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भारतीय कैदियों के जीवन बदलता ब्रांड "इनमेट"

Mayank Sharma
Published on: 24 Jan 2020 1:03 PM GMT
भारतीय कैदियों के जीवन बदलता ब्रांड इनमेट
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मुंबई। पिछले दिनों हमारी मुलाकात हुई युवा उद्यमी दिवेज मेहता के साथ। दिवेज मेहता टेर्गस वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक हैं और इनमेट ब्रांड के उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले जूते चप्पलों का निर्माण करते हैं। लेकिन इसमें वो नया क्या करते हैं ? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उनके इनमेट ब्रांड के जूते चप्पलों की मैन्यूफैक्चरिंग इकाई किसी इंडस्ट्रियल एरिया या बिज़नेस एरिया में न होकर सेंट्रल जेलों में है। उन्होंने अपनी पहली मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट महाराष्ट्र के येरवडा जेल में लगाई थी। जबकि वे अपनी दूसरी इकाई चेन्नई के पूजहल जेल केंद्रीय कारागार में लगाने जा रहे हैं। आज पढ़िए Newstrack पर उन्हीं की व्यापारिक दास्तान।

युवा उद्यमी दिवेज मेहता की सोशल - बिज़नेस पहल इनमेट

भारत में अपनी स्नातक पढ़ाई करने के बाद दिवेज मेहता आगे की पढ़ाई के लिए सिंगापुर चले गए। सिंगापुर के मैनेजमेंट डेवेलपमेंट इंस्टिट्यूट से मार्केटिंग में एमबीए किया और भारत लौटकर टेर्गस वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड स्थापित की। दिवेज बताते हैं कि मैं किसी ऐसे बिज़नेस मॉडल की ही तलाश में था, जिससे कि व्यापार को आगे बढ़ाने के साथ साथ, समाज को भी कुछ लौटाया जा सके। दिवेज का मानना है कि परिवर्तन की शुरुआत खुद से ही होती है। और इन्हीं विचारों के साथ दिवेज ने अपने उद्यम को एक सोशल बिज़नेस मॉडल प्रदान किया है। वे इनमेट ब्रांड के जूते चप्पलों का निर्माण करते हैं, जिन्हें वे विदेशों में एक्सपोर्ट करने के साथ साथ भारतीय बाजारों में भी बेचते हैं।

येरवडा जेल में लगाई इनमेट ब्रांड की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट

सामाजिक बदलाव की इस सोच के साथ ही उन्होंने अपने इनमेट ब्रांड के जूतों एवं चप्पलों की निर्माण इकाई महाराष्ट्र के येरवडा जेल में शुरू की। उन्होंने येरवडा जेल के कुछ कैदी चुने, उन्हें प्रशिक्षित किया और धीरे धीरे यहीं अपनी पहली निर्माण इकाई लगा दी। दिवेज को उनके इस सोशल बिज़नेस मॉडल के लिए भारत सरकार से भी मदद प्राप्त होती रहती है। उनकी इन इकाईयों को नैशनल स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन के आधीन चमड़ा उद्योग के विकास के लिए काम कर रही संस्था लेदर सेक्टर स्किल कॉउन्सिल का सहयोग प्राप्त रहता है। उन्हें भारतीय जेलों में रह रहे कारावासियों के सशक्तिकरण हेतु हाल ही में केंद्रीय कौशल विकास मंत्री, डॉ महेंद्र नाथ पांडेय ने सम्मानित भी किया है।

"चेंज ऑफ़ सौल्स, विद सोल्स" उनके इनमेट ब्रांड फुटविअर्स की टैग लाइन है। दिवेज कहते हैं, हमने महात्मा गाँधी के कथन “पाप से नफरत करो, पापी से नहीं” से प्रेरणा लेते हुए सजायाफ्ता कैदिओं के लिए यह मुहिम शुरू की। और इसे आगे बढ़ाते जा रहे हैं। देश भर से हमको सामाजिक बदलाव की इस मुहिम के लिए सराहना भी मिलती रहती है। कई संस्थाओं ने विभिन्न मंचों पर हमें पुरस्कृत भी किया है।

चेन्नई की पुजहल जेल में इनमेट की बड़ी इकाई

चेन्नई की सेंट्रल जेल पुजहल में भी इनमेट की एक बड़ी इकाई लगाए जाने पर काम चल रहा है। यहाँ हमारी 250 से 300 कैदियों को प्रशिक्षित कर जूतों की एक एक्सक्लूसिव फैक्ट्री लगाने की योजना है। काम चल रहा है और जल्द ही यह परियोजना चालू हो जाएगी।

इनमेट के समक्ष चुनौतियाँ

दिवेज बताते हैं, ऐसा नहीं है कि यह परियोजना बहुत आसान थी। सब कुछ बहुत ही चुनौतीपूर्ण था। कैदियों को मात्र कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना ही महत्वपूर्ण नहीं था, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से श्रमिक बनने के लिए की लिए तैय्यार करना बड़ी चुनौती थी। हमें आठ महीने लग गए उनका विश्वास जीतने में, वे बाहरी दुनिया से जल्दी कनेक्ट नहीं करना चाहते हैं, उन पर भरोसा नहीं कर पाते हैं। यह सब कुछ कर पाने के लिए हमारी टीम को बहुत धैर्य के साथ काम करना पड़ा।

जेल की कुछ इनमेट कहानियाँ

आज, इनमें से अधिकतर कैदी विशेष कौशल में पूर्णतः प्रशिक्षित हैं, और कुछ ने तो फुटवियर इंडस्ट्री के आवश्यक मानकों के अनुरूप कौशल-सेट हासिल करने में महारथ हासिल कर ली है। इनमेट के शुरुआती अनुभवों को साझा करते हुए दिवेज कुछ कहानियाँ सुनाते हैं, उन्होंने कैदियों के बीच जिस पहले व्यक्ति से इस प्रोजेक्ट के बारे में बात की और जिसने कैदियों से आगे बात चलाई वे आज उनके मैनेजर हैं, वह मशीन पर कुशल नहीं हैं। लेकिन उनकी मैन मैनेजमेंट स्किल्स जबरदस्त हैं अतः हमने उन्हें जेल के अन्दर चल रही विनिर्माण इकाई में प्रबंधक की हैसियत से नियुक्त कर रखा है। दिवेज बताते हैं, एक दिन जेल में रह रहे एक इंजिनियर सामने आये, जो अच्छे पैकेज पर एक बड़ी कम्पनी में काम करते थे, वह एक मामले में जेल पहुँच गए। वह काफी तनाव में थे, उनकी पत्नी तब माँ बनने वाली थीं। लेकिन जब वे इन मेट के साथ जुड़े, तब वे मन लगाकर काम करने लगे और सारे पैसे बचाकर घर भेजने लगे। जिससे धीरे धीरे जेल में ही सही, लेकिन उनके जीवन में बहुत सुधार आया।

यह सब कुछ बहुत भावनात्मक था, कैदी हमारे साथ अपनी कहानी साझा कर रहे थे, वे इस परियोजना के साथ जुड़कर कैसे अपने भविष्य के लिए आशा की किरण ढूंढ रहे हैं वह यह हमें बता रहे थे। यह सब कुछ हमें इनमेट ब्रांड लांच करने और इनमेट से लोगों के दिल को छूने की प्रेरणा मिली। इनमेट ब्रांड की एक जोड़ी खरीदकर ग्राहक इस पुनर्वास से जुड़कर एक सामाजिक उत्तरदायित्व की पूर्ति का संतोष भी प्राप्त करता है।

दिवेज जेल के अन्दर की स्थिति के बारे में बताते हुए कहते हैं, जेल के नियमों के मुताबिक हम किसी भी कैदी को हम 55 रूपये/प्रतिदिन से अधिक पारिश्रमिक नहीं दे सकते हैं, स्किल्ड लेबर को भी हम 61 रूपये से अधिक नहीं दे सकते हैं। इनमेट ने उन्हें 200 रूपये पारिश्रमिक देने के लिए जेल प्रशासन से विशेष अनुमोदन ले रखा है।

इनमेट भावनायें और आगे की राह

दिवेज काफी भावुक होकर बताते हैं, जेल में बंद कैदियों में से लगभग 30% ऐसे हैं, जो ऐसे गुनाहों की सजा भुगत रहे हैं जो उन्होंने किये ही नहीं हैं। हम चाहते हैं कि हम अधिक से अधिक कैदियों को इस मिशन के साथ जोड़ सकें। हम जेल के बाहर भी विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने को तैय्यार हैं, उनकी सजा ख़त्म होने के बाद भी हम उन्हें रोजगार, आश्रय, भोजन इत्यादि सुविधाओं के साथ अपनाने को तैय्यार हैं। इनमेट इनका साथ अंत तक निभाने को तैय्यार है।

हमने कुछ सजा ख़त्म कर चुके कैदियों को पहले से ही रोजगार दे रखा है और हम कोल्हापुर में एक निर्माण इकाई लगा रहे हैं जिसमें इनके भविष्य का पुनर्वास हो सकेगा। इनमेट ब्रांड के फुटवियर की रेंज 2500 रूपये से शुरू होती है। आपको "बाईइनमेट" वेबसाइट पर लगभग 1200 जोड़ियाँ उपलब्ध नजर आयेंगी।

हम इस परियोजना में अब सेवानिवृत्त पुलिस वालों को भी शामिल कर रहे हैं जिससे कैदियों का डाटाबेस खंगाल कर उनके परिवार और उनसे संपर्क किया जा सके, उनका पुनर्वास किया जा सके और इनमेट को एक कम्पलीट इनमेट रिहैबिलेशन ब्रांड बना सकें। दिव्यांगों को लेकर भी कुछ परियोजनायें हमारे दिमाग में चल रही हैं। सामाजिक बदलावों के साथ व्यापार एवं एवं समाज को आगे बढ़ाते रहना ही हमारा लक्ष्य है।

Mayank Sharma

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