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इंडियन रेलवे में बदलाव की बयार, कुप्रबंधन पर लगेगी रोक
नीलमणि लाल
लखनऊ: रेलवे स्टेशनों पर अव्यवस्था, प्लेटफार्मों से लेकर ट्रेनों तक में भीड़, गंदगी, रेलकर्मियों द्वारा घूसखोरी, कामचोरी, दुर्घटनाएं, ट्रेनों की लेटलतीफी वगैरह तरह-तरह की शिकायतें आम हैं। मोदी सरकार रेलवे में बदलाव के रास्ते पर तेजी से काम कर रही है और जल्द ही बड़े बदलाव नजर भी आएंगे। मोदी सरकार के १०० दिनी एक्शन प्लान के तहत कई फैसले लिए गए हैं जिनका समयबद्ध तरीके से क्रियान्वयन किया जाएगा। भले ही समय लगे लेकिन इनका लाभ आने वाले समय में अवश्य ही महसूस होगा। इन फैसलों में रेलवे के कई अंगों का निगमीकरण, आंशिक निजीकरण, कार्यसंस्कृति में बदलाव आदि शामिल हैं। दरअसल रेलवे के प्रोजेक्ट्स को लागू करने के लिए जितने पैसे की जरूरत है उसके लिए निजी क्षेत्र निवेश लाना ही होगा।
आरआईसीटीसी
भारतीय रेल की सहायक कंपनी इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन या आईआरसीटीसी अपने शेयर बेचने (आईपीओ) के लिए आवेदन कर दिया है। आईआरसीटीसी भारतीय रेलवे के टिकट बेचने और खान-पान सेवाओं का प्रबंधन करती है। सरकार की योजना आईपीओ के जरिए आईआरसीटीसी के 2 करोड़ शेयर बेचने की है, जिससे 500-600 करोड़ रुपये जुटाये जा सकते हैं। आईपीओ में इतने शेयरों की बिकवाली से आईआरसीटीसी में सरकार की करीब 12.5 फीसदी हिस्सेदारी घट जायेगी।
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आईआरसीटीसी का व्यवसाय चार हिस्सों में बंटा हुआ है, जिनमें इंटरनेट टिकटिंग, खान-पान, रेल नीर ब्रांड के तहत पीने का पानी और यात्रा तथा पर्यटन शामिल है। आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 के मुकाबले 2018-19 में आईआरसीटीसी का मुनाफा 23.5 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 272.5 करोड़ रुपये और आमदनी 25 फीसदी बढ़ कर 1,899 करोड़ रुपये रही थी। अप्रैल 2017 में केंद्र सरकार ने पांच रेलवे कंपनियों की लिस्टिंग को मंजूरी दी थी, जिनमें इरकॉन इंटरनेशनल, राइट्स, रेल विकास निगम, आईआरएफसी और आईआरसीटीसी शामिल हैं। इनमें से इरकॉन इंटरनेशनल और राइट्स वित्तीय वर्ष 2018-19 में बाजार में अपनी शुरुआत कर चुकी हैं।
निजी क्षेत्र को ट्रेनें
मोदी सरकार के दूसरे टर्म में रेल मंत्री पियूष गोयल ने योजना पेश की थी कि निजी कंपनियों को चुनिंदा रूटों पर ट्रेनें चलाने की इजाजत दी जाए। यह भी प्रस्ताव दिया गया कि भारतीय रेलवे की रोलिंग स्टॉक निर्माण इकाईयों को मिला कर उनका निजीकरण कर दिया जाए। बिबेक देबरॉय कमेटी ने २०१५ में सुझाव दिया था कि भारतीय रेलवे का निगमीकरण कर दिया जाए व निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए।
तवांग तक जाएगी ट्रेन
भारतीय रेलवे अरुणाचल प्रदेश तक कनेक्टिविटी बढ़ाने जा रहा है। अरुणाचल में भालुकपोंग - तेंगा - तवांग की ३७८ किमी लंबी लाइन, नॉर्थ लखीमपुर - बामे - आओलो - सिलापथार की २४७.८५ किमी लंबी लाइन और पासीघाट - तेजू - परसुरामकुंड - रुपाई की २२७ किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन बिछाने का प्रस्ताव है। इन लाइनों से उत्तरी व पूर्वी अरुणाचल प्रदेश की कनेक्टिविटी बेहतर हो जाएगी। सबसे पहले भालुकपोंग - तेंगा - तवांग लाइन पर काम चल रहा है क्योंकि ये सामरिक दृष्टिï से बेहद महत्वपूर्ण है। अरुणाचल में ज्यादातर लाइनें १० हजार फुट की ऊंचाई पर होंगी और ८० फीसदी लाइन सुरंगों से हो कर गुजरेगी। रेलवे से सुरंगों के भीतर दो लाइन की सडक़ बनाने का भी सुझाव दिया है।
भ्रष्ट व नाकारा कर्मियों की छुट्टी
भारतीय रेलवे से ५५ वर्ष से ज्यादा की उम्र के नाकारा कर्मचारियों को कंपलसरी रिटायरमेंट दिया जाएगा। ५५ वर्ष व इससे ज्यादा के उम्र के जो कर्मचारी परफार्मेंस रिव्यू को पास नहीं कर पाएंगे उनकी छुट्टी कर दी जाएगी। रिव्यू प्रोसेस सितम्बर में शुरू होगा व इस वित्त वर्ष के अंत में पूरा हो जाएगा। २७ जुलाई को रेल मंत्रालय द्वारा जारी सर्कुलर में हालांकि कोई टारगेट तय नहीं किया गया है लेकिन माना जा रहा है कि साल भर के भीतर एक लाख कर्मचारियों की छुट्टी की जा सकती है। दरअसल मार्च २०१७ की एक आंतरिक स्टडी ने रेलवे के कुल स्टाफ में एक फीसदी की कमी करने की सिफारिश की थी। इससे सालाना ३ अरब रुपए की बचत होगी। रिपोर्ट के अनुसार २०१६ में भारतीय रेलवे के कुल खर्चे में ६३ फीसदी वेतन पर खर्च किया गया था। खर्चे में कमी करने की रणनीति के तहत सीनियर कर्मचारियों के लिए वीआरएस लाने की बात कही गई है। पहले भी कई कमटियां स्टाफ में कमी करने और रेलवे की सेवाओं को अलग-अलग करने की सिफारिश कर चुकी हैं। इनका उद्देश्य रेलवे में पेशेवराना रवैया लाना है।
मिशन 2022 : सौ फीसदी विद्युतीकरण
भारतीय रेलवे की योजना सन २०२२ तक पूर्ण विद्युतीकरण की है। जैसे जैसे विद्युतीकरण का काम बढ़ता जा रहा है रेलवे डीजल इंजनों को सेवा से हटाता जा रहा है। बिजली की ट्रेनों से न सिर्फ डीजल खर्च में बड़ी कमी आएगी बल्कि प्रदूषण पर भी कंट्रोल पाया जा सकेगा। डीजल इंजनों का इस्तेमाल घटाने के उद्देश्य से रेलवे बोर्ड ने सभी जोनों से कहा है कि वे ३१ साल पुराने डीजल इंजनों को चरणबद्ध तरीके से सेवा से हटा दें।