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मोहर्रम पर सड़को पर खून बहते तो बहुत देखा होगा, लेकिन इस बार जो हुआ उसकी नहीं थी उम्मीद
देश में जहां एक और फिरकापरस्त ताकतें हिंदू और मुसलमानों के बीच में विभिन्न माध्यमों से नफरत के बीज बोने में लगी है। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो कौमी एक जहती की एक नई मिसाल पेश कर रहे हैं। ऐसी ही एक मिसाल पेश की हरदोई के मुस्लिम लोगों ने।
हरदोई: देश में जहां एक और फिरकापरस्त ताकतें हिंदू और मुसलमानों के बीच में विभिन्न माध्यमों से नफरत के बीज बोने में लगी है। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो कौमी एक जहती की एक नई मिसाल पेश कर रहे हैं। ऐसी ही एक मिसाल पेश की हरदोई के मुसलमानों ने।
कुछ लोगों ने मोहर्रम के पाक महीने में हजरत इमाम हुसैन की शहादत दिवस के अवसर छुरियों के मातम करने पर बहने वाले खून की एक बूंद भी जाया नहीं होने दी। इसी खून को दान करके ब्लड डोनेशन कैंप लगाया गया। जहां सैकड़ों शिया और सुन्नी समुदाय के लोगों ने अपना खून देकर लोगों की जान बचाने में अपना अहम योगदान दिया।
मुसलमानों के लिए हैं बेहद अहम
मोहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए बेहद अहम होता है। यह सिर्फ इसलिए अहम नहीं होता कि इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत मुहर्रम के महीने से होती है बल्कि इस महीने को शहादत का महीना कहा जाता है। गम का महीना कहा जाता है, इस महीने की 10 तारीख को पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के नवासों ने इंसानियत के ख़ातिर शहीद हो गए।
लिहाजा मुस्लिम समुदाय पूरे ही महीने गम के साथ मनाते हैं। मुसलमनो का एक फिरका शिया हजरात मोहर्रम की 7 और विशेषकर 10 तारीख जिस दिन हजरत इमाम हुसैन को शहीद किया गया था उस दिन मातम करते हैं, और तलवारों से कमा लगाते हैं यानी सर को काटते हैं पीठों पर छुरियां चलाते हैं जिससे इनका बहुत ज्यादा खून जमीनों पर फैलता है। जिस रोडों से ये मातम गुज़रता है वो लहू से लाल हो जाती है।
गम जाहिर करने का यह सिलसिला यजीद से जंग के दौरान शहीद हुए ईमाम हुसैन की शहादत के बाद से चला आ रहा है। सिर्फ भारत मे ही नहीं बल्कि दुनिया के हर उस मुल्क मे जहां मुस्लिम है इस महीने को बड़े अदब और एहतराम से मनाता है। ये रिवाज साल दर साल पुराना है और हमेशा की तरह यह बराबर चला रहा है, लेकिन इस बार हरदोई में एक चौका देने वाला वाकया सामने आया।
युवाओं ने और महिलाओं ने सराहा
जब हिंदू समुदाय के एक ब्राह्मण वकील ने अपने साथ कचहरी में मुस्लिम समुदाय के वकील को समझाया और मातम के दौरान जो खून जमीनों में बह जाता है और बेकार हो जाता है यह किसी की रंगों में काम आ सकता है, इंसानियत के काम आ सकता है। ऐसा समझाने पर वकील ने इस बात को अपनी कम्युनिटी में आगे बढ़ाया। जिसके बाद समर्थन और विरोध दोनों हासिल हुए। लेकिन 21वीं सदी के इस युग में लोगों ने खासकर युवाओं ने और महिलाओं ने इस कदम को सराहा। इस बार होने वाले मातम में तलवार की मातम और कमा लगाने से परहेज करने की बात कही और वह खून इंसानियत के काम आ सके इसलिए सभी ने रक्तदान किया जो अपने आप में बड़ा मिसाल बना हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिया संदेश
एक छोटे से जिले से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक संदेश दिया गया है। जाहिर तौर पर सदियों से चले आ रहे धर्म और आस्था की इन बेड़ियों से आजाद होकर लोगों ने नई रवायत शुरू की है। जहां के लोगों ने सिद्ध कर दिया कि लहू बहाने से नहीं बल्कि किसी की रंगों में जब दौड़ेगा तब ही इसका असली मकसद सिद्ध होगा।
एडवोकट विकास मिश्रा का क्या कहना है?
दरअसल, विकास मिश्रा जो पेशे से वकील है अपने साथ कचहरी में बैठने वाले साथी दोस्तों सईद अख्तर और कमर अब्बास जैदी से बातों-बातों में मोहर्रम में होने वाले मातम को लेकर ज़िक्र छिड़ा और जो उनके दिल में था उन्होंने बया कर दिया। बात सदियों से चली आ रही धर्मिक परम्परा से अलग थी, लेकिन इरादा नेक था इंसानियत के हक़ में था लिहाज़ा अख्तर साहब और जैदी सोचने पर मजबूर हो गए |
धर्मगुरु मौलाना मोहम्मद नईम ने क्या कहा?
बात निकली तो दूर तलक गयी, लिहाजा मुस्लिम समुदाय के बीच ये बात जब रखी गयी तो काफी विरोध हुआ, लेकिन कहासुनी गहमागहमी के बीच जब युवा सामने आए तो पुराने रस्म रिवाज पीछे सरक गए और फिर जो फैसला हुआ चौंका देने वाला था | क्योंकि ये फैसला दुनिया के हर मुल्क से अलग और नज़ीर पेश करने वाला था।
क्या कहना है डॉक्टर का?
डॉक्टर फराज रिजवी का कहना है कि सिर्फ युवाओ ने ही नहीं बल्कि महिलाओं ने भी इस बात का समर्थन किया और 9वीं मोहर्रम को अस्पताल में गरीबों को फल बांटने के बाद पुलिस लाइन में ताज़ियों के पास कैंप लगा कर रक्तदान किया। जिससे उनका लहू इंसानियत के काम आ सके। इसमें महिलाओं भी रक्तदान कर नज़ीर कायम की।
एक छोटे से जिले से निकला ये पैगाम कई मुल्कों में निश्चित तौर पर न सिर्फ सराहा जाएगा बल्कि औरो को भी इंसानियत की तरफ बढ़ने को प्रेरित करेगा। क्योंकि खुदा कभी नहीं चाहता कि कोई भी बंदा तकलीफ में रहे। लिहाजा जमीनो में बरबाद होने वाला बेशकीमती लहू किसी की रगो में दौड़कर ताजिंदगी दुआओ और सवाब का न सिर्फ सबब बनेगा बल्कि मोहर्रम के असली मायने को भी साबित करेगा |