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सुधर नहीं रहा हाल-ए-उप्र राज्य औदयोगिक विकास निगम

raghvendra
Published on: 28 Dec 2018 9:42 AM GMT
सुधर नहीं रहा हाल-ए-उप्र राज्य औदयोगिक विकास निगम
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राजकुमार उपाध्याय

लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सुशासन से भरे हुए अल्फाज उप्र राज्य औदयोगिक विकास निगम (यूपीएसआईडीसी) के अफसरों पर बेअसर हैं। अधिकारियों के प्रमोशन में हेराफेरी से लेकर आउटसोर्सिंग के जरिए भर्ती में भ्रष्टाचार के कीचड़ निगम की साख को दागदार कर रहे हैं। अहम कामों में गैर सरकारी व्यक्तियों यानी बाहरी लोगों का प्रभाव बढ़ा है।

ऐसा भी नहीं कि निगम के काम काज का यह भ्रष्टाचारी अफसाना नया हो। पिछली सरकारों में भी अधिकारियों की मनमानी ही चलती थी। भाजपा सरकार बनने के बाद भ्रष्टों पर लगाम की उम्मीद जगी थी जो दिन ब दिन धुंधला रही है।

...तो ऐसे हो रही कामों में गड़बड़ी

निगम के अफसरों पर अनाधिकृत रूप से बाहरी व्यक्तियों से काम कराने का भी आरोप है। यूं तो क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर में निर्धारित संख्या में सहायक तैनात हैं फिर भी आउटसोर्सिंग कर्मियों और बाहरियों को अफसर तवज्जो दे रहे हैं। निगम सेवा नियमावली के मुताबिक सहायक के पद पर नियुक्ति के लिए टाइपिंग का ज्ञान जरूरी है। पर क्षेत्रीय प्रबंधक कानपुर की तरफ से सहायकों को भी टंकण सहायक उपलब्ध कराने की नई प्रथा चल पड़ी है। उन पर आरोप है कि उन्होंने आउटसोर्सिंग पर नियुक्त किए जाने की संस्तुति प्राप्त कर ‘ख़ास’ लोगों को नियुक्त कर लिया है।

आउटसोर्सिंग के जरिए तैनात नितिन सिंह पर भी अनियमितता के आरोप लगे हैं। इस बाबत की गई जांच में उप प्रबंधक आशीष नाथ ने कहा है कि निगम में 2004 से टीसीएस के साफ्टवेयर से काम किया जा रहा है। पर कुछ ही सहायकों को इस पर काम करने का ज्ञान है। हर कक्ष में यह साफ्टवेयर उपलब्ध कराया गया है। सहायकों को इस पर काम करने के लिए प्रेरित भी किया गया। पर अधिकतर सहायकों द्वारा साफ्टवेयर पर काम नितिन सिंह से कराना ही उचित पाया गया। उधर निगम के कर्मचारियों का कहना है कि निगम में औदयोगिक क्षेत्र का काम ईएनवाई साफ्टवेयर द्वारा आनलाइन कर दिया गया है और क्षेत्रीय कार्यालय, कानपुर में सिर्फ टीसीएस साफ्टवेयर पर लेखा कार्य ही किया जाता है। पर 2016 से यहां तैनात कर्मियों का वेतन एरियर अभी तक नहीं बनाया गया है। उनका आरोप है कि नितिन सिंह समेत अन्य आउटसोर्सिंग कर्मियों का भ्रष्ट अफसर आवंटन जैसे कामों में हो रही अनियमितता में अहम इस्तेमाल करते हैं।

आरोप यह भी है कि निगम के लेखाकार दिनेश सोनकर द्वारा प्रबंध निदेशक और महाप्रबंधक (विधि) के आदेश की अवहेलना करते हुए विधि प्रकरण में बाहरी अधिवक्ता को 1.5 लाख की धनराशि का भुगतान किया गया है। इस तरह निगम के अधिकारी अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए मनमाने भुगतान कर रहे हैं।

बाहरी व्यक्ति के काम की शिकायतें झूठी

प्रमुख सचिव औदयोगिक विकास राजेश कुमार सिंह ने बाहरियों के निगम में काम करने की शिकायतों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि ऐसी शिकायतें झूठी हैं।

आरोपी को लाभ, मोनिका को 9 साल से प्रमोशन का इंतजार

निगम में भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारियों को मलाईदार कुर्सी से नवाजा जा रहा है। मिसाल के तौर पर वर्ष 2009 में प्रमोशन के लिए पांच सदस्यीय कमेटी की बैठक हुई। इसमें हिमांशू मिश्रा को उप प्रबंधक (सामान्य) से प्रबंधक (सामान्य) के पद पर प्रमोशन के लिए अपात्र माना गया था क्योंकि उनके खिलाफ एसआईटी जांच चल रही थी। इसलिए इनके प्रमोशन की संस्तुति मोहर बंद सील लिफाफे में रखे जाने की बात तय की गई। शर्त थी कि यदि यह एसआईटी जांच में दोष मुक्त हो जाते हैं तभी इनका प्रमोशन किया जाएगा. इनके स्थान पर मोनिका कुमार उप प्रबंधक (सामान्य) को स्थानापन्न पर प्रबंधक (सामान्य) के पद पर प्रमोशन की संस्तुति की गई। हैरत की बात है कि एसआईटी जांच की रिपोर्ट आए बिना ही नियमों को दरकिनार कर तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने हिमांशू का 2009 में ही प्रबंधक सामान्य के पद पर प्रमोशन कर दिया। जबकि उनके खिलाफ चल रही एसआईटी जांच की रिपोर्ट वर्ष 2013 में आई। जिसमें कहा गया है कि उनका कृत्य राजकीय कार्य के निष्पादन में लापरवाही और उदासीनता दर्शाता है। इनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही किए जाने की संस्तुति की गई है। जबकि मोनिका कुमार पिछले 9 वर्षों से प्रमोशन का इंतजार कर रही हैं। इसकी शिकायत भी प्रमुख सचिव औदयोगिक विकास से की गई है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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