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ऐसे में कैसे सुधरेगी स्वास्थ्य व्यवस्था, जब जिलों में ही इलाज संभव नहीं
गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में क्षमता से कई गुना ज्यादा मरीज भर्ती होने से इस जिले और आसपास के इलाकों में स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) पर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
लखनऊ : गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में क्षमता से कई गुना ज्यादा मरीज भर्ती होने से इस जिले और आसपास के इलाकों में स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) पर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
इन यूनिटों की स्थापना ही इसी उद्देश्य से की गई कि इन्सेफेलाइटिस जैसे गंभीर मामलों में पीड़ित शिशुओं को तुरंत और पास में ही इलाज मिल सके।
एसएनसीयू 10-12 बेड का होता है जिसमें चार डॉक्टर और दस-बारह नर्सें 24 घंटे तैनात होनी चाहिए और इनकी सेवा 24 घंटे मिलनी चाहिए। केंद्र सरकार ने जुलाई में कहा था कि देश भर में 700 एसएनसीयू चल रही हैं। लेकिन असल समस्या इन यूनिटों में इलाज और देखभाल की मॉनीटरिंग की है। अगर यूनिटें सही ढंग से चल रही हैं तो बड़ी तादाद में मेडिकल कॉलेज या बड़े अस्पतालों में मरीजों का आना सवाल ही खड़े करना है। कई जगह यूनिट हैं लेकिन स्टाफ 24 घंटे नहीं रहता, कई जगह मरीज भर्ती किए जाने की बजाए आगे रेफर कर दिए जाते हैं।
यही हाल इन्सेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटरों का है। यह सेंटर इसलिए खोले गए थे कि मरीजों को ब्लॉक स्तर पर ही इलाज मिल सके। गोरखपुर में 22, कुशीनगर में 15, बस्ती में 13 और देवरिया में 17 सेंटर हैं लेकिन सबके सब सिर्फ मरीजों को रेफर करने का ही काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी कमी डॉक्टरों की ही है।
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एसएनसीयू में सीलन से संक्रमण का खतरा
गोंडा : नवजात शिशुओं की सेहत और सुरक्षा पर विभागीय लापरवाही हावी है। जिला महिला अस्पताल में पुराने प्रसव कक्ष के दो कमरों को जोड़ कर बनाए गए एसएनसीयू में पुराना भवन होने के कारण सीलन रहती है, जिससे संक्रमण का खतरा बना रहता है। एसएनसीयू में 24 घंटे इलाज के लिए दस बेड हैं। जबकि प्राय: एक दर्जन से अधिक शिशुओं को यहां रखना पड़ता है। इन दिनों यहां पर एक बेड पर दो-दो बच्चे भर्ती हैं। चिकित्सकों का कहना है कि बेड की कमी के कारण कभी-कभी बच्चों के परिजन मारपीट करने पर अमादा हो जाते हैं।
कमरे में सीलन है और डॉक्टर इसे खतरनाक मानते हैं। यहां बच्चों के साथ आने वाले परिजनों को बैठने तक की कोई व्यवस्था नहीं है। अप्रैल 2016 से संचालित एसएनसीयू में सामान रखने के लिए कोई स्टोर नहीं हैं, जिससे वार्ड में ही सामान रखना पड़ता है। शौचालय भी नहीं है। इसके बावजूद यहां तैनात डॉक्टर और कर्मचारी 24 घंटे मुस्तैद रहते हैं। यूनिट की स्थापना के बाद अब तक डेढ़ हजार से अधिक बच्चे यहां भर्ती हो चुके हैं। स्टॉफ प्रभारी अखिलेश भारती ने बताया कि दवाएं और ऑक्सीजन सिलेंडर पर्याप्त मात्रा में हर समय उपलब्ध रहते हैं। एसएनसीयू के नोडल अधिकारी डॉ. राम लखन के अनुसार, मरीजों की संख्या को देखते हुए यहां पर कम से कम 24 बेड के साथ ही स्टाफ की तैनाती होनी चाहिए।
गोरखपुर : वर्ष 2005 में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 2 हजार से अधिक बच्चों की मौत के बाद केंद्र सरकार की मदद से तत्कालीन मायावती सरकार ने गोरखपुर समेत आसपास के 10 जिलों में इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज के लिए पिडियाट्रिक इंसेंटिव केयर यूनिट (पीकू) की स्थापना की थी। इसी क्रम में गोरखपुर जिला अस्पताल में भी वर्ष 2011 में 12 बेड के इंसेंटिव केयर यूनिट की स्थापना हुई थी। यहां ऑक्सीजन की सप्लाई सिलेंडर से होती है, जिसे जिला अस्पताल प्रशासन खरीदता है। वार्ड में लगे वेंटीलेटर और अन्य उपकरणों की देखरेख की जिम्मेदारी पुष्पा सेल्स के जिम्मे है। 12 बेड की यूनिट के लिए दो बाल रोग विशेषज्ञों के साथ अलग से पैरा मेडिकल स्टॉफ की तैनाती की गई है। लेकिन यहां भर्ती होने के बजाए मेडिकल कॉलेज को ही लोग तरजीह देते हैं। 16 अगस्त को भी ‘पीकू’ में 7 मरीज भर्ती थे।
इंसेफेलाइटिस के अलावा अन्य रोगों के गम्भीर बच्चों को भी इसी वार्ड में भर्ती किया जाता है। दूसरी ओर कमजोर पैदा होने वाले बच्चों के लिए साढ़े तीन करोड़ की लागत से बना 6 बेड का केयर यूनिट पूर्ण होने के बाद भी चालू नहीं हो सका है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. रविन्द्र कुमार का कहना है कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं हो इसको देखते हुए पहले से ही सिलेंडर की पूरी खरीद की जाती है। 6 बेड का इंसेंटिव केयर यूनिट भी कुछ दिनों में चालू हो जाएगा।
व्यवस्था चाकचौबंद
रायबरेली : सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में शिशु क्रिटिकल केयर (एसएनसीयू) वार्ड की व्यवस्था चाकचौबंद है। यहां पर नवजात बच्चों के लिए कंगारू मदर केयर यूनिट भी संचालित हो रही है। राजधानी लखनऊ के बाद रायबरेली ही प्रदेश का ऐसा जिला है जहां जिला अस्पताल के अलावा छह सीएचसी में कंगारू मदर केयर यूनिट संचालित है। महिला जिला अस्पताल में चल रहे एसएनसीयू यूनिट में 12 बेड हैं। यूनिट में तीन डॉक्टर और चार स्टॉफ नर्स तैनात हैं जो आठ घंटे की शिफ्ट में काम करते है। एसएनसीयू यूनिट में चार ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटेर लगे हैं जो वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन से काम करते हैं।
आपात स्थिति के लिए चार ऑक्सीजन सिलेंडर रखे रहते है। एसएनसीयू यूनिट की सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी आउटसोर्सिंग एजेंसी के जिम्मे है। इस यूनिट में भले ही अत्याधुनिक मशीनें लगी है लेकिन इसमें वेंटिलेटर की कमी भी है। सीएमओ डॉ. डी. के. सिंह का कहना है की रायबरेली की सभी सीएचसी में जल्द ही कंगारू मदर केयर यूनिट शुरू कर दी जाएगी।
ईटीसी का बुरा हाल
देवरिया : इस जिले में हर साल बारिश के मौसम में इन्सेफेलाइटिस का प्रकोप फैलने लगता है। इसी के मद्देनजर जिले में 17 इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) बनाये गये हैं। इनका उद्देश्य मरीज के पास में ही इलाज मुहैय्या कराना है। इंसेफेलाइटिस के मरीजों को चिन्हित कर उन्हें ईटीसी में भर्ती किया जाता है। यहां अब तक ऐसे 50० से ज्यादा मरीज लाये जा चुके हैं। ब्लाक स्तर पर बने ईटीसी की स्थिति काफी खराब है। रामपुर कारखाना प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर बने सेंटर की छत टपकती है जिससे यहां काफी सीलन है। छोटे से कमरे में दो बेड हैं। लेकिन जगह कम होने से दो मरीज भर्ती नहीं हो सकते हैं। दवा, आक्सीजन समेत अन्य उपकरण उपलब्ध हैं। सेनटर की स्थिति ऐसी है कि ज्यादातर मरीज आगे ही रेफर कर दिये जाते हैं।