×

इको फ्रेंडली मकान: झट निर्माण, पट गृह प्रवेश

raghvendra
Published on: 28 Sept 2018 3:44 PM IST
इको फ्रेंडली मकान: झट निर्माण, पट गृह प्रवेश
X

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: भागदौड़ की जिंदगी में आशियाना बनवाने के लिए समय देना, निगरानी करना और महीनों का इंतजार करना अब गुजरे दिनों की बात हो गई है। बिल्डरों के भरोसे बहुमंजिली इमारतों के दौर में अपनी जमीन, अपनी छत की चाह रखने वाले लोग एलजीएस के साथ ही पुआल से बने आवास को तरजीह देने लगे हैं। इको फ्रेंडली मकान न सिर्फ सस्ते हैं बल्कि बहुत कम समय में बनकर तैयार हो रहे हैं। गोरखपुर में विदेशों की तकनीक से पुआल के बोर्ड और स्टील से इको फ्रेंडली मकान बनने लगे हैं। होम लोन की सहूलियत के दौर में लोग 15 से 45 दिन में अपने घर में प्रवेश कर रहे हैं।

ईंट, सरिया, मौरंग बालू आदि की झंझट को देखते हुए गोरखपुर में एलजीएस (लाइट गेज स्टील) तकनीक पर मकान बनने लगे हैं। इस तकनीक से 1000 वर्ग फीट जमीन पर महज 30 दिन में मकान बन रहे हैं। कंक्रीट वाले भवन की तुलना में लागत भी करीब 25 फीसदी कम आ रही है। बुर्ज खलीफा और वल्र्ड ट्रेड सेंटर के निर्माण वाली तकनीक भूकंप के तगड़े झटकों को भी बर्दाश्त करने में सक्षम है। नेपाल से सटे होने की वहज से गोरखपुर और आसपास का इलाका भूकंप के लिहाज से जोन फोर में है। लिहाजा इस तकनीक से बने मकान काफी मुफीद माने जा रहे हैं। इस तकनीक से स्टील के फ्रेमों और सीमेंट की चादरों पर नट बोल्ट कसकर चंद दिनों में मकान खड़ा हो रहा है। इंग्लैंड और जापान की प्रचलित तकनीक पर गोरखपुर में पहला आवासीय भवन रानीडिहा में बनकर तैयार भी हो गया है। 1400 वर्ग फीट में तीन मंजिला मकान सिर्फ 60 दिन में बनकर तैयार हुआ है।

मूलत: कुशीनगर के रहने वाले श्वेताभ राय ने इस तकनीक से पूर्वांचल में पहला आवासीय मकान बनाया है। वह बताते हैं कि स्वीकृत नक्शे के मुताबिक स्टील के फ्रेमों पर ढांचा खड़ा किया जाता है। करीब चार इंच मोटे फ्रेम के दोनों तरफ से दीवार के रूप में सीमेंट के बोर्ड (चादरें) लगाई जाती हैं। बोर्ड पर सुरक्षा कवच के रूप में इंसुलेशन लगाया जाता है। इससे कमरे की आवाज बाहर नहीं आती है और आग लगने पर जल्दी फैलती नहीं है। मकान की छत सुविधा और बजट के अनुसार सीमेंट बोर्ड और फाइबर की डाली जा सकती है। लाइट स्टील गेज का मकान 15 सौ रुपये प्रति वर्ग फुट तैयार हो रहा है। दीवारें खड़ी करने से पहले ही फ्रेमों में बिजली की फिटिंग हो जाती है। इसके बाद ही सीमेंट बोर्ड की दीवारें खड़ी की जाती हैं।

आसानी से शिफ्ट किया जा सकता है घर

राय बताते हैं कि मकान खड़ा होने के बाद भविष्य में उसे दूसरी जगह आसानी शिफ्ट किया जा सकता है। इसमें नट बोल्ट खोलने के सिवाय बाकी कुछ भी नहीं करना है। सुविधानुसार मकान का डिजाइन भी बदला जा सकता है। एक बार मकान तैयार करने के बाद करीब चार दशक तक मेंटेनेंस की भी छुट्टी है। मकान के पेंट आदि पर 10 साल की गारंटी भी मिल रही है। पिछले वर्ष मेडिकल कॉलेज परिसर में बना आशा ज्योति केन्द्र का भवन भी एलजीएस तकनीक से बना है। करीब 2500 वर्ग फीट में बने केन्द्र के निर्माण में करीब 150 दिन लगे थे।

एलजीएस तकनीक की मांग गोरखपुर में तेजी से बढ़ रहा है। वर्तमान में दर्जन भर मकान इस तकनीक से बन रहे हैं। गोरखपुर विकास प्राधिकरण के अधिशासी अभियंता अवनिन्द्र सिंह का कहना है कि अब फटाफट निर्माण का दौर है। लोग सस्ती और जल्दी वाले तकनीक की तरफ बढ़ रहे हैं। जीडीए भी अत्याधुनिक पुस्तकालय का निर्माण करने जा रहा है जिसे एलजीएस तकनीक पर बनाने का प्रस्ताव है। मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर गोविन्द पांडेय का कहना है कि ईंट को लेकर एनजीटी की बंदिशों में और दिक्कतों को देखते हुए आर्किटेक्ट दूसरे विकल्पों की तरफ बढ़ रहे हैं। पुआल का भवन में उपयोग क्रांतिकारी है। खेती प्रधान देश में पुआल से दीवार बनना शुभसंकेत है। समाज में सुरक्षा मिलेगी तो लोग झटपट तकनीक से बनने वाले भवनों को तरजीह देंगे।

बन सकता है आठ मंजिला मकान

स्टील फ्रेमों के ढांचे पर बना मकान न केवल सुरक्षित है बल्कि इसे खोलकर दूसरी जगह शिफ्ट करना बेहद आसान है। स्टील और सीमेंट बोर्ड से खड़ा मकान पूरी तरह भूकंपरोधी है। 89 एमएम की दीवार पर खड़े होने वाले मकान में ईंट, सरिया और लेबर खर्च में काफी बचत हो रही है। यह मकान 3.30 घंटे तक तक आग को सहन करने में सक्षम हैं। इस तकनीक से 8 मंजिल तक के आवासीय मकान आसानी से बनाए जा सकते हैं। एलजीएस तकनीक की पढ़ाई आईआईटी दिल्ली, रुडक़ी और बंगलुरू में हो रही है। मजबूती ऐसी है कि 1500 वर्ग फीट के मकान में 250 लोग एक साथ पार्टी कर सकते हैं।

एलजीएस तकनीक के मकान की खूबियां

एलजीएस तकनीक से बने मकानों में कई खूबियां बताई जा रही है। रिक्टर स्टेल पर इस तकनीक से बने मकान 7.5 तीव्रता तक के झटकों को सह लेंगे। वहीं कंक्रीट के मकान रिक्टर स्केल पर 4 की तीव्रता में ही क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इस तकनीक से बने भवन की उम्र 100 वर्ष तो कंक्रीट के मकानों की उम्र 60 वर्ष बताई जा रही है। डिजाइन को कुछ साल बाद परिवर्तित भी किया जा सकता है। वहीं पुआल से बनने वाले घर भी पूरी तरह भूकंपरोधी हैं।

लागत 40 फीसदी कम

श्रीति ने न्यूयॉर्क से कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूयॉर्क में पढ़ाई के दौरान उन्हें एग्रो वेस्ट मटेरियल से बिल्डिंग निर्माण की जानकारी मिली। पढ़ाई के दौरान ही श्रीति को मध्य प्रदेश के किसानों के साथ काम करने का मौका मिला। चेक रिपब्लिक की एक कंपनी से उन्होंने स्ट्रा बोर्ड मंगाया और इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की।

उन्होंने बताया कि इन स्ट्रा बोर्ड की मदद से वह दीवार और छत बनाती हैं। एक वर्ग मीटर में 26 किलो पुआल का प्रयोग किया जाता है। एक घर में लगभग 3 हजार टन पुआल का प्रयोग होता है। श्रीति का कहना है कि अभी वह स्ट्रा बोर्ड दूसरे देश से आयात कर रही हैं। इसलिए इसकी लागत ज्यादा पड़ रही है। लेकिन जब यहां बोर्ड बनाया जाएगा तो स्थानीय किसानों से ही वह पुआल खरीदेंगी और इससे बनने वाला बोर्ड सस्ता पड़ेगा। एमजी इंटर कॉलेज परिसर में निर्माणाधीन मकान को श्रीति ने ‘स्ट्रक्चर होम’ का नाम दिया है। इसकी मजबूती ऐसी है कि तीन मंजिल की बिल्डिंग बन सकती है। साथ ही एक आम घर को बनाने में जो लागत आती है उससे यह 40 फीसदी कम लागत में तैयार होता है।

एमजी इंटर कॉलेज में वह 350 वर्ग फिट में मकान बना रही हैं। इस पर करीब तीन लाख का खर्च आएगा। स्ट्रा बोर्ड के अन्दर ही पाइपलाइन और बिजली की वायरिंग की जा रही है और इसके ऊपर पतली जाली लगाकर उस पर कंक्रीट से प्लास्टर की परत चढ़ा दी जाएगी। उनका दावा है कि घर इतना मजबूत बनेगा कि 60 साल से अधिक समय तक इसे पानी, सीलन और भूकंप से कोई दिक्कत नहीं होगी। श्रीति की भूसी से मकान बनाने वाले बोर्ड तैयार करने का उद्योग कुसम्ही के पास स्थापित होगा। जमीन फाइनल हो चुकी है। सामान भी मंगा लिए गए हैं। इंजीनियर भी फाइनल हो चुके हैं। उद्योग की स्थापना में करीब 20 करोड़ की लगात आएगी।

सर्दी में गर्म व गर्मी में रहेगा ठंडा

पुआल की बोर्ड की दीवार में कहीं पर कोई जोड़ नहीं होने और दो दीवारों के बीच में विशेष प्रकार का इन्सुलेटर देने के कारण यह घर गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रहेगा। वहीं एलजीएस तकनीक से बने आवास में भी गर्मी और जाड़े में राहत मिलने का दावा किया जा रहा है। इंजीनियरों का कहना है कि स्टील बिल्डिंग में ग्लेनाइट शीट यानि दो सीट के बीच में केमिकल से बने पफ लगाए जाएंगे। यह बाहर की गर्मी या ठंडक को अंदर तक पहुंचने नहीं देगा। सामान्य तापमान बनाए रखने में यह फॉर्मूला कारगर साबित होगा। श्वेताभ बताते हैं कि 50 डिग्री तापमान में भी अंदर रहने वालों की सेहत पर मौसम का असर नहीं होगा। एसी-कूलर लगाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। सामान्य रूप से एक पंखा ही कमरे के तापमान को बनाए रखेगा।

श्रीति के प्रेजेंटेशन को मिली तारीफ

श्रीति ने अपने शोध के आधार पर इसकी परियोजना तैयार की है। पिछले महीने उन्होंने यूनाइटेड नेशन में इसका प्रेजेंटेशन दिया, जिसके बाद यूनाइटेड नेशन इस परियोजना के लिए आर्थिक सहयोग व एक्सपर्ट की सलाह मुहैया कराने पर विचार कर रहा है। एसबीआई के एक प्रोजेक्ट से जुडक़र श्रीति ने 2016 से 2017 तक खंडवा के पंडाना गांव में आदिवासी महिलाओं के आर्थिक व सामाजिक उत्थान के लिए काम किया। इसी दौरान उन्होंने विदेशों में कृषि उत्पादों से बनने वाले मकानों का अध्ययन किया। भारत में खेतों में जला दी जाने वाली धान व गेहूं की भूसी पर शोध किया। भूसी में पर्यावरण फ्रेंडली केमिकल मिलाकर उन्होंने इसके बोर्ड तैयार कराने पर काम किया। आग, पानी, नमी, टाक्सिसिटी आदि पर परखकर इनमें कुछ और तकनीकी मिलाई गई। शोध के दौरान उन्होंने विदेशों में इस तकनीकी से घर बनाने वाले कुछ इंजीनियरों का भी सुझाव लिया और मॉडल तैयार कर बीते फरवरी महीने में हुए यूपी इन्वेस्टर्स समिट में प्रेजेंटेशन दिया। यूपी सरकार ने उन्हें गोरखपुर में यह उद्यम लगाने की मंजूरी दी है। श्रीति ने भी अपनी परियोजना यूनाइटेड नेशन को भेजी थी। यूएन ने दुनिया टॉप 200 वैज्ञानिकों में भारत से उन्हें भी चुना।

पुआल व धान की भूसी के बोर्ड से बन रहे इको फ्रेंडली मकान

गोरखपुर के एमजी इंटर कॉलेज परिसर में युवा इंजीनियर श्रीति पांडेय ने खेतों में जला दिए जाने वाले पुआल से बने बोर्ड से इको फ्रेंडली मकान का निर्माण कराया है। आगामी 6 अक्तूबर को सूबे के मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडेय खुद इस मकान को देखने पहुंचेंगे। सरकार की मंशा है कि गांवों में इसी तकनीक से प्रधानमंत्री आवास बनाए जाएं। धान-गेहूं के पुआल और भूसे से बनने वाले ईको फ्रेंडली मकानों की यूरोप के देशों में धूम हैं।

अमेरिका से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाली श्रीति पांडेय एमजी इंटर कॉलेज के मैदान में मॉडल मकान का निर्माण कर रही हैं। मकान की दीवार भूसे और पुआल से बनी है। यह मकान रहने में आरामदायक भी होगा। श्रीति बताती हैं कि धान और गेहूं की कटाई के बाद किसान पुआल (पराली) को खेतों में ही जला देते हैं। इससे जमीन की उपजाऊ क्षमता तो खत्म होती ही है, इसका धुआं वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी है। केंद्र सरकार ने पुआल के उपयोग को लेकर कई जागरूकता अभियान चलाए हैं, लेकिन उसका ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। श्रीति का सपना साकार हुआ तो आने वाले दिनों में पुआल किसानों की आय का एक माध्यम बनने वाली है।



raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story