एचआरडी मंत्रालय के आदेश की नहीं है जानकारी, कैसे हटेगा नन्हे कंधों से बोझ

raghvendra
Published on: 21 Dec 2018 11:32 AM GMT
एचआरडी मंत्रालय के आदेश की नहीं है जानकारी, कैसे हटेगा नन्हे कंधों से बोझ
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स्वाति प्रकाश

लखनऊ: काफी दिनों से बच्चों के स्कूल बैग का वजन बहस का विषय रहा है। पहली बार बच्चों के पाठ्यक्रम का बोझ कम करने की पहल की गयी है। करीब दो हफ्ते पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने स्कूलों को निर्देश दिया है कि पहली और दूसरी के बच्चों को होमवर्क न दिया जाए। साथ ही स्कूली बच्चों के बैग का वजन भी तय किया गया है। न्यूजट्रैक/अपना भारत ने शहर के कुछ नामचीन स्कूलों की पड़ताल की तो पता चला कि इन स्कूलों को अभी तक इस बाबत कोई जानकारी ही नहीं है। स्कूल प्रशासन तो क्या, अधिकांश अभिभावकों को भी इस फैसले के बारे में कुछ नहीं पता।

शहर के बड़े स्कूलों का यह है हाल

लखनऊ में छोटे-बड़े मिलाकर कुल 524 स्कूल हैं। इनमें सरकारी और गैर-सरकारी दोनों स्कूल शामिल हैं। इनमें से किसी भी स्कूल में अब तक मंत्रालय का आदेश नहीं पहुंचा है। इन स्कूलों के प्रिंसिपल का कहना है कि उन्हें सरकार के इस फैसले की कोई जानकारी नहीं है। साउथ सिटी स्थित एलपीएस स्कूल की प्रिंसिपल रश्मि पाठक से जब पूछा गया कि उनके स्कूल में इस फैसले को कब लागू किया जाएगा तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसके बारे में कुछ पता नहीं है। खबर फैलाना तो मीडिया का काम है, आप लोग इस बारे में लोगों को जागरूक करें।

हमारे यहां अभी तक सीबीएसई की तरफ से कोई नोटिस नहीं आया है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर मंत्रालय ने ऐसा फैसला दिया है तो उसे स्कूलों के पाठ्यक्रम को कम करने की भी व्यवस्था करनी चाहिए। डीपीएस स्कूल की प्रिंसिपल दीप्ति द्विवेदी ने भी मामले की जानकारी न होने का हवाला दिया। सेंट फ्रांसिस स्कूल के प्रिंसिपल फादर एल्विन ने कहा कि उनके पास बोर्ड की तरफ से ऐसा कोई नोटिस नहीं आया है और न ही उन्हें इस फैसले के बारे में पता है। कैथेड्रल के प्रिंसिपल फादर पॉल रोड्रिग्स को भी स्कूल बोर्ड की तरफ से कोई नोटिस नहीं मिला। सेंट पॉल्स और लोरेटो कान्वेंट स्कूल में भी सरकार की तरफ से कोई नोटिस नहीं पहुंचा है। ऐसे में स्कूल प्रशासन नियमों में कोई बदलाव नहीं कर पाए हैं।

अभिभावक तक फैसले से अनजान

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि फैसले से बच्चों के माता पिता ही अनभिज्ञ हैं। अलग-अलग स्कूलों में जब बच्चों के माता पिता से पूछा गया कि उनके बच्चों के बैग का वजन कम किया गया या नहीं, तो उन्होंने उल्टा सवाल दाग दिया कि यह आदेश कब आया। नर्सरी क्लास के एक बच्चे के पिता ने कहा कि उन्हें अभी तक इस आदेश की कोई जानकारी नहीं है, अब वह स्कूल प्रशासन से जरूर इस विषय में पूछताछ करेंगे।

जब मां-बाप से इस बारे में पूछा गया तो केवल कुछ ने ही इस मामले की जानकारी होने की बात कही। अधिकतर माता-पिता अभी तक इस फैसले से पूरी तरह अनजान हैं। सवाल यह है कि जब बच्चों के अभिभावक ही इस बात से अनजान हैं तो स्कूल प्रशासन की जवाबदेही कैसे होगी।

क्या है स्कूल बैग का मौजूदा वजन

अलग-अलग स्कूलों के बच्चों के स्कूल बैग का वजन नापा गया तो यह तय मानक से कहीं ज्यादा निकला। नर्सरी के बच्चे के बैग का वजन तीन से चार किलो है। यह वजन इतना ज्यादा है कि मां-बाप को बच्चों का बैग लादकर स्कूल के अंदर तक जाना पड़ता है। हालांकि कई स्कूलों में अभिभावकों को अंदर जाने की इजाजत नहीं है। ऐसे में छोटे बच्चे अपने भार जितना बैग टांगकर क्लास तक पहुंचते हैं। लोरेटो कान्वेंट में तीसरी क्लास में पढऩे वाली अंशिका के बैग का वजन करीब 8 किलो है।

अंशिका की मां ने बताया कि उसकी क्लास तीसरी मंजिल पर है। इतना भारी बैग टांगकर उसे तीसरी मंजिल तक चढऩा पड़ता है जिससे उसकी पीठ में दर्द रहने लगा है। उनका कहना है कि भारी बैग उठाने से उनकी बेटी की लम्बाई भी नहीं बढ़ रही है। 9वीं में पढऩे वाले एलपीएस के ऋतुराज का बैग भी करीब 9 से 10 किलो का है। रोज साइकिल से स्कूल आने वाले ऋतुराज ने बताया कि बैग में बहुत ज्यादा किताबें होने की वजह से बैग को कैरियर में भी नहीं बांधा जा सकता। ऋतुराज ने बताया कि वह इतना थक जाते हैं कि शाम को घर के पास होने वाली फुटबॉल प्रैक्टिस में भी नहीं जा पाते।

हिंदी मीडियम और सरकारी स्कूलों में स्थिति थोड़ी बेहतर

हिंदी मीडियम और सरकारी स्कूलों का हाल प्राइवेट स्कूलों से थोड़ा बेहतर है। शहर के कई सरकारी और हिंदी मीडियम स्कूलों का जायजा लेने पर पता चला कि यहां के छात्रों का बैग बाकी स्कूलों से थोड़ा हल्का है। कैंट स्थित संस्कृत पाठशाला जूनियर हाईस्कूल के नर्सरी के बच्चे का स्कूली बैग करीब 1.5 से 2 किलो का था। वहीं 8वीं के बच्चे का बैग 5 से 5.50 किलो था। यहां की प्रिंसिपल उषा कुमार ने बताया कि उन्हें शासन की तरफ से कोई नोटिस नहीं मिला है, लेकिन उन्हें समाचार पत्रों से इसकी सूचना मिली थी। तबसे वह बच्चों के बैग के वजन को लेकर थोड़ी सख्त हैं। हालांकि उन्होंने बताया कि छोटा स्कूल होने के कारण यहां कोई भी अतिरिक्त किताबें नहीं मंगवाई जातीं। बच्चों के बैग ट्यूशन की किताबों की वजह से भारी हो जाते हैं। अब उन्होंने क्लास टीचरों को हिदायत दी है कि बच्चों के बैग पर नजर रखें ताकि वह स्कूल के अलावा कोई अन्य किताबें न लाएं।

सदर के प्राथमिक पाठशाला में भी बच्चों के बैग का वजन बाकी जगहों से काफी कम है। यहां आने वाले बच्चों ने बताया कि वह आसानी से घर से बैग टांगकर आते हैं। उन्हें 4 से 5 किताबें ही लानी पड़ती हैं। यहां की प्रिंसिपल संध्या भटनागर ने बताया कि उनके यहां काफी गरीब बच्चे पढ़ते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति को देखते हुए किसी भी बच्चे से कोई अन्य किताब नहीं मंगवाई जाती। ऐसे में उनके बैग का वजन ज्यादा नहीं होता। आनंद बाल विद्या मंदिर और आदर्श भारतीय विद्यालय में भी बच्चों के बैग तय मानक से ज्यादा भारी नहीं हैं।

हालांकि गोमतीनगर के केंद्रीय विद्यालय में नजारा कुछ अलग था। यहां के प्रिंसिपल सी.बी.पी. वर्मा ने कहा कि उन्हें एचआरडी मिनिस्ट्री के आदेश की कोई जानकारी नहीं है, न ही उन्हें कोई लिखित आर्डर मिला है। उन्होंने कहा कि उनके स्कूल में केवल एनसीआरटी की प्रस्तावित किताबें चलती हैं। हर विषय की केवल एक किताब है। प्राइवेट स्कूलों की तरह उनके यहां बाजार से कोई किताब नहीं मंगवाई जाती। इसलिए बच्चों के बैग ज्यादा भारी नहीं हैं। हालांकि बच्चों के बैग का वजन कुछ और ही कहता है। यहां पर नर्सरी के बच्चे का बैग करीब 5 से 6 किलो है, वहीं 8वीं के बच्चे का बैग 8 से 9 किलो है। इंटर की लड़कियों के बैग का वजन 12 से 13 किलो है। हकीकत प्रिंसिपल साहब के बयान से काफी अलग है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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