला अस्पताल भ्रष्टाचार और लूट-खसोट का अड्डा बन चुका है।

अस्पताल में मरीजों की जांच के लिए लगी महंगी मशीनें धूल फांक रही हैं। अस्पताल प्रबंधन के नकारेपन के चलते मरीजों को बाहर जांच करना पड़ता है। डॉक्टरों और दवा माफिया की गठजोड़ का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। कमीशन के चक्कर में डॉक्टर दवा के लिए मरीजों को बाहर भेजते हैं।

धूल फांक रही हैं करोड़ों की मशीन

दीनदयाल अस्पताल को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस करने के उद्देश्य से चार महीने पहले यहां लगभग 50 लाख रुपए की लागत से ‘हार्मोनल एनालाइजर’ मशीन मंगाई गई। इस मशीन के जरिए मशीन के माध्यम से सूक्ष्म जीवाणुओं से संबंधित टेस्ट कर बीमारी का पता लगाया जा सकता है। लेकिन चार महीने से अधिक का वक्त गुजर गया, जांचघर के एक कोने में मशीन धूल फांक रही है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि मशीन के रखरखाव के लिए उचित जगह की जरूरत होनी चाहिए। हमारी कोशिश है कि जल्द ही इसे इंस्टॉल करा लिया जाएगा। ये हाल सिर्फ हार्मोनल एनालाइजर मशीन का नहीं है बल्कि एमआरआई मशीन भी ऐसे ही पड़ी है। लिहाजा मरीजों को बाहर का रुख करना पड़ता है।

कमीशन का खेल

अस्पताल में कमीशनखोरी का खेल लंबे समय से चल रहा है। सूत्रों के मुताबिक अस्पताल प्रशासन महंगी जांच मशीनों को जानबूझकर ऑपरेट नहीं करता है। अस्पताल में संसाधन होने के बावजूद मरीजों को महंगे निजी सेंटरों पर जांच के लिए भेजा जाता है। हर जांच के बदले अस्पताल के डॉक्टरों का कमीशन फिक्स होता है। मसलन अगर निजी सेंटर में एमआरआई कराने की फीस चार हजार रुपए है तो इसकी आधी रकम संबंधित डॉक्टर तक पहुंचती है। इसी तरह सीटी स्कैन कराने की फीस दो हजार रुपए है तो आधी रकम डॉक्टर तक पहुंच जाती है।

अस्पताल में दवा का टोटा, परेशान मरीज

‘अपना भारत’ की पड़ताल में दर्जनों ऐसे मरीज मिले, जिन्होंने इस बात की शिकायत की कि डॉक्टर बाहर से दवा खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। मरीजों के मुताबिक ओपीडी के दौरान सभी डॉक्टरों के चेम्बर में मेडिकल स्टोर के कर्मचारी मौजूद रहते हैं। डॉक्टर की ओर से लिखी गई कुछ दवाएं ही अस्पताल में मिलती हैं, जबकि महंगी और अधिकांश दवाएं उन्हें बाहर से लेने के लिए बोला जाता है। डॉक्टर के चैंबर में मौजूद मेडिकल स्टोर कर्मी मरीज को अपने साथ ले जाता है और दवा दिलवाता है। कई मरीजों ने बाहर की दवा दुकानों के पर्चे दिखाए।



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story