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UP Bulldozer Action: क्या अधिकारियों की मिलीभगत से होता है अवैध निर्माण? बुलडोजर एक्शन पर हाईकोर्ट सख्त!

UP Bulldozer Action: पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश से शुरू हुई बुलडोज़र निति को देश के अलग अलग कोने में अपनाया जाने लगा, कुछ लोगों ने इसका समर्थन किया तो वहीँ कईयों ने इसका विरोध भी किया, बुलडोज़र निति को चुनाव भी भी खूब भुनाया गया।

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Newstrack Network
Published on: 4 Dec 2024 2:09 PM IST
UP Bulldozer Action: क्या अधिकारियों की मिलीभगत से होता है अवैध निर्माण? बुलडोजर एक्शन पर हाईकोर्ट सख्त!
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बुलडोजर एक्शन पर हाईकोर्ट सख्त!  (photo: social media )

UP Bulldozer Action: उत्तर प्रदेश की बुलडोज़र निति ने राजनीति में भी अहम् जगह बना ली है। बुलडोज़र निति का मुद्दा एक बार फिर तब गर्म हो गया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच ने अवैध निर्माण के एक मामले में लखनऊ विकास प्राधिकरण से उन अधिकारीयों का ब्यौरा मांग लिया जिनपर इस अवैध निर्माण को रोकने की जिम्मेदारी थी। अब खबरें आम हो चली है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध में शामिल पाया जाता है तो उसके बाद उसके अवैध निर्माण भी सामने आ जाते हैं जिसपर बुलडोज़र चला दिया जाता है, इसका मतलब तो स्पष्ट है कि जिस क्षेत्र में वो अवैध निर्माण हुआ वहां सम्बंधित अधिकारीयों ने उसे होने दिया और तब तक सोते रहे हैं जब तक वो व्यक्ति किसी अपराध में लिप्त नहीं हो गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच का यह मामला किसी अपराधी व्यक्ति के संपत्ति से सम्बंधित नहीं लेकिन बुलडोज़र निति पर बड़ा सवाल जरुर है।

क्या है पूरा मामला?

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचियों की ओर से दलील दी गयी है कि उन्होंने पाम पैराडाइज के बिल्डर से रो हाउस खरीदें और परिवार के साथ वहां रहते हैं। उनका कहना है कि इस प्रॉपर्टी को खरीदने से पहले उन्होंने लखनऊ विकास प्राधिकरण यानि LDA में इसके बारे पता भी किया तो वहां उन्हें मौखिक रूप से बताया गया कि निर्माण में किसी प्रकार की अनियमितता नहीं है। LDA की इस जानकारी पर विश्वास कर के उन सभी लोगों ने रो हाउस खरीद लिया और परिवार के साथ रहने लगे लेकिन अब LDA का कहना है कि इस सोसाइटी का ले आउट पास नहीं है और इस निर्माण को गिरा दिया जायेगा। याचियों का कहना है कि वे परिवार समेत इन घरों में रह रहे हैं, लिहाजा वे प्रशमन के लिए आवेदन दे सकते हैं।


हाईकोर्ट ने क्या कहा?

जब यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में न्यायमूर्ति राजन राय व न्यायमूर्ति बीआर सिंह की खंडपीठ के पास पहुंचा तो उन्होंने इसपर सख्त टिप्पड़ी करते हुए कहा कि पाम पैराडाइज सोसाइटी में रो-हाउस के अवैध निर्माण के मामले में लखनऊ विकास प्राधिकरण यानि LDA के उन अधिकारियों को क्यों न जिम्मेदार ठहराया जाए जिन पर इस अवैध निर्माण को रोकने की जिम्मेदारी थी। न्यायालय ने पाम पैराडाइज सोसाइटी के घरों के धवस्तीकरण पर भी अंतरिम रोक लगाते हुए लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी से उन अधिकारीयों का ब्यौरा मांग लिया जिनपर इस अवैध निर्माण को रोकने की जिम्मेदारी थी।

वहीँ न्यायमूर्ति राजन राय व न्यायमूर्ति बीआर सिंह की खंडपीठ ने जब LDA के अधिवक्ता से इसपर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि इन घरों के निर्माण सरकारी जमीन पर नहीं हुए हैं और वहां पर कोई अतिक्रमण भी नहीं है लेकिन पाम पैराडाइज के बिल्डर ने बिना संस्तुति के रो-हाउस का निर्माण किया है। पाम पैराडाइज वेलफेयर सोसाइटी व 11 अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राजन राय व न्यायमूर्ति बीआर सिंह की खंडपीठ ने कहा कि याचियों की स्थिति को देखते हुए प्रशमन प्रक्रिया पर सहानुभूति पूर्वक विचार किया जाए। उन्होंने कहा है कि इस आदेश का कोई लाभ पाम पैराडाइज के बिल्डर को नहीं मिलेगा और उसके खिलाफ चल क़ानूनी प्रक्रिया में इस आदेश से कोई राहत नहीं मिलेगी। यह आदेश सिर्फ याचियों के लिए है जो बिल्डर व संभवतः एलडीए के कुछ अधिकारियों के द्वारा धोखा दिए जाने की वजह से इस परिस्थिति में हैं। अब इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी माह के दूसरे सप्ताह में होगी।


सुप्रीम कोर्ट ने भी बुलडोज़र निति पर चलाया था हथौड़ा

पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश से शुरू हुई बुलडोज़र निति को देश के अलग अलग कोने में अपनाया जाने लगा, कुछ लोगों ने इसका समर्थन किया तो वहीँ कईयों ने इसका विरोध भी किया, बुलडोज़र निति को चुनाव भी भी खूब भुनाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इन तमाम पहलुओं का ध्यान रखते हुए न केवल बुलडोजर निति की इस प्रवृत्ति को खारिज कर दिया बल्कि उन आधारों को भी स्पष्ट कर दिया जिससे इस बात की पहचान होती है कि प्रशासन ने कब अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब किसी खास निर्माण को अचानक निशाना बना लिया जाता है और उस जैसे दुसरे निर्माणों को छुआ तक नहीं जाता तो ऐसा प्रतीत होता है कि कार्रवाई का असल मकसद किसी आरोपी को बिना मुकदमा चलाए सजा देना है। शीर्ष कोर्ट ने यह तक कह दिया कि अगर किसी का घर इस तरह की प्रक्रिया से तोड़ा जाता है तो उसे फिर से बनाने का खर्च संबंधित ऑफिसरों के वेतन से काटा जाएगा। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक स्थलों जैसे सड़क, फुटपाथ, रेलवे लाइन आदि पर बने अवैध निर्माण इन निर्देशों के दायरे में नहीं आएंगे।


अधिकारीयों की लापरवाही से उजड़ जाते हैं परिवार

एक घर का सपना कौन नहीं देखता। हर मिडिल क्लास और गरीब तबके का एक ही तो सपना होता है कि उसका अपना घर हो। वो अपने खून पसीने की कमाई को इकठ्ठा कर के एक मकान बनाता है और फिर उसी को एक झटके में गिरा दिया जाता है। सारी संवेदनाएं और मानवता को तार तार कर लापरवाह अधिकारी मलाई काटते नज़र आते हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर निर्माण अवैध है तो उसे होने ही क्यों दिया गया? क्या इन अधिकारीयों के घर पर कोई कब्ज़ा करेगा तो ये होने देंगें? तो फिर जिस नौकरी से इनका घर चलता है उसे ये इमानदारी से क्यों नहीं करते? अगर ये सजग रहे तो व्यक्ति किसी बिल्डर के झांसे में ना फसे। अगर ये आमजन को सही जानकारी आसन भाषा और व्यवस्था में दें तो अवैध संपत्ति को कोई नहीं खरीदेगा। यदि ये लापरवाह अधिकारी अवैध निर्माण होने से ही रोक दें तो बुलडोज़र चलाने की नौबत ही नहीं आएगी। इनकी लापरवाही से न केवल किसी का परिवार उजड़ता है बल्कि सरकार के राजस्व को भी नुकसान पहुँचता है खैर अब तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ऐसे अधिकारीयों का ब्यौरा ही मांग लिया है।





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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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