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INTERVIEW: मुकुट बिहारी वर्मा- पारिवारिक जागीर से निकलेगी सहकारिता, टूटेंगी परंपराएं

हमारे पास भवन हैं, कर्मचारी हैं, ग्राहक हैं तो हम उन्हें परंपरागत कामों के अलावा और काम देंगे। उन्हें दवा वितरण, कृषि यंत्र बेचने, पौध वितरण, सोलर कंप्यूटर का काम, रेलवे टिकट बिक्री जैसे कई काम देंगे। गांवों में इन सबकी जरूरत भी है।

zafar
Published on: 12 May 2017 4:32 PM IST
INTERVIEW: मुकुट बिहारी वर्मा- पारिवारिक जागीर से निकलेगी सहकारिता, टूटेंगी परंपराएं
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में सहकारिता मंत्री बने मुकुट बिहारी वर्मा भारतीय जनता पार्टी के संगठन में लंबे समय तक काम कर चुके हैं। इन्हें गांव और किसान की असलियत का एहसास और अनुभव है।

मुकुट बिहारी वर्मा का कहना है कि पिछली कुछ सरकारों ने सहकारिता आंदोलन को निजी और पारिवारिक जागीर बना लिया था। अब इसे एक परिवार से निकालकर जनांदोलन के रूप में फैलाना है, ताकि लोग सहकारिता की मूल और पवित्र भावना का अनुभव कर सकें। मुकुट बिहारी वर्मा ने ‘न्यूजट्रैक’ और ‘अपना भारत’ के लिए आरबी त्रिपाठी से खास बातचीत में अपनी योजनाओं पर प्रकाश डाला।

सवाल- उत्तर प्रदेश में सहकारिता के प्रति लोगों का रुझान कम हो रहा है। आम आदमी इससे नहीं जुड़ पा रहा है। इसकी क्या वजह है?

जवाब- सहकारिता जन सरोकार से जुड़ा विषय है। कई प्रदेशों में यह सफल भी है लेकिन कुछ सरकारों ने इसे परिवार उपयोगी बना दिया। शायद इसी वजह से लोगों के मन में इसके प्रति गलत धारणा बनी होगी। हम इस धारणा को तोड़ेंगे। ऐसा काम करेंगे कि सहकारिता किसानों की रीढ़ सिद्ध होगा।

सवाल- सहकारी समितियों के बारे में बड़ा भ्रम है। इनमें मनमाने बदलाव किये जाते रहे हैं।

जवाब- कुछ लोगों ने अपनी स्वार्थसाधना के लिए इस तरह का गलत काम किया है। कभी समितियों का कार्यकाल दो साल कर दिया तो कभी तीन साल कर दिया। कानून बनाना बिगाडऩा ही सहकारिता के प्रति गलत धारणा बनाता है। लेकिन हमारी सरकार इसे ठीक करेगी। इसके लिए काम शुरू किया जा चुका है।

सवाल- फिलहाल सहकारी समितियों की स्थिति क्या है?

जवाब- प्रदेश भर में 6 हजार सहकारी समितियां हैं। एक करोड़ लोग इनके सदस्य हैं। अपने भवन हैं। अपना तंत्र और जनबल है लेकिन वेतन देने की स्थिति नहीं है। इसके लिए वही स्वार्थी लोग जिम्मेदार हैं, जिन्होंने इसे इस हालत में पहुंचाया है। अपने लोगों पर ध्यान दिया, समितियों पर नहीं। तंत्र पर कब्जा किया है उन स्वार्थी तत्वों ने। अभी हालत यह है कि गेहूं, धान और खाद की खरीद के अलावा कोई काम ही नहीं होता।

सवाल- सुधार के लिए कौन सा रास्ता अपनाएंगे?

जवाब- जब हमारे पास भवन हैं, कर्मचारी हैं, ग्राहक हैं तो हम उन्हें परंपरागत कामों के अलावा और काम देंगे। उन्हें दवा वितरण, कृषि यंत्र बेचने, पौध वितरण, सोलर कंप्यूटर का काम, रेलवे टिकट बिक्री जैसे कई काम देंगे। गांवों में इन सबकी जरूरत भी है। ऐसे में हमारे तंत्र के पास काम रहेगा, समितियों को काम मिलेगा। उन्हें फायदा पहुंचेगा और गांव गांव तक लोगों को जरूरी सुविधाएं मुहैया हो सकेंगी।

समितियों के पास कई काम होंगे तो वह अपने सदस्यों को लाभ भी देंगी। जब लाभ मिलेगा तो लोग सहकारी आंदोलन की ओर प्रेरित होंगे। हम एआर कोऑपरेटिव और इससे संबंधित दूसरे अफसरों-कर्मचारियों से पूछ रहे हैं कि आप कौन सा काम करके देंगे जिससे समितियां फायदे में आ जाएं। जब ये व्यापारिक एजेंसियां हैं तो खुद कमाएं, लोगों को फायदा पहुंचाएं। सरकार के सामने हाथ क्यों फैलाएं।

सवाल- उन 16 सहकारी बैंकों की क्या स्थिति है, जिन्हें पिछली सरकार से तकरीबन 1650 करोड़ रुपये दिये थे।

जवाब- उन्हें नाबार्ड से मदद मिली थी। अब चल रहे हैं। धीरे-धीरे सदस्यों का पैसा वापस किया जा रहा है। उनकी जमा राशि का पांच प्रतिशत हर महीने वापस किया जा रहा है। शादी ब्याह या अवसर विशेष को देखकर उन्हें ज्यादा रकम भी वापस की जा रही है।

लोगों का भरोसा लौट रहा है कि उनका पैसा मिल जाएगा। बैंकों का काम भी अच्छा चले। यह काम हम कर ले जाएंगे, ऐसा विश्वास है। हमारे कामकाज से लोगों को अब फर्क भी महसूस होने लगा है।

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